मेरा क्या कसूर: झाड़ियों में मरने के लिए फेंकी गईं 58% बेटियां, बेटों की संख्या इनसे 10% कम

मेरा क्या कसूर: झाड़ियों में मरने के लिए फेंकी गईं 58% बेटियां, बेटों की संख्या इनसे 10% कम


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भोपाल35 मिनट पहलेलेखक: वंदना श्रोती

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मप्र में एक साल में 40 नवजातों को फेंका, देश में चौथे नंबर पर।

  • मप्र में एक साल में 40 नवजातों को फेंका, देश में चौथे नंबर पर
  • ‘पालो ना’ अभियान के आंकड़ों में खुलासा- छह राज्यों में किया सर्वे

बेटी बचाओ के नारे हर जगह गूंजते हैं। बेटियों के लिए केंद्र से लेकर प्रदेश में कई योजनाएं भी चल रही हैं, इसके बावजूद लावारिस स्थिति में फेंकी गई नवजात लड़की की संख्या इस बात की ओर इशारा करती है कि समाज लड़कियां होना अभी भी अभिशाप है।

इस बात का खुलासा एक निजी संस्था द्वारा चलाए जा रहे पालो ना अभियान के माध्यम से हुआ। यह अभियान मप्र सहित छह राज्यों में चलाया जा रहा है। कोरोना काल में मप्र में 40 नवजात शिशु को झाड़ियों में छोड़ा गया। इसमें से 10 नवजात को बचाया नहीं जा सकता। भोपाल में इस दौरान चार बच्चे झाड़ियों में फेंके गए।

जिसमें से दो की मौत हो गई। दो शिशु को जेपी अस्पताल के बाद शिशु गृह भेज दिया गया। हालांकि फेंके गए नवजात में लड़कों के मुकाबले लड़कियां का प्रतिशत अधिक है। इस बात की पुष्टि महिला एवं बाल विकास विभाग के शिशु गृह में भेजे गए बच्चों की संख्या करती है। प्रदेश के शिशु गृह में झाड़ियों, पोटली में लपेटकर 58.5 प्रतिशत लड़कियां फेंकी गई। वहीं नवजात लड़काें का प्रतिशत 48.4 प्रतिशत रहा है।

अभियान की फाउंडर मेंबर मोनिका आर्य बताया कि अभियान छह राज्यों में चल रहा है। कोरोना काल में वर्ष 2020 में मार्च से दिसंबर तक सबसे ज्यादा नवजात उप्र में फेंके गए। यहां पर एक साल में 68 नवजात कचरे में मिले हैं। वहीं चौथे नंबर पर मप्र है। यहां पर 40 नवजात शिशु फेंके गए। इसमें से लावारिस छोड़ी गई बच्चियों की संख्या, लड़कों से ज्यादा तक रही।

इनमें सात लड़कों के मुकाबले लड़कियों की संख्या 22 है। वहीं केवल जीवित बच्चों की बात करें तो मप्र के 31 शिशु गृहों में परिजनों द्वारा त्यागे गए जन्म से 6 साल तक 222 बच्चे हैं। इसमें से 132 लड़कियां और 94 लड़के हैं। वहीं भोपाल के दो शिशु गृह में 12 लड़कियां और 10 लड़के हैं।

यह है आंकड़े : भोपाल में चार बच्चे फेंके झाडि़यों में

भोपाल के दो मनहूस मामले, इसमें एक बच्चे को ही बचा पाए

1. बीआरटीएस कॉरिडोर में एक नवजात मिला था। उसे उसकी मां ने कई दिनों से दूध नहीं पिलाया था। उसने बच्चे को कॉरिडोर के बस स्टाॅप पर छोड़ दिया था। जेपी अस्पताल में इलाज के दौरान नवजात की मौत हो गई। मामले में पुलिस ने आसपास के सीसीटीवी खंगाले लेकिन जिस जगह पर बच्चा मिला वह स्थान सीसीटीवी कैमरे की रेंज से बाहर था। इससे फेंकने वाली मां का पता नहीं चल पाया।

2. कैरियर कॉलेज के नजदीक एक महिला जब सुबह 3 बजे शौच के उठी तो पता चला सड़क पर एक नवजात पोटली में बंधा रो रहा है। इसके बाद महिला ने पति और मोहल्लेवालों को शोर मचाकर उठाया। इसके बाद रहवासियों ने गोविंदपुरा पुलिस को सूचना दी। जिसके बाद पुलिस ने बच्चे को जेपी अस्पताल पहुंचाया। स्वस्थ्य होने पर बच्चे को शिशु गृह भेज दिया गया।

सबसे ज्यादा मौत संक्रमण और कुपोषण के कारण

लावारिस स्थिति में मिलने वाले नवजात की मौत संक्रमण और कुपोषण के कारण सबसे ज्यादा होती है। महिला एवं बाल विकास विभाग ने पालना स्कीम लागू की है। जिसमें हर सार्वजिनक स्थानों में पालना लगाने के दिशा निर्देश जारी किए गए हैं। भोपाल में पांच जगहों पर पालना लगाए गए हैं।

वहीं पूरे प्रदेश में 256 जगहों पर पालना लगाए गए हैं। जिसमें कोई भी व्यक्ति नवजात शिशु को न फेंके। उसे पालने में डाल दे। जिन जगहों पर पालने लगाए गए हैं। वहां इस बात के दिशा निर्देश दिए गए हैं कि पालने में शिशु को डालने वाले की पहचान उजागर न की जाए।

फेंकने के बजाय पालने में डाला जाए बच्चों को

^हम लोग जागरूकता कार्यक्रम चला रहे है कि बच्चों को झाड़ियों में फेंकने की बजाय शिशु गृहों में जाकर बच्चे को सरेंडर कर दे। नाम को गोपनीय रखा जाएगा। इसके बावजूद नवजात को लोग झाड़ियों में फेंकने से बाज नहीं आते। इसलिए अब भोपाल सहित प्रदेश में पालना योजना शुरू की है। ताकि बच्चों को फेंकने की बजाए उन्हें पालने में डाला जाए। डॉ. विशाल नाडकर्णी, संयुक्त संचालक महिला एवं बाल विकास

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