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- Rehni’s Bridge Was Washed Away After The Glacier Broke, The Road To China Border Was Closed.
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भोपाल4 मिनट पहले
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उत्तराखंड के चमोली जिले में ग्लेशियर टूटने से धौलीगंगा नदी में भीषण बाढ़ के हालात बने। जोशी मठ में नदी में पानी के साथ मलबा भी बहा।
- धौलीगंगा नदी में करीब 30 फीट का मलवा होने से पानी का बहाव कम हुआ।
- दोपहर 2 बजे तक बादल फटने जैसी आवाज 21 किमी तक जोशीमठ में आने से दहशत।
उत्तराखंड के चमोली जिले में ग्लेशियर टूटने से धौलीगंगा नदी में भीषण बाढ़ के हालात बन गए हैं। इससे चमोली के तपोवन इलाके में हुई इस घटना से ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट बह गया है। तपोवन, श्रीनगर और ऋषिकेश डेम भी क्षतिग्रस्त हो गए हैं। लेकिन ग्लेशियर टूटने से 40 किलोमीटर दूर रेहणी गांव में बना मलारी रोड का पुल बह गया है। इससे चायना बाॅर्डर जाने का रास्ता बंद हो गया है। इससे लिंक रोड भी बंद हो गई है। वैली, लाता, सुरई छोटा सहित करीब छह गांव पार करने के बाद करीब 70 किलोमीटर पर चायना बार्डर है।
जोशी मठ के होटल व्यवसायी प्रदीप डिमोली ने इस हादसे को लेकर दैनिक भास्कर से फोन पर बात की। उन्होंने बताया कि ग्लेशियर टूटने से जानमाल का कितना नुकसान हुआ, यह फिलहाल कह पाना मुश्किल है, लेकिन मलारी का पुल बह जाने से चायना बार्डर तक जाने का रास्ता बंद हो गया है। आर्मी के लिए भी केवल यही एक मात्र रास्ता है, जो बाॅर्डर तक जाता है। हालांकि उन्होंने यह भी बताया कि आर्मी इस पुल को बहुत जल्दी ही फिर से खड़ा कर देगी। क्योंकि इससे पहले भी प्रकृतिक आपदाओं के दौरान आर्मी ने पुलों को निर्माण किया है। इस पुल के टूटने से मलारी गांव में जनहानि नहीं हुई है, क्योंकि इस गांव के लोग ठंड ज्यादा पड़ने के कारण जनवरी माह के अंत तक नीचे की तरफ चले जाते हैं।
डिमोली के मुताबिक चमोली से करीब 21 किलोमीटर जोशीमठ में दोपहर 2 बजे तक बादल फटने जैसी आवाज से दहशत का माहौल है। यहां नदी के किनारे के गांव खाली कराए जा रहे हैं। हालांकि यहां नुकसान की आशंका कम है, क्योंकि नदी में पानी के साथ करीब 30 फीट का मलबा बह रहा है, जिससे पानी की रफ्तार कम है। उन्होंने बताया कि ग्लेशियर टूटने से रेहणी, तपोवन, जोशमठ, चमोली और वनकोठी के करीब 40 किलोमीटर के इलाके में बाढ़ की स्थिति बनी है।
आर्मी ने संभाला मोर्चा
डिमोली ने बताया कि हादसे के करीब एक घंटे के अंदर ही आर्मी के जवान तपोवन तक पहुंच गए थे और उन्होंने करीब 12 बजे गांव खाली करना शुरु कर दिए थे। दोपहर तक आर्मी के साथ एनडीआरएफ और एसडीआरएफ के जवानों ने नदी के किनारे बसे गांव के लोगों को सुरक्षित स्थान तक पहुंचा दिया। हालांकि जोशीमठ के अलावा करीब एक दर्जन गांव में अलर्ट में रखे गए हैं।
क्या होता है ग्लेशियर फटना या टूटना?
सालों तक भारी मात्रा में बर्फ जमा होने और उसके एक जगह एकत्र होने से ग्लेशियर का निर्माण होता है. 99 फीसदी ग्लेशियर आइस शीट (Ice Sheet) के रूप में होते हैं, जिसे महाद्वीपीय ग्लेशियर भी कहा जाता है। यह अधिकांशत: ध्रुवीय क्षेत्रों या बहुत ऊंचाई वाले पहाड़ी क्षेत्रों में होता है. हिमालयी क्षेत्रों में भी ऐसे ही ग्लेशियर पाए जाते हैं।
किसी भू-वैज्ञानिक हलचल (गुरुत्वाकर्षण, प्लेटों के नजदीक आने, या दूर जाने) की वजह से जब इसके नीचे गतिविधि होती है तब यह टूटता है। कई बार ग्लोबल वार्मिंग की वजह से भी ग्लेशियर के बर्फ पिघल कर बड़े-बड़े बर्फ के टुकड़ों के रूप में टूटने लगते हैं। यह प्रक्रिया ग्लेशियर फटना या टूटना कहलाता है. इसे काल्विंग या ग्लेशियर आउटबर्स्ट भी कहा जाता है।