बाड़मेर-जैसलमेर समेत प्रदेश के चार जिलों से भास्कर ग्राउंड रिपोर्ट: 27 साल में 2000 करोड़ खर्च लेकिन बॉर्डर के 4 जिलों के 500 गांवों व ढाणियों में न पानी-बिजली और न सड़कें

बाड़मेर-जैसलमेर समेत प्रदेश के चार जिलों से भास्कर ग्राउंड रिपोर्ट: 27 साल में 2000 करोड़ खर्च लेकिन बॉर्डर के 4 जिलों के 500 गांवों व ढाणियों में न पानी-बिजली और न सड़कें


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बाड़मेर/ जैसलमेर17 मिनट पहलेलेखक: पूनमसिंह राठौड़

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बदतर हैं घंटियाली गांव के हाल

  • सरहदी गांवों के विकास के लिए लागू बीएडीपी योजना का सच उजागर करती सबसे बड़ी पड़ताल

भारत-पाक बॉर्डर पर आबाद बाड़मेर व जैसलमेर के पादरिया, केरकोरी, हापिया, मालाणा, हीरपुरा समेत दर्जनों गांव। बॉर्डर से 10 किमी की परिधि में होने से बीएडीपी योजना से सालाना करोड़ों रुपए विकास कार्यों पर खर्च हो रहे हैं। बावजूद इसके धरातल पर सड़क,पानी, बिजली व चिकित्सा जैसी आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं है।

सरहदी दर्जनों गांवों में पक्की सड़कें तो दूर पीने का पानी तक नहीं है। अकेले बाड़मेर में इस योजना से पिछले 27 सालों में 500 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। दोनों जिलों के सरहदी गांवों के लोगों को रोजी-रोटी से ज्यादा पीने के पानी की समस्या से जूझना पड़ रहा है। चौंकाने वाली बात यह है कि पिछले 11 सालों में बॉर्डर से दस किमी परिधि के गांवों पर बीएडीपी योजना से 350 करोड़ रुपए का बजट खर्च हो चुका है फिर भी 20 गांवों व 200 ढाणियों में पीने के पानी की सुविधा है न सड़क-बिजली।

जिले को सालाना 30 से 40 करोड़ रुपए का बजट आबंटित होता है। प्लान में पानी, बिजली, सड़क, चिकित्सा के कार्य करवाए जाने प्रस्तावित है। सिस्टम की लापरवाही से 30 फीसदी काम तो सालों से अधूरे पड़े हैं। यानी बजट का उपयोग ही नहीं कर पाए।

  • 17 राज्याें के 111 जिलों को बीएडीपी का पैसा मिलता है।
  • राजस्थान के बीकानेर, बाड़मेर, जैसलमेर और श्रीगंगागनर के 1083 गांवाें में ये स्कीम लागू है। बीकानेर में 168 किमी, श्रीगंगानगर में 210 किमी, बाड़मेर में 228 व जैसलमेर में 464 किमी बाॅर्डर इलाका है।
  • शून्य से 10 किमी के गांवाें को डवलप करने में लगेंगे 33 साल
  • बीएडीपी 1987 में शुरू हुई थी। राजस्थान में 1993 से लागू।
  • 2024 तक शून्य से 10 किलोमीटर दायरे के गांव को विकसित करना होगा। जिसमें 33 साल लगेंगे।
  • बीएडीपी से अब तक जैसलमेर में अब तक 600 करोड़, बाड़मेर में 500 करोड़, बीकानेर व श्रीगंगानगर में 400-400 करोड़ खर्च हो चुका है।

जैसलमेर: बॉर्डर के145 गांवों पर करोड़ों खर्च,विकास गायब
जिले में बीएडीपी योजना वर्ष 1993 में शुरू हुई थी। शुरूआती 5-6 साल में बॉर्डर के गांवों में विकास करने की गाइड लाइन नहीं थी। उस समय शहर में अस्पताल के क्वार्टर भी बनाए गए थे। शहर में भी काम करवाए जाते थे। वर्ष 1999 के बाद बॉर्डर सेे 10 किमी अंदर के गांवों में बीएडीपी का बजट खर्च करने की गाइड लाइन आई। तारबंदी से निकट पहले गांव से 10 किमी परिधि में आने वाले गांवों में विकास पर खर्च करने की गाइड लाइन थी।

बीकानेर: बीडी गांव में सड़क ना पानी, इलाज भी 20 किमी दूर

ये है अंतरराष्ट्रीय सीमा का आखिरी गांव 19 बीडी। यहां से बाॅर्डर पार पाकिस्तान की चौकी साफ नजर आती है। इस गांव में ना तो सड़क है और ना ही अस्पताल। रात में कोई बीमार हो जाए तो इलाज के लिए 20 किलोमीटर दूर खाजूवाला या 120 किलोमीटर दूर बीकानेर जाना पड़ता है। सेना के आने-जाने के लिए भी जर्जर सड़क है। गांव की नालियाें से लेकर सड़क तक पक्की नहीं है। पांच साल में बॉर्डर एरिया डवलपमेंट प्रोजेक्ट (बीएडीपी) समेत अन्य योजनाओं से इस गांव पर 55 लाख का खर्च दिखाया गया है।

श्रीगंगानगर:बीएडीपी फंड से खरीद ली एंबुलेंस और अन्य गाड़ी

श्रीगंगानगर जिले में बीएडीपी योजना में बीते 5 साल में 141 करोड़ खर्च हो चुके हैं, लेकिन सीमा से सटे गांव सड़कों, पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। जिला परिषद के आंकड़ों में सामने आया कि पहले हर साल बीएडीपी में 40 से 50 करोड़ मिलते थे, लेकिन दो साल से यह राशि घटती जा रही है। दो साल पहले प्रशासन ने बीएडीपी के 41 लाख से तीन वाहन खरीदे थे। इनमें 16 लाख की दो एंबुलेंस स्वास्थ्य विभाग को दी गई, जबकि 25 लाख की एक गाड़ी वन विभाग को दी गई।

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5 गांवों के उदाहरणों से समझें सरहदी गांवों के विकास का सच

भारत-पाक बॉर्डर से 10 किमी की परिधि में स्थित पादरिया, केरकोरी, हापिया, मालाणा, हीर पुरा समेत दो दर्जन गांवों में पानी की समस्या विकट है। सरगुवाला, दुठोड़ा, केरकोरी समेत कई गांवों में अब तक पक्की सड़कें नहीं बनी है। विद्युतीकरण नहीं होने से सरहदी गांवों के लोग चिमनी की रोशनी में ही जिंदगी गुजर बसर कर रहे हैं।

बॉर्डर का बजट शहर में सड़कें,सरकारी भवनों पर खर्च किया
गाइडलाइन में वर्ष 2009-10 के बाद 10 किमी का दायरा तय किया गया। इससे पहले कलेक्ट्रेट में सीसी सड़क का निर्माण बीएडीपी योजना के बजट से करवाया। पुलिस लाइन क्वार्टरों के अलावा सीआईडी ऑफिस का भवन भी इसी राशि से बनवाया गया। जिला दुग्ध डेयरी का प्लांट निर्माण करवाया गया।

11 साल से नहीं बढ़ा योजना का दायरा

बीएडीपी योजना का बीते 11 साल बाद भी दायरा नहीं बढ़ाया गया है। पहले इस योजना का बजट पूरे जिले के गांवों पर खर्च होता था। लेकिन 2009 में केंद्र सरकार ने बॉर्डर से 10 किलोमीटर की परिधि में आने वाले गांवों में ही बजट खर्च करने के आदेश जारी किए। इसके बाद हर साल सरहदी गांवों के विकास कार्यों का प्लान तैयार होता है। इन गांवों में पानी, बिजली, सड़क व चिकित्सा सुविधा पर 80 फीसदी और शेष 20 फीसदी बजट अन्य कार्यों पर खर्च होता है।
परियोजना निदेशक भास्कर त्रिपाठी से सवाल-जवाब

सवाल-बीएडीपी से अब तक चारों जिलों में कितना खर्च हुआ?
जवाब- लगभग 2000 करोड़ रु.।
सवाल- फिर क्यों सीमा के आखिरी गांव में विकास नहीं हुआ।
जवाब- शुरुआती एक दशक में बीएडीपी का दायरा बड़ा था। स्थानीय स्तर से प्रस्ताव सीमांत गांव के ना लेकर शहरी क्षेत्र से जुड़े गांव का लिया गया। ये निर्णय भी सांसद-विधायक और कलेक्टर समेत कई अधिकारी लेते हैं।
सवाल- पर पैसा बार्डर के गांव का है। फिर कब होगा इनका विकास।
जवाब- 2024 तक शून्य से 10 किमी के गांवों का पूरा विकास करना हमारा लक्ष्य है।
सवाल- कई गांव में तो सड़क भी नहीं बनी फिर कैसे करेंगे पूरा।
जवाब- प्रस्ताव आए हैं। हम टीमें बनाकर टारगेट बेस काम करेंगे।



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