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इंदौर35 मिनट पहले
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8 करोड रुपए के मंडी घोटाला मामले में आरोपी और IAS अधिकारी ललित दाहिमा को 8 मार्च तक गिरफ़्तारी से राहत मिल गई। विशेष न्यायालय में उनका गिरफ़्तारी वारंट जारी किया था। इसे चुनौती देते हुए वह हाईकोर्ट पहुंच गए। कोर्ट ने दाहिमा को अंतरिम राहत देते हुए कार्रवाई पर रोक लगा दी । सोमवार को दाहिमा की याचिका का निराकरण होना था लेकिन समय समाप्त होने से सुनवाई टल गई अब कोर्ट मामले में 8 मार्च को सुनवाई करेगी।
गौरतलब कि वर्ष 2004 में तत्कालीन मंडी सचिव और वर्तमान में इंदौर कलेटर मनीष सिंह ने एरोड्रम थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि मंडी शुल्क के नाम पर मंडी में 8 करोड रुपए का घोटाला हुआ है। इससे पहले मंडी सचिव रहे ललित दाहिमा ने 23 फर्मों को फर्जी पते पर लाइसेंस जारी किए थे। फर्जी पते पर खुली इन फर्मों ने सालों तक बगैर मंडी शुल्क चुकाए व्यापार किया। मंडी शुल्क की वसूली के लिए जब इन फर्मों को नोटिस जारी किया तो पता चला कि जिस पते पर लाइसेंस जारी हुआ है वह फर्म ही नहीं है। इस तरह 8 करोड रुपए का राजस्व का नुकसान हुआ। लाइसेंस दायमा के कार्यकाल में जारी हुए थे इसलिए मामले में दाहिमा सहित 28 लोगों को आरोपी बनाया गया है। ईओडल्यू ने दायमा के खिलाफ 2017 में चालान पेश किया था। उस वक्त वहां न्यायालय में उपस्थित भी हुए और जमानत भी करवाई लेकिन इसके बाद से वे कभी कोर्ट में उपस्थित नहीं हुए।
विशेष न्यायालय द्वारा समन जारी करने के बावजूद जब दाहिमा उपस्थित नहीं हुए तो कोर्ट ने उनका गिरफ़्तारी वारंट जारी कर दिया। इसे चुनौती देते हुए दाहिमा ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। हाईकोर्ट ने दाहिमा को अंतरिम राहत देते हुए आदेश दिया है कि विशेष न्यायालय याचिका के निराकरण तक कार्यवाही ना करें इधर जिला जिला कोर्ट में प्रकरण में मंगलवार को सुनवाई होगी।
ऐसे किया था फर्जीवाड़ा
तत्कालीन मंडी सचिव और इंदौर कलेक्टर मनीष सिंह ने बताया था कि 23 फर्मों के बनाए गए लाइसेंसों में मंडी के नियमों की अनदेखी की गई और बिना मंडी शुल्क के ही लाइसेंस जारी कर दिए गए। आरोपियों ने एक-दूसरे की पहचान पेश की और संगठित रूप से साजिश रची थी। इसी के चलते लाइसेंस बनते गए। मंडी ने लाइसेंस में दर्ज पतों पर मंडी शुल्क वसूली के लिए नोटिस भेजे तो उसका कोई अस्तित्व ही नहीं था। पते ही फर्जी निकले। इससे करीब आठ करोड़ से ज्यादा का घपला हुआ।
मुख्य चालान ऐतिहासिक था
19 साल पुराने मामले में 2011 में लिपिक कानूनगो सहित 23 व्यापारिक फर्मों के खिलाफ जो चालान पेश हुआ, उसकी कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है। वह ऐतिहासिक चालान करीब डेढ़ लाख पन्नों का था। मामले में व्यापारी जगदीश तिवारी, दिलीप अग्रवाल, आशीष गुप्ता, अनिल मित्तल, आनंद गुप्ता, अमित गर्ग, रवि काकाणी, मनीष गोयल, चंद्रशेखर अग्रवाल, आवेश गर्ग, हरीश गलकर, अश्विन गोयल, सौरभ मंगल, आनंदकुमार जैन, कैलाशचंद्र, मुरारीलाल अग्रवाल, संजय गर्ग, बाबूलाल अग्रवाल, श्यामसुंदर अग्रवाल, विजयकुमार अग्रवाल व सचिन मंगल आरोपी बनाए गए। इस मामले में दो व्यापारी संजय पिता मनसुखभाई मेहता व प्रदीप पिता शिवस्वरूप जैन अभी तक फरार है।