ब्रेवरी अवॉर्डी पूजा की कहानी: चल नहीं सकती, एमबीए के बाद नौकरी से रिजेक्ट किया तो खुद की कंपनी बनाई, व्हील चेयर पर देती हैं मार्शल आर्ट और कम्युनिकेशन की ट्रेनिंग

ब्रेवरी अवॉर्डी पूजा की कहानी: चल नहीं सकती, एमबीए के बाद नौकरी से रिजेक्ट किया तो खुद की कंपनी बनाई, व्हील चेयर पर देती हैं मार्शल आर्ट और कम्युनिकेशन की ट्रेनिंग



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  • Can Not Walk, After Rejecting A Job After MBA, Formed Her Own Company, Gives Martial Arts And Communication Training On Wheel Chair.

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भोपाल6 मिनट पहलेलेखक: राजेश गाबा

एंटरप्रेन्योर, मार्शल आर्ट प्लेयर पूजा को कई अवॉर्ड मिल चुके हैं।

  • ड्राइविंग भी करती हैं, एंटरप्रेन्योर पूजा सुब्रमण्यम को मिल चुका है ब्रेवरी अवॉर्ड
  • कहा- घसीटते हुए क्लास तक जाती थी, बारिश में कपड़े हो जाते थे खराब

‘ऐ आसमां तू भी आजमा ले अपनी ऊंचाइयों को
हम परों से नहीं, हौसलों से उड़ा करते हैं।’

ये पंक्तियां भोपाल में रहने वाली ​​42 वर्षीय एंटरप्रेन्योर, कम्युनिकेशन और मार्शल आर्ट प्लेयर दिव्यांग पूजा सुब्रमण्यम पर सटीक बैठती हैं। पूजा का जीवन न केवल महिलाओं, बल्कि हर उस शख्स के लिए प्रेरणा है, जो कुछ कमियों के कारण जिंदगी से मुंह मोड़ लेते हैं। न्यूरो डिसऑर्डर से पीड़ित पूजा बचपन से ही व्हील चेयर पर हैं। बावजूद हौसला नहीं छोड़ा। पढ़ाई जारी रख एमबीए किया। समय बीतने के साथ प्रॉब्लम्स भी बढ़ती गई।

डॉक्टर्स ने कहा- कभी मां नहीं बन सकती। विल पॉवर से बेटे की मां बनी। कंपनी ने नौकरी से रिजेक्ट कर दिया। इसके बाद खुद की कंपनी बनाई और लोगों को रोजगार दिया। वह ड्राइविंग भी करती हैं। व्हील चेयर पर बैठकर मार्शल आर्ट और कम्युनिकेशन की ट्रेनिंग देती हैं। भास्कर ने पूजा के साथ आधा दिन बिताया।​​​​​ इस दौरान उनके संघर्ष की कहानी जानी। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर पेश है – खास रिपोर्ट

संघर्ष की कहानी, पूजा की जुबानी जन्म से ही चारकोट मेरीटूथ नाम की बीमारी से पीड़ित हूं। यह बीमारी प्रोग्रेसिव है। उम्र के साथ प्रॉब्लम्स बढ़ती जाती हैं। चलना सीखा, तो पैरों में कमजोरी थी। कैलिपर की सहायता से चलती थी। फिर हाथों में इफेक्ट आया। आज आवाज पर भी बीमारी असर कर चुकी है। वो 80 का दशक था। एक्सेसिबिलिटी और डिसएबिलिटी राइट्स सुनने में ही नहीं आए थे।

गर्ल चाइल्ड होना और डिसेबल्ड होना चैलेंजिंग रहा। फैमिली सपोर्टिव और प्रोग्रेसिव रही। पापा मुझे गोद में उठाकर स्कूल में सीढ़ियों से चढ़कर क्लास रूम में बैठाते थे। कई बार वो अवेलेवल नहीं होते थे। मैं घसीटते हुए क्लास तक जाती थी। बारिश में दिक्कत होती थी। क्योंकि घसीटते हुए कई बार कपड़े खराब हो जाते थे। ऐसे में बच्चों के साथ बैठने में अजीब भी लगता था। कई बार घर आकर रोती थी कि मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ। तब मां कहती थी, ईश्वर ने तुम्हें इसलिए चुना कि तुम संदेश दे सको, समाज को प्रेरणा दे सको।’

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हिंदी मीडियम इंस्टीट्यूट में दिया इंग्लिश में एग्जाम
पूजा बताती हैं कि मैंने खुद को प्रूव करने के लिए हर मुश्किल का सामना किया। 10वीं के बाद प्रैक्टिकल नहीं कर पाने के कारण काॅमर्स में शिफ्ट किया। इंग्लिश से हिंदी मीडियम में आ गई। तब डिप्रेशन भी हुआ। स्कूल में स्पेशल परमिशन ली कि हिंदी मीडियम स्कूल में इंग्लिश में एग्जाम दिया। इसी तरह ग्रेजुएशन में भी हिंदी मीडियम में अंग्रेजी में एग्जाम दिया। इंदौर से एमबीए किया।’

दोस्त बने ताकत
कॉलेज में पढ़ना था। भाई ने कहा, स्टेप लेना जरूरी है। तब परिवार से अलग अकेले हॉस्टल में रहकर पढ़ाई की। मैं अपने स्कूल, जिसमें स्पेशल अटैचमेंट था। फिजिकल चैलेंज आया। कुछ क्लासेस ऊपर होती थी। ऐसे में ऊपर नहीं जा पाती थी। तब मुझे कम्प्यूटर अलग से पढ़ना पड़ा। साथियों ने बहुत सपोर्ट किया। दोस्त मेरी ताकत बने।

जॉब में रिजेक्ट हुई तो डिप्रेशन में चली गई
पूजा के मुताबिक ‘मैंने प्रेजेंटेशन दिया तो हाथ पैर कांप रहे थे। तब मेरी दोस्त ने मेरी हाथ में लिखा था ‘यू केन डू इट’। प्रेजेंटेशन दे रही थी, तो मैं उसे ही पढ़ रही थी। मुझे लगा कि इंस्पिरेशन और राइट गाइडेंस आपका जीवन ही चेंज कर देता है। मुझे उस साल बेस्ट ओरेटर का अवॉर्ड मिला। कैंपस सिलेक्शन में डिसेबल्ड होने की वजह से मुझे रिजेक्ट कर दिया। तब लगा कि मुझे जॉब नहीं मिलेगी। मैं डिप्रेशन में चली गई, फिर सोचा कि जॉब क्रिएटर बनूंगी। इंग्लिश लैंग्वेज का इंस्टीट्यूट शुरू किया।’

कभी गिव अप नहीं किया
पूजा का कहना है कि ‘इस डिसीज का ट्रीटमेंट नहीं है। पैरों और हाथों की सर्जरी हुई। जो बहुत पेनफुल रही। फिजियोथैरेपी और ट्रीटमेंट के बाद मैरिज हुई। डॉक्टर ने कहा- आप प्रेगनेंसी कैरी नहीं कर सकतीं। ये ख्याल छोड़ दो। मैंने रुकना सीखा नहीं। सोचा, आज गिव अप कर दिया, तो मेरी तरह दूसरी महिलाएं भी सपना देखना छोड़ देंगी। यूके की केस स्टडी को डाॅक्टर के सामने रखा। 2005 में बेटे का जन्म दिया।

ड्राइविंग और मार्शल आर्ट भी सीखा
कार चलाने का सपना था। कोई भी सिखाने को तैयार नहीं था। भाई ने कार में अडॉप्टेशन किया। डरते-डरते ड्राइविंग सीखी। आज कॉन्फिडेंस के साथ ड्राइव करती हूं। पति इंटरनेशनल मार्शल आर्ट प्लेयर हैं। मैंने भी मार्शल आर्ट सीखा। पूजा को ब्रेवरी अवॉर्ड, नेशनल अवॉर्ड समेत कई सम्मान मिल चुके हैं। मेरे लिए सबसे बड़ा सम्मान है, जब कोई बोलता है कि आप हमारी इंस्पिरेशन हो।

डिसेबिलिटी इंफ्रास्ट्रक्चर के कारण
डिसेबिलिटी इंफ्रास्ट्रक्चर के कारण है। हम काम सब कुछ कर सकते हैं, सिर्फ तरीका अलग है। हमें हर जगह एक्सेस मिलेगा, तो हम सब कुछ कर सकते हैं। सरकार अगर इंफ्रास्ट्रक्चर पर काम करे, तो डिसेबल्ड मेन स्ट्रीम में सक्सेसफुली काम कर सकते हैं।

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