चंबल से फिसला पहचान का नया अवसर: गंगा नदी को स्वच्छ बनाने के लिए सफाई कर्मी के तौर पर तैनात किया जाना थे चंबल के कछुए, बजट के अभाव में प्रोजेक्ट हुआ बंद

चंबल से फिसला पहचान का नया अवसर: गंगा नदी को स्वच्छ बनाने के लिए सफाई कर्मी के तौर पर तैनात किया जाना थे चंबल के कछुए, बजट के अभाव में प्रोजेक्ट हुआ बंद


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भिंड30 मिनट पहले

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चंबल नदी के पास कछुआ सरंक्षण योजना का लगा बोर्ड।

  • तीन विलुप्त प्रजाति के मांसभक्षी कछुओं का किया जा रहा था संरक्षण

गंगा नदी की सफाई और चंबल नदी में विलुप्त प्रजाति के कछुओं के संरक्षण काे लेकर भिंड जिले में पांच साल पहले वन विभाग ने मांसभक्षी कछुआ संरक्षण प्रोजेक्ट तैयार किया था। यहां कछुओं की मांसभक्षी प्रजाति की पैदावार बढ़ाई जाना थी। फिर इन्हें आगे का जीवन यापन के लिए गंगा नदी में भेजा जाना था। यह कछुए, गंगा नदी में सफाई कर्मी का काम करते। ऐसा किए जाने से गंगा की सफाई में यह कछुए सहायक बनते और इन्हें जीवन यापन के लिए गंगा में पाए जाने वाले मृत जीवों का पर्याप्त भोजन मिलता। यह प्रोजेक्ट शुरू होने के साथ ही बंद हो गया है। पिछले साल यहां कछुए के बच्चे मरना शुरू हुए। इसके बाद वन अफसरों ने प्रोजेक्ट को लेकर हाथ खड़े कर दिए।

बरही में विलुप्त प्रजाति के कछुओं का होना था संरक्षण

चंबल नदी के किनारे पर बसे बरही गांव में मांसभक्षी कछुआ संरक्षण योजना बंद होने का कारण शासन की ओर से समय पर बजट स्वीकृत न करना है। यहां करीब पांच साल पहले वर्ष 2016-17 में चंबल नदी में विलुप्त होती कछुए की मांसभक्षी प्रजाति के संरक्षण को लेकर योजना तैयार हुई थी। इस योजना पर करीब डेढ़ करोड़ खर्च होना था। वन विभाग के अफसरों के मुताबिक करीब 70 लाख स्वीकृत होकर आए। इसके बाद यह राशि को कछुए के अंडे रखने, प्र्जनन हैचरी बनाए जाने, ऑफिस बिल्डिंग व आवास आदि पर खर्च किया गया। इसके बाद राशि शासन की ओर से नहींं भेजी गई। इसलिए प्रोजेक्ट फेल हो गया।

कछुओं के पालन के लिए तैयार की गई हैचरी।

कछुओं के पालन के लिए तैयार की गई हैचरी।

कछुओं के बच्चों की मौतों पर नहीं हुई जांच

यहां चार अलग-अलग हैचरी तैयार की गई थी। इन हैचरी में चंबल की रेत और पानी के टैंक बनाकर नदी जैसा नेचर दिया गया था। इसके बाद यहां करीब छह सौ संख्या में कछुए के अंडे (विलुप्त मांसभक्षी प्रजाति के)लाए गए और यहां रखे गए। इसके बाद वर्ष 2019 – 20 में बढ़ी तादाद में कछुएं के छोटे-छोटे बच्चों की मौत होने लगी। सूत्र बताते है कि इन कछुओं के बच्चों की मौत का एक कारण यह है कि नदी में पाए जाने वाले मृत जीवों जैसा भोजन व्यवस्था नहीं की जा सकी। इधर शासन की ओर से प्रोजेक्ट की राशि रोके जाने के बाद यह प्रोजेक्ट खटाई में चला गया। वन अफसर बचे हुए करीब 271 कछुए और उनके अंडों को लेकर मुरैना के देवरी संचुरी चले गए और उन्होंने चंबल नदी में इन्हें स्वच्छ विचरण के लिए छोड़ दिया था।

इन तीन प्रजातियों के कछुओं का होना था संरक्षण

चंबल नदी में बाटागुर कछुआ, बाटागुर डोंगोका, कछुआ टेंटोरिया, हारडेला थुरगी, चिप्रा इंडिका, निलसोनिया, निलसोनिया ह्यूरम, लेसिमस पंटाटा, लेसिमस ऐंडरसनी की प्रजातियां पाई जाती हैं। यहां अतिविलुप्त प्रजाति के कछुए साल अथवा बाटागुर कछुआ, टेंटोरियम और निलसोनिया संरक्षण किया जाना था।

जलवायु परिवर्तन के कारण जलीय जीव पर आ रहा संकट

जलीय जीव पर आने वाले संकट आने का कारण जलवायु में परिवर्तन है। इस कारण से दुर्लभ कछुआें की संख्या घट रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि चंबल में जलस्तर कम होना। समय पर बारिश न होने और अधिक तापमान की वजह से जलीय जीवों पर बुरा असर पड़ रहा है।

प्रदेश का पहला कछुआ संरक्षण केंद्र होने से बढ़ते पर्यटक

मांसभक्षी कछुओं की इन तीन विलुप्त प्रजातियां के संरक्षण से सीधे तौर पर गंगा नदी की सफाई में सहयोग मिलता। इसके अलावा कछुए की नइ प्रजातियों को विलुप्त होने से बचाया जा सकता था। यह केंद्र पूरी तरह से संचालित होता तो प्रदेश का पहला कछ़ुआ संरक्षण सेंटर भिंड में मना जाता। ऐसा होने से जलीय जीव प्रेमी व पर्यटकों की संख्या में इजाफा होता।

चंबल नदी। यहां पाए जाते है विलुप्त प्रजाति के कछुए।

चंबल नदी। यहां पाए जाते है विलुप्त प्रजाति के कछुए।

बजट नहीं आया इसलिए काम रूक गया

कछुआ संरक्षण केंद्र के प्रभारी नरेंद्र सिंह कुशवाह का कहना है कि शुरूआत में पैसा आया। काम भी हुआ फिर पैसा आना बंद हो गया। इधर कछुए के बच्चे मरने लगे। इसके बाद अफसर बच्चे हुए अंडे और कछुए के बच्चे लेकर मुरैना चले गए। वहीं चंबल सेंचुरी के रेंजर दीपक शर्मा का कहना है कि यह प्रोजेक्ट मेरे पदस्थ होने से पहले तैयार हुआ था। मुझे इसी स्थिति में मिला। पैसे की कमी के कारण प्रोजेक्ट बंद होने की बात बताई जाती है।

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