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जबलपुर15 मिनट पहले
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डेढ़ साल की मासूम दीपाली को कुत्तों ने नोच खाया।
- माढ़ोताल क्षेत्र स्थित कठौंदा की घटना, घर के सामने खेल रही थी मासूम
- बच्ची को चाने मां कुत्तों से भिड़ गई, तब तक उसे नोच कर लहूलुहान कर चुके थे
जिले में एक दिल दहला देने वाला वाकया सामने आया है। आवारा कुत्तों के झुंड ने घर के सामने खेल रही डेढ़ साल की मासूम बच्ची को नोच खाया। मासूम बेटी को बचाने के लिए मां कुत्तों से भिड़ गई। लहूलुहान हालत में बेटी को लेकर परिवार मेडिकल में पहुंचा। वहां शनिवार को उसका ऑपरेशन भी हुआ। खून भी चढ़ाया गया, लेकिन मासूम ने रविवार को दम तोड़ दिया। बेटी की मौत की पीड़ा से अधिक मां-पिता व्यवस्था को लेकर गुस्से में हैं। आरोप लगाया कि नगर निगम शहर भर के कुत्तों को लाकर कठौंदा में छोड़ रहा है।
घर के सामने खेल रही मासूम पर टूट पड़े कुत्ते
जानकारी के अनुसार कठौंदा निवासी सुशील श्रीवास्तव मजदूरी करते हैं। वह शुक्रवार सुबह ही काम पर चले गए थे। घर पर पत्नी वर्षा श्रीवास्तव और उसके दोनों बच्चे तीन साल का बेटा विवेक और डेढ़ वर्षीय बेटी दीपाली उर्फ गुड़िया थे। माढ़ोताल पुलिस के मुताबिक वर्षा घर के काम में लगी थी। घर के सामने दोनों बच्चे खेल रहे थे। तभी कुत्तों का झुंड मासूम पर टूट पड़े।

आवारा कुत्तों से शहर परेशान, अब तो जानलेवा भी बन गए।
नोंच कर लहूलुहान कर दिया
करीब आधा दर्जन कुत्ते मासूम दीपाली पर टूट पड़े। मासूम चीखती रही और कुत्ते उसे नोचते रहे। चीख सुनकर मां वर्षा दौड़ कर बाहर आई और कुत्तों को भगाया। तब तक कुत्ते मासूम को बुरी तरह से नोच खाए थे। वर्षा ने पति सुशील को खबर दी। काम छोड़कर वह घर पहुंचा और बेटी को लेकर मेडिकल पहुंचा। वहां दो दिन तक उसका इलाज होता रहा। शनिवार को उसका ऑपरेशन भी हुआ। खून भी चढ़ाया गया, लेकिन मासूम को बचाया नहीं जा सका।
आज हुआ अंतिम संस्कार
आज पीएम के बाद शव परिजनों के सुपुर्द किया गया। पिता सुशील श्रीवास्तव ने बेटी को तिलवारा घाट में रोते हुए अंतिम विदाई दी। सुशील ने बताया कि उसकी दो संतानों में एक बेटा व बेटी थी। आर्थिक तंगी के बावजूद परिवार खुश था, लेकिन इस हृदय विदारक घटना ने परिवार को तोड़ कर रख दिया है। सुशील ने गुस्सा जताते हुए कहा कि नगर निगम शहर भर के आवारों कुत्तों को कठौंदा में लाकर नसबंदी करके वहीं छोड़ देती है।
कुत्तों की नसबंदी में खेल
शहर में 2013 में आवारा कुत्तों काे लेकर सर्वे कराया गया था। तब 40 हजार कुत्ते सामने आए थे। दुर्ग की एनिमल फाउंडेशन केयर को कुत्तों की संख्या पर काबू करने के लिए नसबंदी करने का ठेका दिया गया था। इस फर्म को निगम से एक कुतिया की नसबंदी के एवज में 650 रुपए और कुत्ते की नसबंदी के एवज में 450 रुपए मिलते थे। वर्तमान में ठेका बगलामुखी फाउंडेशन को मिला है। उसे 700 रुपए प्रति नसबंदी का भुगतान किया जा रहा है। इसके बाद भी कुत्ते-कुतियों की संख्या मौजूदा समय में एक लाख पार कर चुकी है।
इस कारण खूंखार हुए कुत्ते
वेटरनरी के रिटायर्ड डॉक्टर एके श्रीवास्तव के मुताबिक कठौंदा में ही कुत्तों की नसबंदी की जा रही है। वहीं पर शहर में मृत पशुओं का चर्म उतरता है। इस कारण कुत्ते खूंखार हो गए हैं। नियम है कि शहर में जहां से कुत्ते-कुतियों को नसबंदी के लिए पकड़ते हैं, नसबंदी के बाद वहीं पर छोड़ने का प्रावधान है। पर ठेका लेने वाली फर्म कुत्तों को नसबंदी के बाद कठौंदा में ही छोड़ दे रही है। वहां लगातार मृत जानवरों का मांस खाने के चलते वे खूंखार हो गए हैं।