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- Gaushalas Closed After Inauguration, Because The Government Did Not Get The Budget For Fodder And Straw For Six Months
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भिंड10 मिनट पहले
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- दो चरणों में 91 गौशालाएं जिले को मिली, इनमें से अब तक 40 बनकर हो पाईं तैयार
- कुछ दिन ग्रामीणों के सहयोग से कुछ गोशालाएं चलीं, पैसा नहीं आया तो मजबूरन बंद करना पड़ीं
- गोवंश सड़कों और खेतों में गुजर बसर कर रहा है, जिससे किसान परेशान
प्रदेश सरकार भले ही गौवंश की सुरक्षा के लिए गांव गांव गौशालाएं बनाने का दावा कर रही हो। लेकिन हकीकत यह है कि इन गौशालाओं में पिछले 6 महीने से भूसा और चारा के लिए सरकार ने एक फूटी कोड़ी नहीं भेजी है। परिणामस्वरुप आधे से ज्यादा गोशालाएं बंद पड़ी हुई है। जबकि गोवंश सड़कों और खेतों में गुजर बसर कर रहा है, जिससे राहगीर व किसान परेशान हैं। यहां बता दें कि प्रदेश कांग्रेस की सरकार आने के बाद आवारा गोवंश को सुरक्षित ढंग से रखने के लिए गांव गांव गोशालाएं खोले जाने की योजना तैयार की गई। वहीं जब सत्ता पलटी और भाजपा की सरकार आई तो उसने भी इस योजना को जारी रखा। बताया जा रहा है कि पहले चरण में जिले के अंदर 51 गोशालाएं स्वीकृत हुई। जबकि दूसरे चरण में 40 गोशालाएं जिले को ओर मिल गई।
कुल 91 गोशालाओं में से अब तक सिर्फ 40 गौशालाएं बनकर तैयार हो पाई है। जबकि इनमें से 30 के चालू होने का दावा किया जा रहा है। जबकि हकीकत यह है कि 20 गोशालाएं भी जिले चालू नहीं है। गौवंश पहले की तरह आज भी सड़कों और खेतों में गुजर बसर कर रहा है।
तीन उदाहरण से समझें किस
तरह सिर्फ कागजों में संचालित हो रही है गोशालाएं
1. लहार जनपद के ग्राम पृथ्वीपुरा की गोशाला ग्राम भीकमपुरा में बनी हुई है। इसका शुभारंभ 23 जनवरी 2020 को हुआ था। उदघाटन के करीब एक-दो महीने ग्रामीणों सहयोग से यह गोशाला संचालित हुई। लेकिन वर्तमान में वह बंद पड़ी हुई है। हालत यह है कि गोशाला के बोर में से पानी की मोटर भी पिछले साल अक्टूबर महीने में अज्ञात बदमाश चुरा ले गए।
2. इसी प्रकार से लहार जनपद के बरुअन गांव की गोशाला खजूरी गांव में बनी हुई है। पिछले साल दिसंबर 2020 में इसका शुभारंभ हुआ। 27 लाख 76 हजार रुपए की लागत से निर्मित यह गोशाला वर्तमान में बंद पड़ी हुई है। यहां न कोई गाय और न ही उनके खाने पीने के लिए भूसा, चारा आदि। गोशाला से एक किलोमीटर दूर बिजली की लाइन है, लेकिन विद्युत कनेक्शन नहीं है।
3. गोहद जनपद के ग्राम खनेता की गोशाला का भी कुछ यही हाल है। 27 लाख 76 हजार रुपए की लागत से निर्मित इस गोशाला का शुभारंभ करीब तीन महीने पहले ही हुआ है। वर्तमान में गोशाला के आंगन में सिर्फ गाजर घास खड़ी हुई है। यहां गायों को बांधने के लिए खूंटे तक नहीं है। स्थानीय लोगों की माने तो उदघाटन के बाद से अब तक इसमें कोई गाय ठहरी ही नहीं है।
पंचायतों ने गोशालाएं तो बनवाई, लेकिन चलाने के लिए नहीं राजी
अफसरों की मानें तो ग्रामीण अंचल में ग्राम पंचायतों ने सरकार की योजना के तहत गोशालाओं का निर्माण तो करा लिया। लेकिन अब उन्हें संचालित करने के लिए वे तैयार नहीं है। ऐसे में पशु चिकित्सा विभाग अब इन गोशालाओं को संचालित कराने के लिए स्व सहायता समूहों को तलाश कर रहा है। लेकिन सरकार द्वारा गोवंश की प्रतिदिन खुराक के लिए जो राशि दी जा रही, उससे वे भी आगे नहीं आ रहे हैं। बताया जा रहा है कि सरकार एक गोवंश की एक दिन की खुराक के लिए 20 रुपए दे रही है, जो कि लोगों के अनुसार बहुत कम है।
एक गोशाला में 100 गाेवंश की क्षमता, 40 में 40000 आएंगी
बताया जा रहा है कि सरकार द्वारा जो गोशालाएं तैयार की गई है, उन सभी को 100 गोवंश प्रति गोशाला के हिसाब से तैयार किया गया है। यानि जिले में तैयार 40 गोशालाओं में 4 हजार गोवंश को रखा जा सकता है। लेकिन इनके बंद पड़े होने के कारण यह गोवंश खेतों में किसानों की फसल उजाड़ रहा है। ग्रामीणों को रात भर जागकर अपने खेतों की रखवाली करनी पड़ रही है। वहीं सड़कों पर स्वच्छंद विचरण कर लोगों को जख्मी कर रहा है। गोशालाएं बनने पर ग्रामीण खुश थे कि अब इन घटनाओं पर अंकुश लग जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
रावतपुरा में 500 गोवंश की क्षमता वाली गौशाला बनाने की तैयारी
एक ओर जिले में तैयार 40 गोशालाएं सूनी पड़ी हुई है। वहीं दूसरी ओर प्रशासन अब लहार के रावतपुरा धाम में 500 गोवंश की क्षमता वाली गोशाला तैयार करने की योजना बना रहा है। इसे 5 चरणों में पूरा करने की तैयारी है। इसके अलावा लहार में देवरीकलां, रुरई, वैशपुरा, टोला, लालपुरा और गोहद की गुरीखा, सोहांस, आलौरी, छीमका, मदनपुरा, सिलोंहा आदि का निर्माण कार्य चल रहा है। लोगों का कहना है कि अगर समय पर पैसा नहीं आया तो इन गोशाला का लाभ मिलना मुश्किल है।
40 गोशालाएं तैयार, 30 अभी चल भी रही हैं
- जिले में 40 गोशालाएं बनकर तैयार हो गई है, जिसमें से 30 गोशालाएं संचालित हो रही है। कुछ जगह पंचायतें गोशालाएं चलाने के लिए राजी नहीं है। इसलिए वहां समूहों को तलाश किया जा रहा है। रहा सवाल बजट का तो लोग गोशाला संचालित करें उसके बाद विभाग उनका बिल बनाकर भेजेगा। एक- दो माह बाद पैसा आ जाता है। – डॉ. एनके सिकरवार, उपसंचालक पशु चिकित्सा सेवाएं, भिंड