इंटरव्यू: जिनके मन में नाटक हो, जिनके जेहन में नाटक हो, वह आए थियेटर में तो कुछ होगा रंगमंच का- सत्यदेव त्रिपाठी

इंटरव्यू: जिनके मन में नाटक हो, जिनके जेहन में नाटक हो, वह आए थियेटर में तो कुछ होगा रंगमंच का- सत्यदेव त्रिपाठी


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रीवा7 मिनट पहले

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फिल्म समीक्षक सत्यदेव त्रिपाठी

  • रीवा के कृष्णा राजकपूर आडोटोरियम में चल रहा तीन दिवसीय चित्रांगन अंतरराष्ट्रीय फिल्म एवं नाट्य महोत्सव

जिनके मन में नाटक हो, जिनके जेहन में नाटक हो, वह आए थियेटर में तो कुछ रंगमंच का हो सकता है। रंगमंच एक कला है यह कोई नौकरी नहीं की एक महीना काम करो और वेतन आ गया। संस्कृति में चार वेद होते हैं, सामवेद, ऋगुवेद, यजुर्वेद, यथर्वनवेद बल्कि रंगमंच भी पांचवां वेद है। यह आम आदमी नहीं जानता बल्कि हर रंगकर्मी जनता है। इस पांचवें वेद को ऋषि मुनियों ने अनपढ़ लोगों के लिए बनाया था, जिसका नाम सैकड़ों वर्ष बाद रंगमंच हुआ। उक्त बातें चित्रांगन अंतरराष्ट्रीय फिल्म एवं नाट्य महोत्सव में आए फिल्म समीक्षक सत्यदेव त्रिपाठी ने कही।

अब अनपढ़ नहीं, बल्कि पढ़े लिखे लोगों का हुआ रंगमंच
सत्यदेव त्रिपाठी ने कहा कि आज का रंगमंच पढ़े लिखे लोगों का हो गया। लोग आज हिंदी को छोड़ अंग्रेजी की ओर भाग रहे हैं। आज रंगमंच की पढ़ाई होने लगी और लोग कॉलेज और यूनिवर्सिटी जाने लगे, ड्रामा की दुकानें खुल गई तो ओरिजनल आर्ट विलुप्त होने लगा। पहले जन्मजात कलाकार होते थे। अब ट्रेनिंग से निकल रहे हैं। लोग जब गांव में सीखकर आगे बढ़ते हैं लेकिन शहर पहुंचने के बाद गांव आना नहीं चाहते। जबकि पहले शिक्षा दी जाती थी कि सीखकर आपको गांव जाना है जिससे ये कला गांवों में जीवंत रहे, लेकिन अब कलाकारों ने इसकी परिभाषा ही बदल दी। आज हर कलाकार बालीवुड में जाना चाहता है। सब लोग नवाजुद्दीन सिद्दीकी और इरफान खान बनने की कोशिश कर रहे हैं। कुल मिलाकर इन एक्टरों ने रंगमंच को ही बदल दिया। लोग गांव की कला छोड़ बालीवुड प्रेमी बन गए।

गांव से थियेटर हो रहा गायब
पहले के लोग नाटक प्रेमी होते थे। दूर दूर तक लोग नाटक देखने जाते थे। लोग एक महीना पहले से अनाउंस करते थे। दर्शकों में रोमांच होता था। लोगों में नाटक की ललक होती थी। चार आना आठ आना देकर लोग जमीन पर बैठ जाते थे। वहां से लोगों को नाटक के संस्कार मिलते थे। अब सभागारों को बारात घर की तरह बना दिया गया है। पैसे दो कार्यक्रम करो। अब असली कलाकार के पास पैसे नहीं है। इसलिए गांव का रंगमंच दम तोड़ रहा है।

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