विराट कोहली जिस ड्यूक बाल की पैरवी कर रहे हैं,वो कैसी होती हैं, कैसे बनती हैं– News18 Hindi

विराट कोहली जिस ड्यूक बाल की पैरवी कर रहे हैं,वो कैसी होती हैं, कैसे बनती हैं– News18 Hindi


इंग्लैंड के खिलाफ मौजूदा घरेलू क्रिकेट सीरीज में चेन्नई टेस्ट में हार के बाद भारतीय टीम के कप्तान विराट कोहली ने इस्तेमाल की जा रही आधिकारिक एसजी बाल्स को लेकर नाखुशी जाहिर की है. उन्हें अगर गेंद की सीम से शिकायत है तो ये भी कहना है कि ये गेंदें लंबे समय तक शेप में नहीं रहतीं. कोहली ने एसजी की जगह ड्यूक बॉल से खेलने की इच्छा जाहिर की है.

दुनियाभर में जहां भी क्रिकेट खेली जाती है, वहां ड्यूक गेंदों का ही इस्तेमाल ज्यादा होता है. ये वर्ल्ड क्रिकेट में सबसे लंबे समय से इस्तेमाल की जा रही हैं. वैसे फिलहाल वर्ल्ड क्रिकेट ड्यूक के साथ एसजी और कुकराबुरा गेंदों का भी इस्तेमाल होता है. तीनों को ही क्रिकेट खेलने वाले देश अच्छी गेंदों में शुमार करते हैं. एसजी गेंद लंबे समय से बीसीसीआई की आधिकारिक गेंद रही है. आमतौर पर घरेलू सीरीज में इसी का इस्तेमाल होता है.

जानते हैं ड्यूक गेंदों के बारे में. आमतौर पर जब वर्ल्ड कप होता है तो उसमें इसी गेंद का इस्तेमाल होता है. पिछले वर्ल्ड कप में यही गेंद इस्तेमाल हुई थी. ड्यूक गेंदें बनाने वाली कंपनी क्रिकेट की सबसे पुरानी कंपनी है, ये करीब 225 सालों से गेंदें बना रही है. कुछ साल पहले ब्रिटेन की इस कंपनी को एक भारतीय ने खरीद लिया था.

ड्यूक गेंदों का क्रिकेट के साथ एक लंबा रिश्ता रहा है. ये दमदार गेंदें स्काटलैंड की एक खास गाय की नस्ल के चमड़े से तैयार होती हैं.

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कौन से देश किन गेंदों का इस्तेमाल करते हैं

वर्ल्ड क्रिकेट में जो देश शिरकत करते हैं, उसमें इंग्लैंड और वेस्टइंडीज की टीम ड्यूक गेंदों का इस्तेमाल करती हैं. आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, साउथ अफ्रीका और पाकिस्तान जैसे देश कुकराबुरा गेंदों से खेलते हैं यानि जब भी इन देशों में क्रिकेट के कोई मैच होते हैं तो उसमें आस्ट्रेलिया की बनी कुकराबुरा गेंदें इस्तेमाल होती हैं. एसजी गेंदों का इस्तेमाल भारत करता है लेकिन बांग्लादेश और श्रीलंका की टीमें भी इससे खेलती हैं.

90 ओवरों तक आराम से चलती हैं ड्यूक गेंदें

जहां तक आईसीसी की वर्ल्ड कप के लिए ऑफिशियल गेंद का सवाल है तो वो गेंद अब ड्यूक है. ड्यूक गेंदों के बारे में कहा जाता है कि ये गेंदें इतनी दमदार होती हैं कि इनसे बहुत आराम से 90 ओवरों तक का खेल खेला जा सकता है. इनमें कोई खराबी नहीं आती. लेकिन कुकराबुरा और एसजी बॉल्स को लेकर ऐसा नहीं कहा जा सकता. उनका शेप 40 ओवरों के बाद बदलने लगता है.

लंदन में ड्यूक बॉल फैक्ट्री में इसके भारतीय मालिक दिलीप जजोदिया

ऐसा पहली बार नहीं है जबकि भारतीय क्रिकेट कप्तान विराट कोहली ने एसजी गेंदों की क्वालिटी पर सवाल उठाया है. वो पहले भी ऐसा करते हुए ड्यूक गेंदों की वकालत कर चुके हैं. यहां तक आस्ट्रेलिया के क्रिकेटर भी मानते हैं कि ड्यूक गेंदें ज्यादा सही रहती हैं.

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एक भारतीय की है ड्यूक गेंदें बनाने वाली ब्रितानी कंपनी

ड्यूक गेंदें बनाने वाली ब्रितानी कंपनी फिलहाल 74 वर्षीय दिलीप जजोदिया की है. बेंगलुरु के रहने वाले जजोदिया 1962 में भारत से इंग्लैंड पहुंचे. वहां उनकी कंपनी मॉरेंट क्रिकेट का सामान बनाने लगी. इसके बाद उन्होंने 1760 में स्थापित ड्यूक कंपनी को 1987 में खरीद लिया. जजोदिया टेस्ट क्रिकेटर बनना चाहते थे लेकिन अब वो दुनिया की सबसे बेहतरीन क्रिकेट गेंद बनाने वाली कंपनी के मालिक हैं.

कहा जाता है कि आईसीसी वर्ल्ड कप में जो ड्यूक गेंदें इस्तेमाल हो रही हैं, उसमें अब तक क्वालिटी की कोई समस्या नहीं आई है. इसके मालिक दिलीप जजोदिया आफिशियल क्रिकेट में इस्तेमाल होने वाली गेंदों को खुद चेक करते हैं. 200 सालों में इस गेंद को बनाने और क्वालिटी में कोई बदलाव नहीं हुआ है.

ड्यूक बॉल बनने की प्रक्रिया

क्यों स्कॉटिश गाय के लेदर से बनती हैं ये गेंदें

वैसे ड्यूक गेंदों की कड़ी प्रतिस्पर्धा हमेशा ही कुकराबुरा गेंदों से होती है लेकिन ये सबने माना है कि ड्यूक गेंदों का कोई जवाब नहीं. जजोदिया ने पिछले दिनों एक इंटरव्यू में क्रिकेट नेक्स्ट डॉट कॉम को बताया था कि ये गेंदें स्कॉटिश गाय के चमड़े से बनाई जाती है. असल में चमड़ा काफी दमदार होता है. यही उत्कृष्ट क्वालिटी वाला लेदर गेंदों की गुणवत्ता को भी उम्दा बनाता है.

जिस स्कॉटिश गाय का चमड़ा गेंद के लिए इस्तेमाल होता है, वो स्काटलैंड की एंगस गाय होती है. गाय की पेट की चमड़ी काफी पतली होती है, जब वो गर्भवती होती है तो ये खींचता भी है. वहीं पीठ बहुत मजबूत होती है.

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कैसे बनती है ये गेंद 

लिहाजा गाय के शरीर की पीठ के खास हिस्से का चमड़ा ही कंपनी खरीदती है, क्योंकि वो सबसे मजबूत होता है. उसी को हमारी कंपनी खरीदती है. हम इसकी चार इंच की मोटाई वाले पैनल काटते हैं. पूरी गेंद में एक ही चमड़े का इस्तेमाल होता है. ड्यूक गेंद फोर क्वार्टर की होती है. यानी चमड़े के चार टुकड़ों को सिलकर एक गेंद बनाई जाती है. चारों टुकड़े एक ही मोटाई के होते हैं.

ड्यूक बॉल्स कई तरह और रंगों में बनाई जाती हैं, इनकी जांच परख करने के बाद ही इन्हें ओके किया जाता है

इस गेंद के अंदर सही मात्रा में कार्क और रबर का इस्तेमाल होता है ताकि नमी को बर्दाश्त कर पाए और मजबूत बनी रहे. लिहाजा हर गेंद इस मामले में दमदार होती है. फिर इसे हाथ से सिला जाता है. जबकि कुकराबुरा गेंदों की सिलाई में हाथ और मशीन दोनों का इस्तेमाल होता है.

इन गेंदों से स्विंग गेंदबाजों को मिलती है खूब मदद

इस गेंद की सिलाई, स्विंग और उछाल गेंदबाजों के लिए वरदान साबित होती है.जब इंग्लैंड में बादल छाए हों तो ये ड्यूक गेंद अंदर और बाहर दोनों तरफ स्विंग करती है.यही इसकी सबसे बड़ी खासियत है. डयूक गेंद की भारतीय उपमहाद्वीप में भी स्विंग कर सकती है. ड्यूक की एक सिंगल गेंद की सिलाई में तीन से साढ़े तीन घंटे का वक्त लगता है. इस गेंद की दूसरी खासियत यह है कि इसकी चमक भी देर तक बनी रहती है.

ड्यूक, एसजी और कुकराबुरा गेंदों में अंतर

कूकाबुरा गेंद ऑस्ट्रेलिया में बनती है. एसजी गेंदें भारत में बनती हैं. कुकराबुरा गेंदें 20-22 ओवरों के बाद डीशेप होने लगती हैं. एसजी गेंद की सिलाई तो ठीक होती है लेकिन इसकी चमक बहुत जल्दी खत्म हो जाती है. भारतीय कप्तान विराट कोहली की शिकायत है कि इस सीरीज में उन्होंने देखा है कि एसजी बाल 60 ओवरों तक भी नहीं चल पा रही है.





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