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इंदौर3 मिनट पहलेलेखक: राजीव कुमार तिवारी
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रेमडेसिविर इंजेक्शन के लिए लोग सुबह से ही लाइन में लग गए थे।
कोरोना के कहर का अंदाजा इंदौर में इसी बात से लगाया जा सकता है कि हॉस्पिटल में बेड की किल्लत के बाद अब रेमडेसिविर के इंजेक्शन के लिए भी हाहाकार मच गया। एक इंजेक्शन के लिए लोग सुबह से ही लाइन में लग रहे हैं। कोई माता- पिता, कोई चाचा तो कोई परिचित और दोस्त को इस माहामारी से बचाने के लिए घंटों धूप में तप रहा है। इतनी परेशानी के बाद भी उन्हें इंजेक्शन के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है। भीड़ इतनी की स्थिति धक्का-मुक्की तक बन रही है। पुलिस तक को आकर स्थिति को संभालना पड़ रही है। दुकान के शटर पर लिखा है रेमडेसिविर इंजेक्शन का स्टाक नहीं है। आने पर सबको दवाई मिलेगी। हालात यह है कि इंदौर के अलावा इंदौर उज्जैन संभाग से लेकर भोपाल तक के लोग यहां इंजेक्शन की खोज में भटक रहे हैं।

हर्ष के चाचा भोपाल में भर्ती हैं, उनके लिए वह दवा बाजार में इंजेक्शन खोज रहा है।
एक ही इंजेक्शन दे दो, भैय्या भोपाल में दो दिन से चाचा भर्ती हैं
हर्ष श्रीवास्तव दवा बाजार में उस दुकान के सामने हैरान-परेशान भटक रहे थे, जहां पर रेमडेसिविर इंजेक्शन मिल रहा है। उनके चाचा जी भोपाल अस्पताल में भर्ती हैं, उनकी हालत बहुत सीरियस है। उन्हें जैसे-तैसे चार इंजेक्शन को लग गए हैं, लेकिन दो इंजेक्शन नहीं मिल पा रहे हैं। परिजन दो दिन से भोपाल की हर उस गली में भटक चुके हैं, जहां पता चला कि रेमडेसिविर इंजेक्शन मिल रहा है। जब कहीं नहीं मिला तो हर्ष ने इंदौर की गलियों में इंजेक्शन के लिए भटकना शुरू किया। दो दिन से वह दवा बाजार के चक्कर लगा रहा था। मंगलवार को पूरा दिन दवा बाजार में घूमने के बाद आस बंधी की बुधवार को को उसे इंजेक्शन मिल जाएगा। उसे सुबह 11 बजे बुलाया गया था। हालांकि वह इंजेक्शन लेने सुबह ही पहुंच गया था। लाइन में लगा, लेकिन पता चला कि इंजेक्शन का तो स्टॉक ही नहीं है। वह परेशान होकर बस यही कहता रहा कि एक ही इंजेक्शन दे दो, बहुत जरूरी है। हालांकि बाद में दुकान के बाहर स्टाॅक नहीं होने का कागज चश्पा कर दिया गया। हर्ष बोला कि मेडिकल वाले ने यह तक नहीं बता रहे हैं कि इंजेक्शन कब मिलेगा।

दोपहर होते-होते बड़ी संख्या में इंजेक्शन लेने वालों की भीड़ लग गई।
क्या करता ब्लैक में 6000 का इंजेक्शन लिया
पृथ्वीराज ने बताया कि कोविड पेशेंट तो बड़ रहे हैं कि रेमडेसिविर इंजेक्शन नहीं मिल रहा है। कल आया था तो कहा कि नहीं है। सुबह 8 बजे से यहां खड़ा हूं, अब कह रहे हैं कि शाम को मिलेगा। हमने पहले अपने मरीज को ब्लैक में इंजेक्शन लेकर लगवाया था। एक इंजेक्शन हमें 6000 का पड़ा था। हमें जान बचाना था इसलिए हमें इंजेक्शन लिया। मेरे पेशेंट तीन दिन से भर्ती हैं। अभी तीन दिन में मेरे एक लाख रुपए से ज्यादा खर्च हो चुके हैं। सबसे बड़ी समस्या यह है कि मेडिक्लेम भी यहां चल नहीं पा रहा है। पहले बेड के लिए भटके अब इंजेक्शन के लिए भटक रहे हैं।

इस प्रकार से स्टॉक नहीं होने का नोटिस चिपका दिया गया।
अस्पताल वाले इलाज ही शुरू नहीं कर रहे
रवींद्र ने बताया कि डॉक्टर कह रहा है कि रेमडेसिविर इंजेक्शन लेकर आओ… यह इंजेक्शन कहीं नहीं मिल रहा है, हम क्या करें। डॉक्टर ने इलाज तक शुरू नहीं किया है। हमारे पेशेंट को सांस लेने में दिक्कत हो रही है। उनकी हालत खराब हो रही है। डाॅक्टर कह रहे हैं कि इंजेक्शन लगाना बहुत जरूरी है। दो दिन से भटक रहा हूं। मंगलवार को पहले कहा एक घंटे बाद आओ… दो घंटे बाद आओ… बाद में कह दिया शाम को आना। फिर आज 11 बजे आने को कहा। सुबह 8 बजे से इंजेक्शन लेने के लिए लाइन में लग गया था। अब कह रहे हैं शाम को 6 बजे मिलेगी। फिर स्टाॅक नहीं का नोटिश चिपका रहे हैं। वहीं, उनके साथ आए लोेकेंद्र ने बताया कि पेशेंट को उन्होंने 2 अप्रैल को अस्ताल में भर्ती किया था। डाॅक्टर कह रहे हैं कि मैंने पहले दिन से ही रेमडेसिविर इंजेक्शन लगाने को कहा है, लेकिन मेरे पास यह पर्चा 6 तारीख का आया है। वे कहते हैं हमने तो अटेंडर को दे दिया था। अटेंडर तो मैं ही था सर, फिर उन्होंने किसे परचा दिया था। ड्यूटी डॉक्टर ने यह एक बार भी यह नहीं कहा कि उन्हें इंजेक्शन नहीं मिला है। जबकि मैं 4-4 घंटे अस्पताल में ही बिता रहा हूं।

लोग बोले- अस्पताल में कह रहे हैं इंजेक्शन लाओ, हम कहां से लेकर आएं।
हर दिन 12 हजार रुपए अस्पताल में लग रहे
परेश ने बताया कि सुबह 8 बजे इंजेक्शन लेने आ गया था। वे कह रहे हैं कि उनके पास स्टॉक नहीं है। कल आया तो दोपहर 4 बजे आने को कहा था। हालांकि इंजेक्शन नहीं मिला। बहुत से लोग थे, जिन्हें वापस बिना इंजेक्शन के जाना पड़ा था। मेरे 90 साल के दादा जी तीन दिन से भर्ती हैं। उन्हें 2 इंजेक्शन लग चुके हैं। हर दिन का 12 हजार रुपए लग रहा है। ये कह रहे हैं कि शाम 6 बजे इंजेक्शन का स्टॉक आएगा। पहले जो इंजेक्शन लिए थे, वे दो-दो हजार के पड़े थे।