मप्र के दो तीरंदाजों की विजय गाथा: रात 11 बजे नए तीर कमान, किट मिली, सुबह 6 बजे तक उन्हें सेट किया, फिर डेढ़ घंटे प्रैक्टिस की और दोपहर में जीत लाए तीन मेडल

मप्र के दो तीरंदाजों की विजय गाथा: रात 11 बजे नए तीर कमान, किट मिली, सुबह 6 बजे तक उन्हें सेट किया, फिर डेढ़ घंटे प्रैक्टिस की और दोपहर में जीत लाए तीन मेडल


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  • At 11 O’clock, New Arrows Were Commanded, Kits Were Received, Set Them Till 6 O’clock In The Morning, Then Practiced For One And A Half Hours And Won Three Medals In The Afternoon.

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भोपाल5 मिनट पहलेलेखक: कृष्ण कुमार पांडेय

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अमित और सोनिया

  • दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेस की आग में तीर कमान, सामान सब जला, दिल को सदमा लगा, फिर भी दिमागी संतुलन नहीं खोया

एक दिन पहले दिल्ली-देहरादून शताब्दी एक्सप्रेस की जिस बोगी में आग लगी थी, उसमें मप्र तीरंदाजी टीम के 8 खिलाड़ी भी मौजूद थे। वे देहरादून में जूनियर नेशनल चैंपियनशिप में हिस्सा लेने जा रहे थे, लेकिन ट्रेन की आग में उनके तीर कमान, सारा सामान जल गया, उनकी जान जैसे-तैसे बची।

खेल विभाग हो या टीम के कोच और खिलाड़ी, सभी को सदमा लगा, लेकिन किसी ने भी दिमागी संतुलन नहीं खोया। संयम से काम किया और खिलाड़ियों का हौसला कम नहीं होने दिया। इसी का नतीजा है कि चैंपियनशिप में तीरंदाज अमित कुमार और सोनिया ठाकुर ने दो सिल्वर और एक ब्रॉन्ज मेडल जीते। पढ़ें विजयगाथा की कहानी, उन्हीं की जुबानी…

आग लगी तो डर के मारे रो रहे थे, कोच ने हिम्मत बढ़ाई, कहा- टेंशन मत लो, हम चैंपियन की तरह खेलेंगे

आग के वक्त मैं बोगी में और कोच वॉशरूम में थे। उन्होंने सबसे पहले आग देखी और चिल्लाकर हमें बताया। जब तक सामान उठाते, तब तक जान पर बन आई। हमारा सब कुछ जल गया था, जो कपड़े पहने थे, बस वही हमारे पास थे। हमें सदमा लगा था, हम रो रहे थे, लेकिन कोच ने हिम्मत बढ़ाई, कहा- टेंशन मत लो, हम चैंपियन की तरह खेलेंगे।

शाम 4 बजे जब देहरादून पहुंचे, तो चीफ कोच रिचपाल सर ने स्टेशन पर ही हमसे पूछा- क्या-क्या सामान चाहिए। हमने लिस्टिंग कराई और होटल आ गए। इसके बाद 8 फुल बो सेट (धनुष तीर, तीर टांगने का केस), किट पटियाला और मेरठ से मंगाए जो रात 11 बजे मिल गए। फिर पूरी रात 8 खिलाड़ी और कोच ने तीर काटे, धनुष सेट किया और ट्यूनिंग की।

ये करते-करते सुबह के छह बज गए। सुबह 7 बजे हम प्रैक्टिस पर गए। डेढ़ घंटे प्रैक्टिस की। फिर नौ बजे से इवेंट शुरू हो गया। हमने उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन किया और दोपहर 12 बजे पहला ब्रॉन्ज मेडल जीता। (जैसा अमित और सोनिया ने भास्कर को बताया)

भास्कर एक्सपर्ट : आर्चरी में 51% माइंड सपाेर्ट जरूरी

  • आर्चरी एक माइंड गेम है। इसमें 51% माइंड सपाेर्ट जरूरी है। जो खिलाड़ी मेंटली टफ होगा, वो उतना अच्छा करेगा। इसका उदाहरण मप्र के ये खिलाड़ी हैं। कोच और स्पोर्ट स्टॉफ ने भी कमाल किया, क्योंकि इक्यूपमेंट सेट करने और हाथ जमाने में दो महीने लगते हैं, लेकिन इन्होंने रातों-रात उन्हें सेट किया। – संजीव सिंह, अर्जुन और द्रोणाचार्य अवॉर्डी

यह सफलता सामूहिक प्रयास का फल है…

  • यह सामूहिक सफलता है। बीएल यादव ने रातोंरात इक्यूपमेंट, पैसे की व्यवस्था कराई। खेल मंत्री व कोचों ने खिलाड़ियों का मनोबल बढ़ाया। मैनें डीजीपी उत्तराखंड से लाइनअप कर सहायता भेजी। यह जीत ऐतिहासिक है। – पवन जैन, संचालक खेल एवं युवा कल्याण विभाग

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