एन. रघुरामन का कॉलम: कोविड जैसी समस्याएं कब आएंगी या आप कहां जन्म लेंगे, इस पर नियंत्रण नहीं कर सकते, लेकिन ठान लें, तो जीत आपको ही मिलेगी

एन. रघुरामन का कॉलम: कोविड जैसी समस्याएं कब आएंगी या आप कहां जन्म लेंगे, इस पर नियंत्रण नहीं कर सकते, लेकिन ठान लें, तो जीत आपको ही मिलेगी


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कुछ ही क्षण पहले

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

‘मेरा बच्चे इस पूरे अकादमिक साल में एक भी दिन स्कूल नहीं गया और अब उसे दो महीनों में बोर्ड की परीक्षाएं देनी होंगी। बच्चा तो छोड़िए, हमें भी नहीं पता कि क्या करना चाहिए? क्या ऐसे में मेरा बच्चा एक साल का गैप ले सकता है? क्या इस गैप ईयर से उसकी पूरी शिक्षा पर असर नहीं पड़ेगा? जैसे विदेश में पढ़ाई करने पर कुछ साल लगातार पढ़ाई अनिवार्य होती है?…’ सवाल अनंत थे। मैं जहां भी जाता है, जिससे भी मिलता हूं, ऐसे सवाल पूछे जाते हैं, हालांकि में पेशेवर काउंसलर नहीं हूं।

मैं ईमेल पर मिलने वाले पाठ्यक्रम और इसमें बदलाव के कारण प्रश्न पत्रों में परिवर्तन संबंधी तकनीकी सवालों को पेशवरों को फॉरवर्ड कर देता हूं। लेकिन ज्यादातर सवाल इससे जुड़े होते हैं कि क्या बच्चा परीक्षा के लिए तैयार है। इस साल छात्र ही नहीं, पूरा परिवार तनाव में है। जहां छात्र अच्छे अंकों के साथ सफल होने को लेकर चिंतित हैं, वहीं माता-पिता को न सिर्फ कोविड से सुरक्षा की चिंता है, बल्कि उन्हें उम्मीद अनुसार नतीजे न आने की आशंका भी है।

स्पष्ट है कि ऑनलाइन लर्निंग, कक्षा जैसी पढ़ाई नहीं करवा पाई है। एक छात्र ने निराशा के साथ लिखा, ‘सर यह मेरी बदकिस्मती है कि कोविड उसी साल आया, जिस साल मुझे ‘मेरी शिक्षा का पहला डॉक्यूमेट’ (यानी बोर्ड परीक्षा, जिसकी मार्कशीट जिंदगीभर काम आती है) मिलना था।’ मैं उसके शब्दों के चयन से प्रभावित हुआ, लेकिन चिंता भी हुई कि वह अपनी किस्मत और जन्म के वर्ष को कोस रहा है।

अगर आप भी चिट्‌ठी वाले बच्चे जैसा सोचते हैं तो आपको दिव्या प्रजापति की कहानी जाननी चाहिए। अहमदाबाद के धनधुका तालुक के वसना गांव में एक सब्जी विक्रेता के घर उसका जन्म हुआ। पिछले साल 20 मार्च को उसके माता-पिता बचत के 1.5 लाख रुपए लेकर राजस्थान के जालोर जिले में अपने पैतृक गांव जसवंतपुरा स्थित पैतृक मकान सुधरवाने के लिए निकले।

दो दिन बाद सरकार ने राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन घोषित कर दिया। न तो पिता तान्हाजी और न ही मां गीता अहमदाबाद लौट सकती थी। इसलिए दिव्या और उसका भाई अहमदाबाद में दो महीने अकेले रहे। भाई-बहन ने दिव्या को आर्टिकलशिप से बचाए गए पैसों और आईसीएआई, अहमदाबाद द्वारा प्रतिमाह मिलने वाली स्कॉलरशिप से गुजारा किया।

उसे यह स्कॉलरशिप 2019 में इंटरमीडिएट एक्जाम में देश में 7वीं रैंक लाने पर मिली थी। उधर माता-पिता भी घर नहीं सुधरवा सके और सारी बचत खर्च हो गई क्योंकि लॉकडाउन में कुछ कमाई नहीं हुई। सीए फाइनल परीक्षाओं ने दिव्या की परेशानी और बढ़ा दी, जो पहले मई 2020 में होनी थीं, फिर उन्हें पहले जून, फिर जुलाई और फिर नवंबर तक के लिए आगे बढ़ा दिया गया।

इतना ही नहीं, जब 21 नवंबर को परीक्षा होना तय हुआ, तब राज्य सरकार ने दीवाली के बाद कोरोना मामलों में इजाफे के कारण 19 और 20 नवंबर को कर्फ्यू लगा दिया। दिव्या समेत सभी के लिए यह डराने वाला था।

लॉकडाउन के कारण परिवार से अलग होने, बचत खर्च होने और परीक्षाएं बार-बार टलने के तनाव के बावजूद दिव्या पिछले सोमवार आधिकारिक रूप से चार्टर्ड एकाउंटेट बन गई। भले ही उसे ऑल-इंडिया रैंक नहीं मिली, पर उसकी सफलता इस बात का प्रमाण है कि जिंदगी में कितनी ही मुश्किलें आएं, दृढ़ निश्चय से सबकुछ हासिल कर सकते हैं।

फंडा यह है कि आप इस पर नियंत्रण नहीं कर सकते कि कोविड जैसी समस्याएं कब आएंगी या आप कहां जन्म लेंगे। लेकिन अगर आप ठान लें, तो जीत जरूर मिलेगी।



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