दूसरे विश्व युद्ध के हीरो रहे मूरे
सर टॉम मूरे का जन्म 1920 में यार्कशर के एक गांव किघली में हुआ था. सिर्फ 20 की उम्र में उन्होंने ब्रिटिश आर्मी ज्वाइन किया. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान ड्यूक ऑफ वेलिंग्टन रेजिमेंट की आठवीं बटालियन में शामिल हुए मूर ने भारत और बर्मा में सैन्य सेवा दी थी. सेना में शामिल होने के बाद दूसरे साल ही मूरे को सेकंड लेफ्टिनेंट के रूप में प्रमोशन मिला और वह रॉयल आर्म्ड कॉर्प्स के सदस्य बन गए और उन्हें भारत में तैनात किया गया. भारत में उन्होंने अपने साथी सैनिकों को टैंक युद्ध और मोटरसाइकिल चलाने का प्रशिक्षण दिया. साल 1945 की शुरुआत में ब्रिटेन लौटने से पहले वह बर्मा (अब म्यांमार) में जापानी सेना के युद्ध लड़ रहे थे. 1946 में मात्र 26 साल की आयु में सैन्य प्रशिक्षक बन गए.
कोरोना वायरस के खिलाफ जंग में जुटाए 286 करोड़
अपने 100वें जन्मदिन से पहले मूर ने बैसाखी के सहारे अपने बगीचे के सौ चक्कर लगाने की योजना बनाई थी. मूरे को उम्मीद थी कि उन्हें इससे हजार पाउंड तक चंदा मिलेगा. लेकिन जब 16 अप्रैल 2020 को 100वां चक्कर पूरा किया तो 12 मिलियन यूरो (करीब 104 करोड़ रुपये) चंदे के रूप में मिल चुके थे. 1 मई को जब उन्होंने फंड रेजिंग का अभियान बंद किया तो उन्हें 32 मिलियन यूरो (करीब 286 करोड़ रुपये) मिल चुके थे. उन्होंने यह पैसा ब्रिटेन की नेशनल हेल्थ सर्विस के हवाले कर दिया.
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ब्रिटेन के प्रिंस विलियन ने भी इस दौरान चंदा दिया था. महामारी के दौरान चंदा इकठ्ठा करने के उनके प्रयासों के लिए मूर को 30 अप्रैल को उनके 100वें जन्मदिन के अवसर पर कर्नल की मानद रैंक दी गई थी. उन्हें नाइटहुट की उपाधि से भी नवाजा गया.