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- The Fields Covered In Rivers, Now Grown On Sand; Land On Paper, Not On The Spot, Due To Cutting Along The Banks Of Tributaries Including Narmada, Tawa
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हाेशंगाबाद2 घंटे पहले
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रंढाल के सामने सतधारा के पास कटाव से नर्मदा में समाए खेत।
- किसी का आधा खेत तो किसी का किनारा ही बचा
- 8 एकड़ जमीन की कास्तगार थी अब सिर्फ 4 एकड़ ही बची : श्रीराम परसाई
बाढ़ हर साल नर्मदा, तवा समेत सहायक नदियों के किनारे काट रही है। इन किनारों पर जो खेत राजस्व रिकॉर्ड में कभी किसानों की आमदनी का जरिया हुआ करते थे, वे अब मौके से गायब हैं। ये जमीन नदी में समा गई है। यहां रेत ही रेत है, इसी पर खेती अब इन किसानों की मजबूरी हाे गई। हर साल होने वाले ऐसे नुकसान से किसानों को बचाने के लिए सरकार के पास कोई योजना नहीं है और ना ही राहत का कोई प्रावधान। इस त्रासदी को झेल रहे इलाकों से भास्कर की ग्राउंड रिपोर्ट…।
8 एकड़ जमीन की कास्तगार थी अब सिर्फ 4 एकड़ ही बची : श्रीराम परसाई
किसान श्रीराम परसाई की बांकोड़ नदी के किनारे 8 एकड़ जमीन थी। अब 4 एकड़ जमीन ही बची है। किनारे टूट कर नदी में मिल चुके हैं। नवीन परसाई की दाे एकड़ में से 50 डिसमिल और महादेव दीक्षित की 4 एकड़ में से डेढ़ एकड़ बची है। रामविलास यादव, फल्लू अहिरवार, मोहन परसाई की जमीन का भी कटाव हो गया। नसीराबाद के किसान रेवाश्री राम यादव, गाेपाल यादव, सराेज यादव, हरिकृष्ण केवट, सुखवति अहिरवार की जमीन नर्मदा नदी से कटाव में कट रही है।
हर गांव में ऐसे हालात
नर्मदा नदी के किनारे के गांव बछबाड़ा में संताेष मीणा, बलराम मीणा, की नर्मदा किनारे की जमीन कट रही है। बरंडुआ में रामेश्वर मीणा की जमीन बह गई। तवा नदी के किनारे गांव मेहराघाट में किसान रामगाेपाल बानिया की दाे एकड़ में से अब किनाेर ही बची है। श्यामकिशोर देवीराम की डेढ़ एकड़ जमीन तवा नदी में मिल गई है। बालकिशन की डेढ़ एकड़ जमीन बह गई।
तवा डेम से बांद्राभान तक सैकड़ों एकड़ जमीन बही, 20 साल पहले बनी अधूरी पिचिन भी टूटी
बांद्राभान और घानाबढ़ के बीच 20 साल पहले अधूरी पिचिन बनी थी, जो टूटने लगी है। यह आने वाले समय में और बड़ा खतरा बनेगी, क्योंकि सड़क के पास आता जा रहा है। ध्यान नहीं दिया तो सड़क भी कट जाएगी। तवा डैम से बांद्राभान संगम तक पिछले डेढ़ दो दशक से सैकड़ों एकड़ भूमि तवा नदी के बहाव से कट कर रेतीले मैदान में बदल चुकी है। यदि पिचिन बन जाती तो करोड़ों रुपए की उपजाऊ भूमि बच जाती।
भूमि कटकर रेत के मैदान बने
बांद्राभान क्षेत्र के बगीचे कटाव के चलते नष्ट हो रहे हैं। हर वर्ष खेत के साथ बगीचे भी कट रहे हैं। बगीचे की काफी भूमि कट कर रेतीला मैदान बन गई है।
बही जमीन का सिर्फ लगान छोड़ा
जमीन रेत मैदान में तब्दील हो गई हैं उन्हें शासन ने राहत देने के नाम पर जो भूमि कट गई है, उनसे लगान नहीं लिया जाएगा। यह किसानों के साथ छलावा जैसा है।
ठेकेदार रेत को उठा सकता है
बाढ़ में जमीन कटने पर मुआवजे के प्रावधान नहीं है। अगर उसमें कटी जमीन पर रेत आती जाती है तो ठेकेदार से अनुबंध कर के ठेकेदार रेत को उठा सकता है। -शैलेंद्र बड़ोनिया, तहसीलदार ग्रामीण

अशोक विसबाल, पर्यावरणविद
एक्सपर्ट व्यू; कटाव रोकने पौधे लगाएं
नदी किनारे कटाव को रोकने के लिए बांस और पौधे लगाना चाहिए। यही उपाय हो सकता है। नर्मदा के किनारे पर घास लगाएं। खनिज विभाग के माध्यम से शासन को प्रतिवर्ष रेत रायल्टी के रूप में करोड़ों रुपए मिल रहे हैं। पिचिन बनवाई जा सकती है।