रात के दो बजने को आए हैं, मुशायरा अब परवान चढ़ा है. वाह जनाब क्या कह दिया…, कमाल…, इरशाद है. वाह…, क्या कहने, आपके मेरा पूरा दीवान आपके इस शेर के सदके है…. शमां रोशन है उनके सामने. और वो मुतमाईन पढ़े जा रहे हैं अपने अशआर. वो हंसता मुस्कुराता चेहरा, और हर शेर के बाद शोर इरशाद इरशाद. इसी शोर शराबे में जाने कब नींद टूट जाती है और बशीर साहब घबराकर उठ बैठते हैं. घंटे भर की नींद का, घंटे भर का मुशायरा मुल्तवी हो जाता है, फिर नई रात, नई नींद, नए ख्वाब का इंतजार लिए. उम्र की ढलान देख रहे शायर बशीर बद्र के लिए इन दिनों तो जैसे ये हर रात की कहानी है. हर रात उजाले उनकी यादों के उनके साथ आते हैं, और आधी रात को ऐसे ही टूट जाते हैं. लेकिन सिर्फ नींद, बीती खुशनुमा यादों में डूबे कुछ ख्वाब ही नहीं टूटते हर रात, और भी बहुत कुछ है बशीर साहब की जिंदगी में जो बहुत तेजी से दरक जाता है…
भोपाल के ईदगाह हिल्स में है बशीर बद्र का आशियाना.
भोपाल के ईदगाह हिल्स इलाके में बशीर साहब का आशियाना, वो दर कि जहां एक मुद्दत तक मेला लगा रहता था लोगों का. उस दरवाजे पर अब सिर्फ तन्हाई दस्तक देने आती है. यही तो था वो घर कि जहां दिन रात बशीर साहब के चाहने वालों का हुजूम लगा रहता था. कुछ उन्हें सुनने आते, कुछ सीखने, और कुछ उस शख्स को करीब से देखने और महसूसने भी आते थे कि जिसकी शायरी ने उन्हें हालात की मुश्किलों में हौसला दिया है. कि जिसकी शायरी ने दिया उन्हें जिंदगी का फलसफा. वो शायर कि जिनकी शायरी में जाने कितने धड़कते दिलों की बयानी हुई है. वो बशीर साहब ही तो थे कि जिन्होंने सिखाया, जो गले मिलोगे तपाक से कोई हाथ भी ना मिलाएगा ये नए मिज़ाज का शहर है, जरा फासले से मिला करो. वो अज़ीम शायर कि जिसने बहुत पहले बदलती दुनिया की नब्ज थाम ली थी और कहा था कि कहां,अब दुआओं की बरकतें, वो नसीहतें, वो हिदायतें,ये जरूरतों का खुलूस है, कि ये मतलबों के सलाम है.
बशीर साहब को आखिरी बार उर्दू अकादमी में सुना था फिर देखना सुनने चाहती थी उन्हें. लेकिन मुमकिन ना हो सका. ये कोई आजकल की बात नहीं है, कि बीते कुछ महीनों से ना दिखाई दिए हों बशीर साहब. अदबी मेहफिलों को छोड़े हुए भी उन्हें कई बरस होने को आए हैं अब… दाद लीजिए बशीर साहब, मुशायरा तो फिर भी अभी बाकी है…