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भोपाल43 मिनट पहलेलेखक: राजेश गाबा
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गौरव प्रीति को गुलाब का फूल देकर वैलेंटाइन डे विश करते हुए।
- बोले- बेटी से उम्मीद थी कि वो आवाज बनेगी, लेकिन वह भी नहीं सुन-बोल नहीं सकती
कहते हैं, प्यार की जुबां नहीं होती। यह महसूस करने की चीज है। यह बात शहर के गौरव और प्रीति शर्मा पर फिट बैठती है। भोपाल के आशा निकेतन में पढ़ते हुए पहले दोनों में नोक-झोंक और लड़ाई हुई। फिर प्यार हुआ और जीवनसाथी बने। इस सफर में समाज, जाति के बंधन सामने आए। दोनों ने हार नहीं मानी। इशारों की जुबां से बात करने वाला यह कपल सुन और बोल नहीं सकता। फिर भी प्यार के एहसास को गहराई से समझता है। उनकी एक बेटी हुई। इन्हें उम्मीद थी कि वो इनकी आवाज बनेगी। लेकिन उनकी बेटी गौरांशी भी सुन और बोल नहीं सकती। अपने प्यार की ताकत से ईश्वर के इस फैसले को स्वीकारा और बेटी के शौक बैंडमिंटन में आगे बढ़ाया। आज 11 साल की गौरांशी बैंडमिंटन की इंटरनेशनल प्लेयर है। वैलेंटाइन डे पर दैनिक भास्कर में इस कपल की कहानी आपके लिए लेकर आए हैं। इस अनूठे कपल की कहानी उन्हीं की इशारों की जुबानी।

गौरव और प्रीति
प्रीति ने इशारों में बताया कि ‘मैं कानपुर की हूं और गौरव कोटा के। हम भोपाल में आशा निकेतन स्पेशल स्कूल में 1986 में पढ़ाई कर रहे थे। तब मेरे और गौरव के बीच काफी लड़ाई और नोक-झोंक होती थी। 9वीं तक यह सिलसिला चला। फिर प्यार हुआ। नौवीं में गौरव ने मुझे प्रपोज किया। मैंने एक्सेप्ट कर लिया, तभी मेरे पापा की फैक्ट्री में आग लग गई। उन्हें काफी नुकसान हुआ। वे मुझे बीच सेशन में ले गए। तब हमारे प्रिंसिपल ने कहा कि आप बीच सेशन में ले जा रहे हो, अब हम इसे कंटीन्यू नहीं करने देंगे। जब सारा मामला सेटल हो गया। तब पापा मुझे स्कूल ले आए, लेकिन प्रिंसिपल ने मना कर दिया। यह बात गौरव को पता चली तो वह प्रोटेस्ट करने के लिए तेज बारिश में स्कूल के स्टेज पर खड़े होे गए। उनके साथ। हमारी सारी क्लास के बच्चे आ गए। प्रिंसिपल ने डराया, तो बाकी क्लास में चले गए, लेकिन गौरव खड़े रहे। प्रिंसिपल ने मेरे साथ गौरव को भी टीसी दे दी। इस तरह हम दोनों अपने-अपने घर चले गए।’

गौरव, प्रीति अपनी बेटी गौरांशी के साथ।
गौरव ने बताया कि ‘हम एक दूसरे को खत लिखने लगे। यह सिलसिला चलता रहा। एक दिन प्रीति के पापा ने खत देख लिए। हंगामा हुआ। प्रीति गुप्ता हैं और मैं शर्मा। ऐसे में दोनों के घरवाले राजी नहीं हो रहे थे। फिर प्रीति की तबीयत ज्यादा खराब हुई, तो उनकी मम्मी ने कहा कि मैं कानपुर आ जाऊं। प्रीति ठीक नहीं हो रही। जब मैं पहुंचा, तब प्रीति हॉस्पिटल में थी। इस तरह मैं उससे मिलने लगा। धीरे-धीरे वह ठीक हुई, तब शादी की बात चली तो कुंडली मिलाई गई। फिर भी काफी विरोध अवरोध के बाद हमारी सगाई 14 फरवरी 2004 को हुई और 15 फरवरी 2004 को हम शादी के बंधन में बंध गए। हमारी एक बेटी है। गौरांशी वह भी हमारी तरह सुन और बोल नहीं सकती। हमें शिकायत नहीं। अब वही हमारी जिंदगी है। वह बैंडमिंटन में देश का नाम इंटरनेशनल लेवल पर रोशन करना चाहती है।’