महिला के पति सौरभ जैन ने बताया कि आंगनबाड़ी सहायिका सरिता चौरसिया ने उन्हें नसबंदी के लिए प्रेरित किया था. जिसके बाद वो बीएमसी में अपनी पत्नी का ऑपरेशन कराने गए थे. अस्पताल में भर्ती होने के दो दिन बाद पत्नी की हालत बिगड़ गई. इसके बाद वो उसे लेकर निजी अस्पताल गए. यहां जांच के दौरान पता चला कि ऑपरेशन के दौरान खून की नस कटने से लगातार ब्लीडिंग हो रही है. हालत गंभीर देख यहां से भी उसे दूसरे निजी अस्पताल रेफर कर दिया.
सौरभ जैन के अनुसार यहां डॉ. संतोष राय ने 31 जनवरी को उनकी पत्नी का ऑपरेशन कर ब्लीडिंग रोक दी, लेकिन उसके शरीर में सिर्फ तीन प्रतिशत हीमोग्लोबिन शेष बचा था. डॉक्टरों ने उन्हें जिला अस्पताल के ब्लड बैंक से खून, प्लाज्मा और प्लेटलेट्स लाने को कहा था. लेकिन इतनी लापरवाही के बाद भी हमें बगैर डोनर और राशि के ब्लड नहीं मिला. उन्होंने डोनर ढूंढ-ढूंढ कर छह यूनिट ब्लड, 10 यूनिट प्लाज्मा और पांच प्लेटलेट्स लगाए. इसके बाद भी निकिता का हीमोग्लोबिन नहीं बढ़ा. तो उसे बीएमसी के आईसीयू वार्ड में भर्ती कराया लेकिन उसे बचाया नहीं जा सका.
सौरभ के मुताबिक डॉक्टरों ने उन्हें बताया कि उनकी पत्नी के पेट में ब्लीडिंग तो रुक गई, लेकिन इंफेक्शन होने से निकिता डीआईसी का शिकार हो गई. सौरभ ने इस मामले में लापरवाही बरतने वाले डॉक्टरों पर कार्रवाई की मांग की है. वहीं डॉक्टरों का कहना है कि महिला की मौत का कारण नसबंदी नहीं है कुछ और ही होगा. नस कटी होती तो वो एक दिन भी जीवित नहीं रहती.