साहित्यकार शरद पगारे को उनके उपन्यास के लिए केके बिड़ला फाउंडेशन का प्रतिष्ठित व्यास सम्मान से नवाजा गया है.
साहित्यकार शरद पगारे इतिहास के प्रतिष्ठित विद्वान, शोधकर्ता और प्राध्यापक रहे हैं. भारत ही नहीं विदेशों में भी इनके प्रामाणिक इतिहास ज्ञान की सराहना की गई है. वह इंदौर में रहकर रहे हैं लगातार कई सालों से श्रमसाध्य लेखन में जुटे हैं.
उन्हें इस सम्मान में चार लाख रुपए की पुरस्कार राशि के साथ ही प्रशस्ति व प्रतीक चिन्ह भेंट किया जाएगा. उनके ऐतिहासिक उपन्यास ‘पाटलिपुत्र की सम्राज्ञी’ का प्रकाशन वर्ष 2010 में हुआ था. उन्हें ये सम्मान देने का निर्णय हिंदी साहित्य के जाने-माने विद्वान प्रो. रामजी तिवारी की अध्यक्षता में संचालित एक चयन समिति ने किया है.
सम्मान मिलने के बाद न्यूज 18 से बातचीत में लेखक शरद पगारे ने कहा कि ‘लेखक के लेखन को जब ऐसी बड़ी मान्यता मिलती है प्रसन्नता होती है. वह भी ऐसे लेखक को जिसे पाठकों का तो बहुत प्यार मिला लेकिन किसी साहित्यिक दल से न जुड़ा होने से उपेक्षित रखा गया. मैं बिरला फाउंडेशन के आभारी हूं की उन्होंने मेरे साहित्यिक अवदान को ‘व्यास सम्मान’ द्वारा अभिस्वीकृति दी और कार्य का सही मूल्यांकन किया. उन्हाेंने कहा कि लेखक नहीं उसकी रचना बोलती है और यही मेरी इस रचना के साथ हुआ. मेरी रचना ने पढ़ने वाले को द्रवित कर दिया.
प्रख्यात लेखिका और धर्मवीर भारती की पत्नी पुष्पा भारती ने कहा किभारती जी को व्यास सम्मान मिला था, तब खुशी मिलना स्वाभाविक था. पर जब आज इसी संदर्भ में शरद पगारे जी का नाम सुना तो ऐसी सुखद अनिर्वचनीय खुशी मिली. पहली बार जाना कि अपने प्रिय लेखक से पाठक का जो रिश्ता होता है, वह हर रिश्ते नाते से बड़ा होता है. शरद जी की पाठक उस उम्र से रही हूं, जब उत्कृष्ट साहित्य की समझ होने लगती है और उसके प्रति दीवानगी की सीमा तक प्यार हो जाता है. अपने आदरास्पद प्रिय लेखक शरद पगारे जी को शत शत बधाइयां और धन्यवाद बिड़ला प्रतिष्ठान को जिनके ये चुनाव सदा ही निर्विवाद रूप से सटीक होते हैं. शरदजी के सभी अगणित पाठकों को भी बधाई.कौन हैं साहित्यकार शरद पगारे
जुलाई, 1931 को खंडवा (मध्यप्रदेश) में जन्में शरद पगारे हिन्दी साहित्य के जाने माने लेखकों में से एक है. शरद पगारे ने इतिहास में एमए करने के बाद पीएचडी की उपाधि प्राप्त की है। शरद पगारे इतिहास के प्रतिष्ठित विद्वान, शोधकर्ता और प्राध्यापक रहे हैं. भारत ही नहीं विदेशों में भी इनके प्रामाणिक इतिहास ज्ञान की सराहना की गई है. इतिहास संबंधी आपके अनेक शोधपरक ग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैं। यह एक सुखद संयोग है कि एक इतिहासकार होने के साथ ही वे सफल कथाकार भी हैं.
वृंदावन लाल वर्मा की ऐतिहासिक उपन्यास परम्परा के विकास में आपने महत्वपूर्ण योगदान किया है। प्रो पगारे शासकीय महाविद्यालय के प्राचार्य पद से सेवानिवृत्त होकर इंदौर में स्वतंत्र लेखन में संलग्न हैं. आपने शिल्पकर्ण विश्वविद्यालय, बैंकाक में अतिथि प्राचार्य के रूप में भी कार्य किया. पगारे को मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी, भारतभूषण सम्मान के अतिरिक्त कई अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है. इनके अब तक पांच उपन्यास, छह कहानी संग्रह, दो नाटक व शोध प्रबंध प्रकाशित हुए हैं। प्रो पगारे की अनेक रचनाओं का अंग्रेजी, उड़िया, मराठी, मलयालम, कन्नड़ एवं तेलुगु में अनुवाद भी प्रकाशित हुआ है.