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बीकानेर2 घंटे पहलेलेखक: लोकेंद्र सिंह तोमर
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इस गांव में न तो सड़क है और न ही अस्पताल।
- सीमा से जुड़े गांवों में विकास के लिए लागू बॉर्डर एरिया डवलपमेंट प्रोजेक्ट का सच उजागर करती सबसे बड़ी पड़ताल
- प्रदेश के चार जिलों में 1083 गांवों का डवलपमेंट करना है प्रोजेक्ट के जरिये
यह है अंतरराष्ट्रीय सीमा का आखिरी गांव 19 बीडी। यहां से बाॅर्डर पार पाकिस्तान की चौकी साफ नजर आती है। इस गांव में न तो सड़क है और न ही अस्पताल। रात में कोई बीमार हो जाए तो इलाज के लिए 20 किमी दूर खाजूवाला या 120 किमी दूर बीकानेर जाना पड़ता है। सेना के आने-जाने के लिए भी जर्जर सड़क है। गांव की नालियाें से लेकर सड़क तक पक्की नहीं है।
यहां इस गांव की चर्चा इसलिए की जा रही है, क्योंकि पांच साल में बॉर्डर एरिया डवलपमेंट प्रोजेक्ट (बीएडीपी) समेत अन्य योजनाओं से इस गांव पर 55 लाख का खर्च दिखाया गया है। इस गांव समेत बाॅर्डर से सटे ऐसे तमाम गांवों का ऐसा हाल तब है, जब केंद्र सरकार ने राजस्थान की अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे चार जिलों के 1083 गांवों के विकास के लिए 1993 से अब तक 2000 करोड़ रुपए बीएडीपी के मार्फत खर्च कर दिए हैं।
सरकार का लक्ष्य है कि अंतरराष्ट्रीय सीमा के जीरो से 50 किमी एरिया के गांवाें का विकास कराया जाए। 27 साल में सरकार सीमा से 10 किमी की दूर स्थित गांवों में 2000 करोड़ खर्च कर चुकी है, फिर भी यहां सुविधाओं का अभाव है। अब सरकार ने 2024 तक इन गांवों के विकास का लक्ष्य रखा है। उसके बाद शून्य से 20 किलोमीटर दूर तक के गांवों का नंबर आएगा। भास्कर ने जब इन गांवों में हुए विकास की पड़ताल की तो हैरान करने वाले तथ्य सामने आए। पेश है अंतरराष्ट्रीय सीमा से ग्राउंड रिपोर्ट
सचाई बयां करती बल्लर गांव की यह तस्वीर
- 17 राज्याें अरुणाचल प्रदेश, असम, बिहार, गुजरात, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर, मणिपुर, त्रिपुरा, मिजोरम, नागालैंड, पंजाब, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, सिक्किम, उत्तराखंड और प. बंगाल के 111 जिलों को बीएडीपी का पैसा मिलता है।
- प्रदेश में बीकानेर, बाड़मेर, जैसलमेर और श्रीगंगागनर के 1083 गांवाें में यह स्कीम लागू है। बीकानेर में 168 किमी, श्रीगंगानगर में 210 किमी, बाड़मेर में 228 व जैसलमेर में 464 किमी बाॅर्डर इलाका है।
- शून्य से 10 किमी के गांवाें को डवलप करने में लगेंगे 33 साल
- बीएडीपी वर्ष1987 में शुरू हुई थी। राजस्थान में 1993 से लागू।
- 2024 तक शून्य से 10 किलोमीटर दायरे के गांव को विकसित करना होगा, जिसमें 33 साल लगेंगे।
- बीएडीपी से अब तक जैसलमेर में अब तक 600 करोड़, बाड़मेर में 500 करोड़, बीकानेर व श्रीगंगानगर में 400-400 करोड़ खर्च हो चुका है।
INFORMATION TO INSIGHT
17 राज्याें में लागू है यह प्राेजेक्ट, ऑडिट के नाम पर होती है सिर्फ खानापूर्ति
नेताओं और अफसराें ने शहर का विकास कर दिया इस योजना से : 2002 के आसपास बीएडीपी के पैसे से बीकानेर के तत्कालीन कलेक्टर समेत आठ अधिकारियों के लिए नई गाड़ियां खरीदी गई। रवीन्द्र रंगमंच के लिए दो करोड़ दिए गए। 2003 में गठित गंगासिंह विवि में 50 लाख लगाए गए। पीबीएम अस्पताल में उपकरणों से लेकर तमाम जगह पैसा खर्च हुआ।
बीकानेर जिला परिषद का मुख्य सभागार भी बीएडीपी के 25 लाख से बना। 2002 के बाद बाॅर्डर के शून्य से 10 किमी तक के गांवों में काम कराने का आदेश हुआ लेकिन 2014 के आसपास फिर सीमा बढ़ाकर शून्य से 20 किमी कर दी गई। अब फिर से शून्य से 10 किलोमीटर में बीएडीपी का पैसा खर्च करने की शर्त केन्द्र सरकार ने तय की है।
इसलिए बेकार चली जाती है रकम
बीएडीपी में गांव से लेकर बजट तय करने के लिए क्षेत्रीय सांसद, क्षेत्रीय विधायक, कलेक्टर, सीईओ जिला परिषद व एक्सईएन की कमेटी होती है। ऑडिट की टीम भी 14 बीडी देखकर लौट जाती है। कोई बल्लर, आनंदगढ़ या 19 बीडी जैसे गांव नहीं जाता।
बीकानेर का बजट घटाकर 12 कराेड़ किया
बीकानेर को बीएडीपी से दो करोड़ का बजट मिलना शुरू हुआ जो 40 करोड़ तक पहुंचा, लेकिन बीते साल बजट 18 करोड़ कर दिया। इस साल सिर्फ 12 करोड़ रह गया।
परियोजना निदेशक भास्कर त्रिपाठी से सवाल-जवाब
सवाल-बीएडीपी से अब तक चारों जिलों में कितना खर्च हुआ?
जवाब- लगभग 2000 करोड़ रुपए।
सवाल- फिर क्यों सीमा के आखिरी गांव में विकास नहीं हुआ।
जवाब- शुरुआती एक दशक में बीएडीपी का दायरा बड़ा था। स्थानीय स्तर से प्रस्ताव सीमांत गांव के ना लेकर शहरी क्षेत्र से जुड़े गांव का लिया गया। ये निर्णय भी सांसद-विधायक और कलेक्टर समेत कई अधिकारी लेते हैं।
सवाल- पर पैसा बार्डर के गांव का है। फिर कब होगा इनका विकास।
जवाब- 2024 तक शून्य से 10 किमी के गांवों का पूरा विकास करना हमारा लक्ष्य है।
सवाल- कई गांव में तो सड़क भी नहीं बनी फिर कैसे करेंगे पूरा।
जवाब- प्रस्ताव आए हैं। हम टीमें बनाकर टारगेट बेस काम करेंगे।