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- Not A Single Vulture Could Be Found In Two Forest Areas In Jabalpur, Vultures Vanishing Due To Desolation And Lack Of Food
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जबलपुर6 मिनट पहले
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पाटन के बगदरी व तमोरिया के जंगल में मिले गिद्ध।
- जिले के बरगी व सिहोरा परिक्षेत्र में एक भी गिद्ध नहीं मिले, तो जबलुर, शहपुरा में दो-तीन गिद्ध ही मिले
- जिले में वर्ष 2020 में 77 गिद्धों की तुलना में इस बार 92 गिद्ध मिले, 28 अवयस्क हैं गिद्ध
जिले में गिद्धाें की संख्या निराश करने वाली है। शहरी क्षेत्र ही नहीं अब ग्रामीण क्षेत्रों में भी गिद्धों के लिए भोजन और हरने का ठौर ढूंढना मुश्किल हो रहा है। मृत जानवरों पर निर्भर रहने वाले गिद्धों को पर्याप्त भोजन भी नहीं मिल पा राह है। गिद्धों की कई प्रजातियां लुप्त हो रही हैं। वन विभाग के अधिकारियों की गणना में जिले में कुल 92 गिद्ध मिले हैं। इसमें 28 अवयस्क हैं। पिछले वर्ष 2020 में 77 गिद्धों की तुलना में आंकड़े भले ही उत्साह बढ़ाने वाली दिख रही हो, लेकिन तस्वीर भयावह है।
परिक्षेत्र | स्थल | वयस्क | अवयस्क | घोंसला |
पाटन | बगदरी व तमोरिया | 29 | 24 | 12 |
शहपुरा | बेलखेड़ा | 02 | 01 | 01 |
कुंडम | मोहनी | 31 | 03 | 05 |
जबलपुर | खंदारी डेम | 02 | 00 | 00 |
बरगी व सिहोरा में नहीं मिले गिद्ध
जानकारी के अनुसार जिले में बरगी और सिहोरा क्षेत्र में एक भी गिद्ध नहीं मिले। जबकि बरगी व सिहोरा में वन क्षेत्र है। दोनों ही स्थानों पर गिद्ध न मिलना अच्छा संकेत नहीं माना जा रहा है। जिले में सबसे अधिक गिद्ध पाटन व कुंडम में मिले हैं। कुंडम में पहली बार गिद्धों की गणना हुई है। आदिवासी बहुल इस क्षेत्र में गिद्धों को पर्याप्त भोजन मिल पा रहा है। एक दूसरा कारण ये भी है कि यहां के जंगल में उन्हें पर्याप्त रहवास का स्थल भी मिल रहे हैं। यहां पांच आवास स्थल मिले हैं। वहीं 31 गिद्धों में तीन अवयस्क मिले हैं।
पाटन में सबसे अधिक आवास स्थल
जिले में पाटन परिक्षेत्र में गिद्धों के सबसे अधिक 12 आवास स्थल मिले हैं। इसमें 24 अवयस्क और 29 वयस्क गिद्ध मिले हैं। पाटन जिले का खेती-बारी के लिहाज से सबसे समृद्ध क्षेत्र है। यहां पशुपालन भी बड़ी संख्या में है। इस कारण गिद्धों को मृत जानवरों के रूप में पर्याप्त भोजन भी मिल पा रहा है। पाटन से लगे जंगल में इनके रहवास मिले हैं। वन्य प्राणी विशेषज्ञों के मुताबिक गिद्धों की कम संख्या पर्यावरण के इकोसिस्टम के गड़बड़ाने का संकेत है। गिद्ध पर्यावरण के इकोसिस्टम के महत्वपूर्ण घटक माना जाता है। इसी कारण इसे पक्षीराज का दर्जा प्राप्त है।
प्रदूषण और पेड़ों के अंधाधुंध कटाई से आ रही मुश्किल
वन्य प्राणी विशेषज्ञ डॉक्टर एबी श्रीवास्तव के मुताबिक गिद्धों के खाने के लिए न तो अब जानवर मिल रहे हैं। और न ही उपयुक्त आवास हैं। शहरी क्षेत्रों में बढ़ते प्रदूषण और पेड़ों के अंधाधुंध कटाई से उनका बसेरा छिनता जा रहा है। गिद्ध सबसे ऊंचाई व घने पेड़ों पर ही अपना घोंसला बनाते हैं। इसी कारण गिद्धों की कई प्रजातियां तेजी से लुप्त हो रही हैं।
दूरबीन से देखना पड़ा
डीएफओ अंजना सुचिता तिर्की के मुताबिक वन विभाग की टीम स्थानीय वॉलंटियर्स के साथ बीते रविवार को पांच बजे जंगलों, पहाड़ों पर पहुंची तो बड़ी मुश्किल से गिद्ध नजर आए। डुमना के जंगल से लेकर कटंगी, कैमोरी, निगरी, बरगी, आदि क्षेत्रों में गिद्धों की गणना के लिए दूरबीन की मदद लेनी पड़ी। गिद्ध समूह में न होकर टुकड़े में नजर आए। गणना में जिले में कुल 92 गिद्ध ही सामने आए हैं। इसमें 28 अवयस्क हैं। जिले में कुल 18 घोंसला मिला है।
ये प्रजातियां हो रही लुप्त
बियर्डेड वल्चर, इजिप्शियन वल्चर, स्बेंडर बिल्ड, सिनेरियस वल्चर, किंग वल्चर, यूरेजिन वल्चर, यूरेशियन ग्रिफन, ग्रिपुम वल्चर, जिप्सटेरनूईरोस्ट्रिस और वाइट बैक्स वल्चर, हिमालयन ग्रिफन ।
प्रजाति | वयस्क | अवयस्क |
इंडियन/लोंग बिल्ड गिद्ध (देशी गिद्ध) | 36 | 04 |
सफेद पीत या व्हाईट बैक्ड गिद्ध | 09 | 00 |
सफेद या इंजिप्शयन गिद्ध | 19 | 24 |