लेकिन मुश्किल अभी भी
दरअसल इंग्लैंड ने पहली पारी में 578 रन बनाकर अपनी स्थिति बहुत मजबूत बना ली है. जवाब में भारत ने तीसरे दिन का खेल खत्म होने तक छह विकेट पर 257 रन बनाए हैं. बेशक 578 रन का पीछा करना पहले से ही दूर की बात थी, बल्कि फौरी लक्ष्य यह दिख रहा था कि किसी तरह फॉलोआन बचाया जाए. वैसे इस समय खेल जिस पड़ाव पर है उसमें कोई अटकल लगाना अभी भी आसान नहीं है. अलबत्ता भारत की लड़खड़ाती पारी में ऋषभ पंत और चेतेश्वर पुजारा ने जिस तरह से जान फूंकी उसके बाद भारत इस मैच को बचा लेने की उम्मीद अभी भी लगा सकता है.
क्यों लड़खड़ाया अपना शीर्षक्रम?
जब कोई अफेदफे हो जाती है तो हमेशा ही उसके विश्लेषण जरूर होते हैं. पौने छह सौ रन का पीछा करने उतरी अपनी टीम के पास सबसे पहला विकल्प यही था कि किसी तरह क्रीज़ पर टिके रहा जाए और मैच को बराबरी पर लाने के लिए ड्रॉ की कोशिश में लगा जाए. लेकिन भारतीय टीम ने शुरू से ही जो तेवर दिखाए उन्हें बचाव की मुद्रा बिल्कुल ही नहीं कहा जा सकता. जब तेईसवीं गेंद पर अपना पहला विकेट गिरा तो बीस गेंदों में भारतीय सलामी बल्लेबाज बेखौफ खेलते हुए 19 रन बना चुके थे. रोहित के आउट होने के बाद रक्षात्मक मुद्रा अपनाए जाने की स्थिति थी. यहां भी शुभमन गिल के तेवर से बिल्कुल नहीं लगा कि टीम ने रक्षात्मक रणनीति बना ली है. हालांकि गिल सौ से ज्यादा के स्टाइक रेट से सिर्फ 29 रन बना पाए और आउट हो गए. अलबत्ता वक्त की मांग के मुताबिक पुजारा ने रक्षात्मक रवैया जारी रखा. इस बीच कोहली अपने उपर से दबाव हटाने की कोशिश में आउट हो गए. अजिंक्य रहाणे भी टिक नहीं पाए. सिर्फ पुजारा ने टिककर खेला और तीसरे दिन का खेल खत्म होने तक भारत के पास हार से बचाव का जो मौका अभी भी दिखाई दे रहा है उसमें पुजारा की सबसे बड़ी भूमिका मानी जानी चाहिए. ऐसे मुश्किल हालात में 222 मिनट में 143 गेंद खेलकर 73 रन बनाकर आउट होने पर ज्यादा अफसोस नहीं होना चाहिए.
पंत के तेवरों का तर्क
पंत सुरक्षात्मक खेल के खिलाड़ी माने ही नहीं जाते. वैसे भी मुश्किल हालात में क्रिकेट का हर पंडित बल्लेबाजों को अपना स्वाभाविक खेल खेलने की ही नसीहत देता है. सिर्फ 73 के स्कोर पर चार बल्लेबाज गंवाने के बाद क्रीज पर आए पंत ने अपने स्वभाव के मुताबिक तेज खेला और उसी अंदाज में खेलते ही चले गए. गौर करने की बात है कि 51वें ओवर में जब पुजारा भी आउट हो गए और भारत का स्कोर पांच विकेट पर सिर्फ 192 था तब भी पंत ने अपना तेवर बदला नहीं. पुजारा के आउट होने के बाद भी पंत ने 52 वें ओवर में 10 रन ठोक दिए. यानी वे आखिर आखिर तक अपने स्वाभाविक खेल से समझौता करने को तैयार नहीं दिखे. एक लिहाज़ से ठीक भी है क्योंकि जब इसी अंदाज से खेलकर उन्हें लंबी पारी खेलने में कामयाबी मिलती जा रही है तो वे खुद को बदलते ही क्यों? पंत ने इसका खमियाजा भी भुगता और बेस ने उन्हें छक्का मारने के लिए एक ललचाती हुई गेंद फेकी और पंत डीप कवर पर लीच के हाथों लपके गए. अफसोस की बात ये रही कि पंत उस समय अपने शतक से थोड़ी ही दूर यानी 91 रन पर खेल रहे थे. अगर उन्हें अपनी टीम और खुद अपने लिए सुरक्षित खेलना भी आता होता तो ये बला टल भी सकती थी. याद दिलाया जा सकता है कि पंत अपने नए नए टेस्ट करियर में चार बार 90 के बाद आउट हुए हैं. आखिर प्रतिद्वंद्वी टीमों के गेंदबाज भी तो मनोविज्ञान समझते हैं.
पहले टेस्ट की अंतरिम समीक्षा
पांच दिन चलने वाला टेस्ट क्रिकेट वह खेल है जिसमें किसी भी तरह की अटकल लगाना हमेशा ही जोखिम भरा होता है. इंग्लैंड की टीम अगर सोच रही हो कि उसने तीन दिन का खेल खत्म होने तक जीत पक्की कर ली है तो यह उसका मुगालता भी साबित हो सकता है. हाल ही में आस्ट्रेलिया में चमत्कार करके लौटी भारतीय टीम को अभी दूसरी पारी भी खेलना है. और खेल में सिर्फ दो ही दिन बचे हैं. इतना ही नहीं भारत की पहली पारी अभी पूरी खत्म नहीं हुई है. अश्विन और सुंदर 17 ओवर की अटूट साझेदारी निभाते हुए क्रीज़ पर हैं.
इंग्लैंड क्यों न पाले मुगालता
चाैथे दिन अगर अपनी टीम जल्द सिमट भी जाए तो प्रतिद्वंद्वी टीम को अभी यह तय करने में दिक्कत आ सकती है कि भारत को फॉलोआन दे या न दे. यह चेपॉक की पिच है. कई बार चैथी पारी में करतब दिखा चुकी है. बहरहाल इस समय तक स्थिति यह है कि इंग्लैंड के पास सवा तीन सौ रन की बढ़त है. और इंग्लैंड को अभी भारत के तीन पुछल्ले विकेट लेना बाकी भी है. यानी एक स्थिति यह भी बन सकती है कि इंग्लैंड की बढत सिर्फ ढाई से पौने तीन सौ रन पर ही सिमट जाए. यह बहुत ही रोचक स्थिति होगी. इंग्लैंड के सामने एक यह भी अंदेशा है कि अगर उसे आखिर में सौ सवा सौ रन की जरूरत भी पड़े तो कहीं उसके लिए मुश्किल न हो जाए. यानी पहली पारी में भारतीय टीम की मौजूदा कमजोरी के बाद भी खेल अभी खत्म न माना जाए.