पानीदार शहर में पानी के लिए हाहाकार: नर्मदा तीरे बसे जबलपुर एक तिहाई आबादी के सामने जलसंकट, 15 एमएलडी पानी नाले-नालियों में बर्बाद हो जाता है

पानीदार शहर में पानी के लिए हाहाकार: नर्मदा तीरे बसे जबलपुर एक तिहाई आबादी के सामने जलसंकट, 15 एमएलडी पानी नाले-नालियों में बर्बाद हो जाता है


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जबलपुर6 मिनट पहले

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रमनगरा जलशोधन संयंत्र से शहर को सबसे अधिक 120 एमएलडी पानी की सप्लाई होती है।

  • विश्व जल दिवस पर विशेष: 311 एमएलडी क्षमता, 243 एमएलडी की जरूरत, पर कुप्रबंधन के चलते हर कंठ तक नहीं पहुंचा पा रहे पानी
  • शहर में पानी सप्लाई पर हर वर्ष 40 करोड़ रुपए होता है खर्च, 150 करोड़ पाइपलाइन विस्तार पर कर चुके हैं खर्च

जबलपुर को पानीदार शहर कहा जाता है। नर्मदा, गौर जैसी नदियों और 52 ताल-तलैया वाले इस शहर में जल संकट की बात बेमानी लगती होगी, लेकिन सच यही है कि हर गर्मियों में यहां पानी के लिए हाहाकार मचता है। शहर की एक तिहाई आबादी के लिए पानी का इंतजाम करना सबसे बड़ा काम है। नगर निगम की हर जनसुनवाई में एक तिहाई शिकायतें पानी से जुड़ी होती हैं। नगर निगम की जल सप्लाई क्षमता 311 एमएलडी की है। जबकि 18 लाख की आबादी वाले शहर को जरूरत 243 एमएलडी की है। बावजूद हर कंठ तक पानी नहीं पहुंचा पा रहे।

जानकारी के अनुसार जिले की वर्तमान आबादी 18 लाख के लगभग पहुंच चुकी है। प्रति व्यक्ति 24 घंटे में 135 लीटर पानी की जरूरत पड़ती है। इस हिसाब से इतनी आबादी के लिए 243 एमएलडी पानी की सप्लाई पर्याप्त है, पर 311 एमएलडी क्षमता के बावजूद शहर के हर तीसरे व्यक्ति को जलसंकट का सामना करना पड़ रहा है। इसका एक बड़ा कारण है पानी की बर्बादी। रोज 15 एमएलडी के लगभग पानी लीकेज व सीपेज में बह जाता है। 2020 में नगर निगम ने लीकेज रोकने के नाम पर 4.90 करोड़ रुपए खर्च कर डाले। पर हालात जस के तस हैं।

लेमा गार्डन में इस तरह नजारा रोज ही दिखता है।

लेमा गार्डन में इस तरह नजारा रोज ही दिखता है।

शहर की पांच लाख की आबादी को रोज जलसंकट का करना पड़ता है सामना
गर्मी के साथ ही शहर में पानी की किल्लत शुरू हो गई है। अधारताल, लेमा गार्डन, सिद्धबाबा, रांझी, मानेगांव, अधारताल, मोहनिया, हनुमानताल क्षेत्रों में पानी को लेकर मारामारी मचने लगी है। नगर निगम के रिकॉर्ड में 1.52 लाख के लगभग नल कनेक्शन है। वर्ष 2020 में नगर निगम ने 21 करोड़ रुपए जल टैक्स वसूले थे। लगभग 161 करोड़ रुपए का बकाया है। हर साल पानी सप्लाई पर नगर निगम 40 करोड़ के लगभग खर्च करता है। पिछले 10 सालों में 150 करोड़ रुपए पाइपलाइन बिस्तार पर खर्च हो चुके हैं।

पानी का प्रेशर इतना कम होता है कि कांचघर में बूंद-बूंद पानी जुटाने मशक्कत करनी पड़ती है।

पानी का प्रेशर इतना कम होता है कि कांचघर में बूंद-बूंद पानी जुटाने मशक्कत करनी पड़ती है।

24 घंटे का सपना, दो घंटे भी नहीं दे पाते पानी
शहर में 62 बड़ी टंकियों, 8 हाइडेंट और 719 ट्यूबेल से पानी की सप्लाई होती है। शहर के जलस्रोतों की उपलब्धता ऐसी है कि शहर में 24 घंटे पानी सप्लाई कर सकते हैं। पर नगर निगम शहर को सुबह-शाम दो घंटे भी पूरी क्षमता से पानी की सप्लाई नहीं कर पाती है। कई जगह पाइपलाइनों में पानी का प्रेसर इतना कम रहता है कि पानी भरने वालों की लाइन खत्म नहीं होती, लेकिन पानी की सप्लाई जरूर बंद हो जाती है।
पानी की गुणवत्ता ऐसी की पीकर लोग हो रहे बीमार
शहर में पाइपलाइन बिछाने में एक बड़ी चूक की गई है। अधिकतर पाइपलाइन शहर के नाले-नालियों से गुजरी हैं। इन पाइपलाइनों में सुराख के साथ नाले की गंदगी पानी में मिश्रित होकर लोगाें के घरों तक पहुंचती है। नगर निगम के जलशोधन संयंत्रों में रोज 15 टन फिटकरी, एक टन चूनाऔर 643 किलो क्लोरीन मिलाने का दावा किया जाता है, पर कई बार बदबूदार पानी के चलते लोग उसे पी भी नहीं सकते हैं। बारिश के दिनों में सप्लाई का पानी पीने लायक नहीं रहता है।

पाइपलाइन लीकेज से इस तरह बर्बाद होता है पानी।

पाइपलाइन लीकेज से इस तरह बर्बाद होता है पानी।

पानी सप्लाई तंत्र को बदलना होगा
नगर निगम में अभी जलापूर्ति का पूरा प्रबंध एक हाथ में है। इसके चलते सही तरीके से मॉनीटरिंग नहीं हो पाती है। बेहतर परिणाम के लिए व्यवस्था का विकेंद्रीकरण करना होगा। उत्पादन, वितरण, मरम्मत और टैक्स वसूली के लिए अलग-अलग लोगों को जिम्मेदारी सौंपनी होगी। नगर निगम में जलविभाग के कार्यपालन यंत्री कमलेश श्रीवास्तव के मुताबिक जर्जर पाइपलाइनों को बदला जा रहा है। नई टंकियों का भी निर्माण कराया जा रहा है, जिससे शहर के हर कोने में नर्मदा का पानी उपलब्ध कराया जा सके।
पेट की बीमारियों के साथ कैंसर का बड़ा खतरा
शहर के भूजलविद विनोद दुबे के मुताबिक शहर की पाइपलाइन की बिछाने का तरीका ही गलत है। यहां पाइपलाइनों को नालों व नालियों से निकाला गया है। सुराख होने पर इसमें घातक बैक्टीरिया, माइक्रो प्लास्टिक पार्टिकल पाइपलाइन के जरिए लोगों के घरों में पहुंच रहा है। इससे पेट संबंधी और कैंसर का बड़ा खतरा होता है। स्ट्रक्चर इंजीनियर और टाउन प्लानर संजय वर्मा के मुताबिक ड्रेनेज और जलापूर्ति नेटवर्क के लिए लेफ्ट राइट पॉलिसी पर काम करना चाहिए। सड़क के एक ओर ड्रेनेज तो दूसरी ओर पाइपलाइन होने से इस तरह की समस्या को दूर किया जा सकता है।

पानी सीपेज का बड़ा उदाहरण है, जमीन के अंदर ही पानी बहता रहता है।

पानी सीपेज का बड़ा उदाहरण है, जमीन के अंदर ही पानी बहता रहता है।

शहर में पानी सप्लाई का ये है नेटवर्क

  • 94 एमएलडी पानी भोंगाद्वार, परियट व खंदारी प्लांट से होती है
  • 97 एमएलडी पानी की सप्लाई ललपुर के दो प्लांटों से होती है
  • 120 एमएलडी की सप्लाई रमनगरा प्लांट से शहर में होती है
  • 62 उच्चस्तरीय टंकियाें के माध्यम से 1.52 लाख पाइपलाइन कनेक्शनों से पानी की सप्लाई होती है
  • 719 ट्यूबेल और 8 हाइडेंट से भी शहर में टैंकरों के माध्यम से जलापूर्ति होती है
  • 15 एमएलडी पानी रोज सीपेज-लीकेज में रोज बह जाता है
  • 68 एमएलडी पानी अधिक होने के बावजूद पांच लाख की आबादी के सामने जलसंकट।
  • 05 स्रोतों नर्मदा, परियट, खंदारी, गौर नदी और बोरिंग के माध्यम से शहर में पानी की सप्लाई होती है।
  • 643 किलो क्लोरीन, 15 टन फिटकरी व 01 टन चूना पानी को साफ करने में लगता है।
  • 40 करोड़ रुपए हर वर्ष पानी की सप्लाई पर नगर निगम खर्च करने का दावा करता है
  • 21 करोड़ रुपए नगर निगम ने 2019-20 के वित्तीय वर्ष में जलकर वसूला था
  • 161 करोड़ रुपए के लगभग जलकर लोगों पर बकाया है, जिसे नगर निगम नहीं वसूल पा रहा है।

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