मंडे पॉजिटिव: बेटियों को प्रोत्साहित करने पेड़ों और घरों की दीवारों पर उकेरे नाम, इसलिए हरपुरा मड़िया कहलाता है बेटियों का गांव

मंडे पॉजिटिव: बेटियों को प्रोत्साहित करने पेड़ों और घरों की दीवारों पर उकेरे नाम, इसलिए हरपुरा मड़िया कहलाता है बेटियों का गांव


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टीकमगढ़3 मिनट पहलेलेखक: सुमित कुमार चौबे/रवि ताम्रकार

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होली के रंग बेटियों के संग…..हरपुरा मड़िया कहलाता है बेटियों का गांव। 

  • यहां 1000 पुरुषों पर 1107 महिलाएं, जिले का पहला गांव जहां सबसे ज्यादा महिला लिंगानुपात
  • गांव में ऐसा कोई भी घर नहीं जहां बेटियां न हों

सुमित कुमार चौबे/रवि ताम्रकार

टीकमगढ़ जिले का एक ऐसा गांव जो सिर्फ बेटियों के नाम से जाना जाता है। यह गांव जिला मुख्यालय से महज 10 किमी की दूरी पर है। गांव के बुजुर्ग हों या बच्चियों के माता-पिता उन्हें प्रोत्साहित कर आगे बढ़ने की सीख देते हैं। बेटी-बचाओ बेटी पढ़ाओ स्लोगन इसी गांव में चरितार्थ होता है। यहां बेटियों को प्रोत्साहित करने के लिए पेड़ों और घरों के दीवारों पर बेटियों के नाम उकेरे गए हैं। यहीं कारण है कि इस गांव का लिंगानुपात 1 हजार पुरूषों पर 1107 महिलाएं हैं।

गांव में बेटों की चाह में बेटियां हुई, लेकिन कभी भ्रूण लिंग परीक्षण और भ्रण हत्या की नौबत बुजुर्गों ने नहीं बनने दी। नतीजा आज इस गांव ने बेटियों के गांव के नाम से पहचान बनाई। गांव के हर घर में बेटा न हो, लेकिन बेटियां जरूरी मिलेंगी। बुजुर्गों ने सिखाया कि बेटियां घर की लक्ष्मी होती हैं, बुजुर्गों की इसी सीख ने यहां के लोगों की मानसिकता बदल दी।

गांव में बेटी हो या बेटा दोनों के जन्म पर खुशियां मनाई जाती हैं। 80 साल की गुलाबरानी अक्सर गांव के लोगों से कहती हैं कि घर में बेटा हो या बेटी, कभी बेटी को बोझ नहीं समझें। बेटे अगर भाग्य से घर में जन्म लेते हैं, तो बेटियां हमेशा सौभाग्य से मिलती हैं। इस गांव में कई ऐसे परिवार है, जिनके घर में एक बेटे पर पांच-पांच बेटियां है। गांव के शिवराज लोधी बताते हैं कि चार भाइयों के यहां 8 नातिनों का जन्म हुआ है। वहीं 4 नाती है। बेटा हो या बेटी कभी किसी में फर्क नहीं समझा। जितना प्यार बेटों को मिलता है। उससे कहीं ज्यादा बेटियां को दुलार करता हूं। अभी भी मेरे परिवार में एक साथ चार पीढ़ियां हैं। परिवार से महिलाओं का वर्चस्व सबसे अधिक है।

जिले और प्रदेश से कहीं ज्यादा इस गांव का लिंगानुपात

टीकमगढ़ जिले में एक हजार पुरुषों पर 901 महिलाएं हैं। प्रदेश में 1 हजार पुरुषों पर 948 महिलाएं हैं, लेकिन हरपुरा गांव में 1 हजार पुरुषों पर 1107 महिलाएं है। गांव की आबादी 2107 है। होली हो या दीवाली गांव की बुजुर्ग महिलाएं बेटियों के साथ मिलकर खुशियां मनाती हैं। 85 साल की जरावबाई लोधी कहती है, कि बेटियां एक घर को नहीं दो घरों को जोड़ने का काम करती हैं। उनके ऊपर दो घरों की मान मर्यादा को बनाए रखने की जिम्मेदारी होती है। इसलिए बेटियां उन्हें घरों में जन्म लेती हैं जो सौभाग्यशाली होते हैं।

हरपुरा गांव में 1 हजार पुरुषों पर 1107 महिलाएं है।

हरपुरा गांव में 1 हजार पुरुषों पर 1107 महिलाएं है।

गांव में महिला ज्ञानालय बनाया गया

बेटियों और महिलाओं को शिक्षा के प्रति सजग रहने के यहां लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। इसके चलते गांव में ज्ञानालय भी खोला गया। यहां पर गांव की इंद्र कुमारी लोधी और रजनी विश्वकर्मा सहित चार बेटियां गांव की महिलाओं को शिक्षित बनाने का काम करती हैं। इससे हरपुरा गांव में महिलाओं की साक्षरता 85 फीसदी से अधिक है।

गांव में कुछ कमियां जिन्हें पूरा करने की जरूरत

– हर घर में शौचालय बने, जिससे बेटियों को खुले में शौच न जाना पड़े।

– हाईस्कूल दूर होने के चलते बेटियों को जाने में असुविधा।

– बेटियों को स्वारोजगार से जोड़ने के लिए प्रशिक्षण केंद्र बनाया जाए।

गांव में इस तरह पेड़ों पर भी लिखे गए बेटियों के नाम।

गांव में इस तरह पेड़ों पर भी लिखे गए बेटियों के नाम।

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