दमोह में यह देखा गया कि जातिवाद के बाद भी वोटर चेहरे का चुनाव करता है. जयंत मलैया की जीत में उनके सौम्य व्यवहार का बड़ा योगदान रहा. जबकि क्षेत्र में कदम-कदम पर मुद्दों की हरियाली है. बीडी मजदूरों की समस्या पर अब यहां कोई बात ही नहीं करता. वोटर यह जरूर महसूस कर रहा है कि जयंत मलैया जैसा कोई दूसरा नहीं हो सकता.
जयंत मलैया का दमोह के वोटर पर अभी भी है असर :कांग्रेस की निगाह गांव पर
राहुल लोधी ने वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के दिग्गज नेता जयंत मलैया को मात्र आठ सौ वोटों से पराजित किया था. मलैया सत्तर की उम्र पार कर चुके हैं. उनके समकालीन नेता घरों में बैठा दिए गए हैं. विधानसभा चुनाव में पार्टी उनका टिकट काटना चाहती थी, लेकिन क्षेत्र में मलैया के प्रभाव को अनदेखा नहीं कर पाई थी. मलैया 1990 से लगातार पार्टी को जीत दिला रहे थे. लेकिन,पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा से बगाबत कर निर्दलीय के तौर पर चुनाव मैदान में उतरे डॉ.रामकृष्ण कुसमरिया ने समीकरण बिगाड़ दिए थे. दमोह की सीट पर जातिगत समीकरण कभी काम नहीं करते. पहली बार लोधी ने इस विधानसभा सीट पर चुनाव जीता था. लोधी वोटों की संख्या जैन वोटरों से ज्यादा है. इस सीट पर लगभग चौदह हजार जैन और अठतीस हजार से अधिक लोधी वोटर हैं. मलैया, जैन हैं. दमोह के वोटर आज भी मलैया के प्रभाव में हैं. खासकर शहरी क्षेत्र का वोटर. कांग्रेस की रणनीति ग्रामीण वोटर के साथ अनुसूचित जाति वोटर को बांधे रखने की है. क्षेत्र में चालीस हजार से अधिक अनुसूचित जाति वर्ग का वोटर है.
केन्द्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल के लिए भी महत्वपूर्ण है दमोह
दमोह के सांसद केन्द्रीय पर्यटन मंत्री प्रहलाद पटेल हैं. राहुल लोधी को दलबदल कराने में पटेल की भूमिका भी रही. पटेल की जाति भी लोधी है. राहुल लोधी की पारिवारिक पृष्ठभृमि पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती से भी जुड़ी हुई है. बडामलहरा सीट के विधायक प्रद्युम्न लोधी और राहुल लोधी चचेरे भाई हैं. प्रद्युमन लोधी भी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते थे. राहुल लोधी को उनके साथ ही भाजपा में शामिल होना था, लेकिन,चूक गए. राहुल लोधी ने अक्टूबर में कांग्रेस से इस्तीफा दिया था. उप चुनाव में राहुल लोधी की जीत होती है तो सबसे ताकतवर माना जाने वाले मलैया परिवार की स्थिति में बदलाव आएगा. मलैया के पुत्र सिद्धार्थ की ताजपोशी ही राह भी आसान नहीं रहेगी. इस उप चुनाव में प्रहलाद पटेल की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है. वे राहुल की जीत से अपने संसदीय क्षेत्र में नए समीकरण बनाने में लगे हैं.
मंत्री गोपाल भार्गव को क्यों बनाना पड़ा प्रभारी?दमोह लोकसभा सीट के अंर्तगत ही रहली विधानसभा सीट आती है. यह सीट भाजपा के कद्दावर नेता गोपाल भार्गव के प्रभाव वाली है.वो यहां से विधायक हैं. लोक निर्माण मंत्री भार्गव को भाजपा ने उप चुनाव के लिए प्रभारी नियुक्त किया है. इससे पहले यह जिम्मेदारी नगरीय विकास मंत्री भूपेन्द्र सिंह को दी गई थी. प्रभारी बदलने के पीछे वजह भार्गव के पुत्र अभिषेक द्वारा पिछले दिनों किया गया शक्ति प्रदर्शन है. अभिषेक भारतीय जनता युवा मोर्चा के पदाधिकारी भी रहे हैं. वे पिता की परंपरागत सीट से हटकर नए क्षेत्र में अपनी संभावनाएं तलाश कर रहे हैं. राहुल लोधी की जीत से क्षेत्र में अभिषेक भार्गव की संभावनाएं भी घट जाएंगी. दमोह में लगभग बारह हजार ब्राहण वोटर हैं. उप चुनाव में भाजपा कोई रिस्क नहीं लेना चाहती, इस कारण ही गोपाल भार्गव को चुनाव जिताने की जिम्मेदारी दी गई है.
अजय टंडन को सहानुभूति की उम्मीद
दमोह उप चुनाव में विरोधी दल कांग्रेस उम्मीदवार अजय टंडन प्रभावशाली राजनीतिक परिवार से जुड़े हैं. लेकिन, चुनाव कोई नहीं जीत पाए. दो बार पहले भी टिकट मिली, लेकिन जीत नहीं पाए. तीसरी बार उन्हें वोटर की सहानुभूति मिलने की उम्मीद है. भाजपा उम्मीदवार राहुल लोधी के खिलाफ उनकी भाषा को लेकर विवाद के हालात हैं. गद्दार और नपुंसक जैसे शब्द दमोह का चुनावी मुद्दा कभी नहीं रहे. न इस तरह के शब्दों का उपयोग आरोपों के तौर पर हुआ. गद्दार और बिकाऊ जैसे शब्दों का प्रयोग कांग्रेस ने 28 सीटों के विधानसभा उप चुनाव में किया था. ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों को लेकर. यह मुद्दा वोटर के बीच कमाल नहीं दिखा सका था. प्रचार में जरूर चर्चा में रहा था.
टंडन की उम्मीद मलैया परिवार पर भी टिकी है
बिकाऊ और गद्दार का आरोप प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की रणनीति का हिस्सा है. भाजपा उम्मीदवार राहुल लोधी कहते हैं कि कांग्रेस उम्मीदवार अजय टंडन यह क्यों भूल जाते हैं कि उन्होंने भी अर्जुन सिंह के साथ कांग्रेस छोड़ी थी. विधानसभा चुनाव में राहुल लोधी की जीत के रणनीतिकार अजय टंडन माने गए थे. यही कारण है कि कांग्रेस ने दो बार हार के बाद भी तीसरी बार उन्हें मौका दिया. क्षेत्र में पलायन और बेरोजगारी मुख्य समस्या है. सीमेंट फैक्ट्री है लेकिन रोजगार की संभावनाएं सीमित हैं. मलैया परिवार पर क्षेत्र का विकास न करने के आरोप कांग्रेस लगाती रही है. इस बार मलैया को लेकर कांग्रेस पूरी तरह से चुप है. भाजपा में अलग-थलग पड़ने की स्थिति में मलैया के पुत्र की भूमिका पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं.
दिनेश गुप्ता
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. सामाजिक, राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखते रहते हैं. देश के तमाम बड़े संस्थानों के साथ आपका जुड़ाव रहा है.
First published: March 24, 2021, 2:16 PM IST