MP: थानों में महिला शौचालयों की कमी, न सेहत का ध्यान, न निजता और गरिमा का

MP: थानों में महिला शौचालयों की कमी, न सेहत का ध्यान, न निजता और गरिमा का


भोपाल. देश में महिलाओं की निजता, गरिमा, सम्मान, सुरक्षा, सशक्तीकरण और अधिकारों के मुद्दे पर केन्द्र से लेकर राज्यों की सरकारें तक बड़ी-बड़ी बातें और नारे तो खूब देती हैं, लेकिन यह वास्तव में महिला मुद्दों, उनकी बुनियादी जरूरतों को लेकर कितनी संजीदा हैं, इसकी हकीकत बीते गुरुवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) के एक आदेश ने सामने लाकर रख दी है. दरअसल हाईकोर्ट ने यूपी की सरकार से यह सवाल पूछ लिया है कि वह 15 फरवरी तक यह बताए कि राज्य के कितने पुलिस थानों में महिला शौचालय (Women Toilets) हैं.

बता दें कि यूपी पुलिस थानों मे महिलाओं के लिए शौचालय या खराब स्थिति के मामले में देश में चौथे स्थान पर है. यूपी ही क्यों मप्र और बिहार जैसे राज्यों के भी बुरे हाल हैं. मप्र में तो 60 फीसदी से ज्यादा पुलिस थानों में महिला टायलेट्स की व्यवस्था नहीं है. टायलेट की सुविधा न मिलने के कारण महिला पुलिसकर्मी कम पानी पीती हैं और शरीर में पानी की कमी के कारण कई बीमारियों का शिकार हो जाती हैं.

सरकारों और सिस्टम का अमानवीय और संवेदनहीन चेहराक्या यह सरकारों और सिस्टम का अमानवीय और संवेदनहीन चेहरा नहीं है, जो महिलाओं की गरिमा और सम्मान की बात तो करता है, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, बेची बढ़ाओ के नारे भी खूब लगाता, लेकिन इंतजाम कुछ नहीं करता. क्या ये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के स्वच्छता अभियान की बेकद्री की पोल नहीं खोलता, जिसे लेकर वह बेहद गंभीर रहते हैं और हमेशा स्वच्छता के लिए मिशन मोड पर होने की बात करते हैं. शायद तमाम सवालों की तरह यह सवाल भी दबा ही रह जाता, अगर कानून की पढ़ाई करने वाली यूपी की अंजिल पांडे और उनके कुछ साथी यूपी के पुलिस थानों में महिला शौचालय न होने या उनकी बदहाली को लेकर एक जनहित याचिका के माध्यम से ध्यान आकर्षित न करते.

कोर्ट ने यूपी सरकार से मांगा जवाब

इसी याचिका पर हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति संजय यादव और जयंत बनर्जी की खंडपीठ ने आदेश देते हुए यूपी की सरकार से जवाब मांगा है. इस याचिका में प्रयागराज शहर के थानों में महिलाओं के लिए शौचालय बनाने और जो बने हैं, उन्हें दुरूस्त कराने की मांग भी की गई है. याचियों का कहना है कि पुलिस थानों में महिला शौचालय न होना महिलाओं की गरिमा व निजता के अधिकार का उल्लंघन है.

बदहाली के मामले में यूपी चौथे नंबर पर

बता दें कि ‘स्टेटस आफ पुलिसिंग इन इंडिया रिपोर्ट 2019’ शीर्षक वाली रिपोर्ट दिसंबर 2019 में जारी की गई थी. उसके अनुसार 20 फीसदी पुलिसकर्मियों ने पुलिस स्टेशनों में महिला शौचालयों की कमी की शिकायत की थी. इस सर्वेक्षण में 21 राज्यों में 12000 पुलिसवालों को शामिल किया गया था. इस रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश को महिला शौचालयों की कमी या खराब स्थिति के मामले में चौथे स्थान पर बताया गया था.

मप्र में भी 60 फीसदी थानों में महिला शौचालय नहीं

बदहाली की ये स्थिति केवल यूपी की ही नहीं है, बल्कि एमपी के भी ऐसे ही हाल हैं. मप्र के भी 60 फीसदी से ज्यादा थानों में महिला पुलिसकर्मियों के लिए अलग से टायलेट्स नहीं है. ड्यूटी पर आने के बाद उनके सामने एक सबसे बड़ी चुनौती और मुश्किल यह होती है कि वह टायलेट् कहां जाएं. ऐसी स्थिति में उन्हें बार-बार घर जाने के लिए अफसर से पूछना पड़ता है, जिसके लिए उन्हें कई बार डांट भी पड़ जाती है और शर्मिंदगी भी झेलना पड़ती है.

महिलाओं का ये कैसा सम्मान

बता दें कि मप्र में 2018 की आधिकारिक जानकारी के अनुसार 1095 पुलिस थाने हैं. अकेले राजधानी भोपाल में 40 से अधिक थाने हैं. हर थाने में औसतन 4 महिला पुलिसकर्मियों की तैनाती है, लेकिन उनके लिए अलग से शौचालय की व्यवस्था नहीं है. कई थानों में महिला पुलिसकर्मियों के सैल्यूट करते हुए पोस्टर्स दिख जाएंगे, जिन पर लिखा होगा कि ‘हम उन्हें सलाम करते हैं, जो कानून का सम्मान करते हैं,’ लेकिन पुलिस तंत्र खुद इन महिलाओं का कितना सम्मान करता है, ये महिला शौचालयों का न होना बताता है. अधिकांश थानों में कॉमन टायलेट्स हैं, जिनका पुलिस वालों से लेकर उसकी अभिरक्षा में रखे गए आरोपी तक सभी करते हैं. ये टायलेट्स महिला पुलिस कर्मियों, महिला फरियादियों या अभिरक्षा में रखी गई महिलाओं के लिए कितने सुरक्षित होते हैं, स्वतः ही अनुमान लगाया जा सकता है.

पूरे प्रदेश में एक जैसे हाल

महिला पुलिस कर्मियों के लिए अलग से टायलेट न होना अकेले भोपाल की नहीं, पूरे प्रदेश की समस्या है, चाहे देश में स्वच्छता के मामले में देशभर में नंबर वन रहा इंदौर हो या फिर आगर-मालवा, ग्वालियर, जबलपुर हो, सब जगह एक जैसे हाल हैं. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 2015 में राज्य के थानों में महिलाओं के लिए रेस्ट रूम समेत शौचालय बनाने की घोषणा की थी, 40 करोड़ का बजट भी बना, लेकिन तब वित्त विभाग के रोड़े से काम अटक गया. विधानसभा या सड़क पर तमाम मुद्दे तो उठाता है, लेकिन महिलाओं, बच्चों से जुड़े मुद्दों पर आवाज बिरले ही सुनाई देती है.

महिला कर्मी हो रहीं बीमार

अलग टायलेट्स की व्यवस्था न होने से महिला पुलिस कम पानी पीती हैं, ताकि बिना किसी व्यवधान के ज्यादा समय तक ड्यूटी करने की हालत में रह सकें, इससे वह कई तरह की बीमारियों की शिकार हो रही हैं. ऐसा नहीं है कि महिला पुलिसकर्मियों की इन दिक्कतों से आला अधिकारी अनजान हों, लेकिन इन व्यवस्थाओं को करने की दिशा में किसी का ध्यान नहीं जाता. न ही यह पता किया जाता है कि कितने थानों में सुविधा है, कितनों में यह सुविधा करानी है. 2017 में प्रदेश भर के पुलिस कर्मियों की एक कार्यशाला में थानों में महिला शौचालयों का मुद्दा उठा था, अफसरों ने भी थानों में व्यवस्थाओं में कमी की बात मानी थी, लेकिन इस दिशा में तबसे आज तक हुआ कुछ नहीं.

(डिस्क्लेमरः ये लेखक के निजी विचार हैं.)





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