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- The Divisional Commissioner In Charge Landed The Absent Doctors In The Meeting, Reached The Doctor’s Colony
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रीवा8 घंटे पहले
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अस्पताल में सुबह मरीजों की कतार लगी थी।
रोक के बावजूद कोरोनाकाल में डॉक्टर निजी क्लीनिक चला रहे हैं। इसका खुलासा बुधवार को हुआ। कलेक्टर और प्रभारी कमिश्नर ने डॉक्टरों के क्लीनिक पर छापा भी मारा। यहां मरीजों की कतार लगी थी। अंदर सरकारी डॉक्टर इलाज कर रहे थे। वहीं, जिला अस्पताल में मरीज डॉक्टरों का इंतजार कर रहे थे।
हुआ यूं कि सुबह करीब 11 बजे संभाग प्रभारी कमिश्नर और कलेक्टर इलैया राजा टी श्याम शाह मेडिकल कॉलेज में हुई बैठक हुई। यहां कई डॉक्टर नहीं पहुंचे। जब डीन से कारण पूछा, तो उन्होंने हास्यास्पद जवाब दिया। कहा- सभी चिकित्सक अपने-अपने क्लीनिक में बैठे होंगे।
कुछ देर बाद प्रभारी संभागायुक्त एसएस मेडिकल कॉलेज से बाहर निकले, तो कई पीड़ित पहुंच गए। उन्होंने प्रभारी संभागायुक्त को बताया कि सर ओपीडी में कई चिकित्सक नहीं हैं। ऐसे में प्रभारी संभागायुक्त भड़क गए। गाड़ी को डॉक्टर कॉलोनी को मुड़वा दिया। डॉक्टर कॉलोनी परिसर पहुंचे, तो क्लीनिकों के बाहर कतार लगी थीं, जबकि अंदर चिकित्सक पैसे छापने में लगे थे।
इनकी क्लीनिक में दबिश
यहां प्रभारी संभागायुक्त ने देखा, सरकारी डॉक्टर काॅलोनी में चिकित्सक निजी क्लीनिक बना लिए हैं। पहले कलेक्टर हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. केडी सिंह के बंगले में पहुंचे। जहां ओपीडी के समय में वह मरीज देख रहे थे। तब प्रभारी संभागायुक्त ने डॉ. केडी सिंह को फटकारा। इसके बाद डॉ. हरिओम गुप्ता और डॉ. मंजर उस्मानी के निजी क्लीनिक में पहुंचकर भी डांट फटकार लगाई। इसके बाद डॉक्टरों के बीच हड़कंप की स्थिति बन गई। सब भागकर अस्पताल पहुंचे।
बड़ी कार्रवाई के संकेत
सूत्रों का कहना है, कोरोना महामारी में राज्य सरकार हर दिन बैठक लेकर जिलों की स्थिति का आकलन करती है। संजय गांधी अस्पताल और एसएस मेडिकल कॉलेज के चिकित्सकों ने अस्पताल की ओपीडी छोड़कर निजी क्लीनिक में बैठे दिखे। हालांकि प्रभारी संभागायुक्त ने बड़ी कार्रवाई के संकेत दिए हैं।
बड़ी बिल्डिंग में हद दर्जे का इलाज
मरीज के परिजनों का आरोप है, जिला अस्पताल में सिर्फ बड़ी बिल्डिंग ही है, लेकिन इलाज हद दर्जे का होता है। आए दिन चिकित्सक अंधेर गर्दी का विरोध करने पर विवाद करते हैं। आरोप है कि यहां जूनियर चिकित्सकों से लेकर सीनियर चिकित्सकों का यही रवैया है। मजबूरन निजी अस्पताल जाना पड़ता है।