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- After The Death Of The Elderly In Medical Family, The Family Was Disturbed For Hours, But In Victoria District Hospital, Even The Tears Of The Relatives Could Not Wake Up The Doctor’s Condolences.
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जबलपुर4 मिनट पहले
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मेडिकल में शनिवार को अपने पिता का शव पाने के लिए परेशान होते रहे।
जिले में बीमार हेल्थ सिस्टम की दो तस्वीर हालात बया करने के लिए काफी है। दोनों घटनाएं जिले के सबसे बड़े सरकारी अस्पतालों में शुमार मेडिकल और विक्टोरिया जिला अस्पताल की है। मेडिकल में भर्ती कोरोना पेशेंट की मौत के बाद परिजनों को ये जानने में ही चार घंटे लग गए। इसके बाद शव पाने की जद्दोजहद शुरू हुई तो शाम हो गई।
विक्टोरिया का मामला तो चिकित्सक पेशे को शर्मसार करने वाला था। कैजुअल्टी में ड्यूटी देने वाले डॉक्टर सोते रहे। बीमार मां को लेकर पहुंचे परिजनों के आंसुओं ने भी उनकी संवेदना नहीं जगा पाई। बिना इलाज के ही महिला ने एम्बुलेंस में ही दम तोड़ दिया।
कोरोना में इंसानों के साथ इंसानियत भी दम तोड़ती नज़र आ रही है। मेडिकल अस्पताल में कोरोना इलाज की व्यवस्था भगवान भरोसे है। बरेला निवासी 64 वर्षीय आनंदपुरी गोस्वामी को उनके भतीजे और बेटों ने गुरुवार सुबह भर्ती कराया था।
आनंदपुरी गोस्वामी इंदौर में संक्रमित हुए थे। इंदिरा गांधी सागर परियोजना इंदौर से रिटायर्ड आनंदुरी गोस्वामी को इंदौर में बेड नहीं मिलने के बाद परिजन जबलपुर लेकर आए थे। यहां मेडिकल में बेड तो मिला, लेकिन शनिवार को उनकी मौत हो गई। इसके बाद परिजनों को शव पाने के लिए परेशान होना पड़ा।
भतीजा पीपीई किट पहन कर पहुंचा तो मृत पड़े थे
आनंदपुरी गोस्वामी की शनिवार सुबह ही मौत हो गई थी। डॉक्टर भतीजा सुबह 7.15 बजे पीपीई किट पहन कर पहुंचा तो इसकी जानकारी हुई। जबकि उनकी मौत सुबह चार बजे के लगभग हो चुकी थी। 8 बजे मेडिकल के स्टाफ ने मौत की पुष्टि की। परिजनों को बताया कि 11 बजे मरचुरी के पास शव मिल जाएगा।
परिजन सुबह 11 बजे से पीपीई किट में शव मिलने का इंतजार करते रहे। शाम चार बजे उन्हें शव मिला। इस बीच वे एसडीएम शाहीद खान से लेकर हर अधिकारी, डाॅक्टर व मरचुरी वालों के साथ नगर निगम के लोगों से गुहार लगा चुके थे।
महाकौशल के लोग आते हैं मेडिकल कॉलेज में
जबलपुर मेडिकल कॉलेज में महाकौशल के साथ-साथ विंध्य के जिलों से भी लोग इलाज कराने आते हैं। पर कोविड के दौरान जूनियर डॉक्टरों और स्टाफ का व्यवहार लोगों के आंसू निकाल दे रहे हैं। मरीज को भर्ती करने के बाद परिजनों को यह पता ही नहीं चल पाता है कि उनका मरीज जिंदा भी है या नहीं। मौत के घंटों बाद बताया जाता है कि उनका मरीज नहीं रहा।
इससे पूर्व एमपीईबी में अधीक्षण यंत्री आईके त्रिपाठी की चाची की मौत के 12 घंटे बाद परिजनों को सूचना दी गई। पूर्व हेल्ड डायरेक्टर एसके सोन के बेटे ने पिता की मौत के बाद रोते हुए मेडिकल में कोरोना मरीजों के इलाज में होने वाली लापरवाही को उजागर किया था।

परिजन रोते हुए डॉक्टर को मनाते रहे और वे गाली देते रहे।
परिजनों के आंसू भी डॉक्टर की संवेदना नहीं जगा पाए
दूसरी घटना जिला अस्पताल विक्टोरिया का है। कोरोना के इस संकट काल में कई डॉक्टर मानवता की मिसाल पेश कर लोगों की जिंदगियां बचा रहे हैं। वहीं जिला अस्पताल में पदस्थ डॉक्टर भरत दुबे की नींद में खलल ने उन्हें इतना गुस्सा दिलाया कि परिजनों के आंसुओं पर भी नहीं पिघले। आधे घंटे बाद एम्बुलेंस में पड़ी महिला को देखने पहुंचे, तब तक उसकी सांसें थम चुकी थी।
परिजनों को गाली के साथ देते रहे धमकी
परिजनों के गुस्से में तेज आवाज में बोले गए देख शब्द से डॉक्टर इतने आक्रोशित हुए कि फोन लगाकर लोगों को बुलाने लगे। गुस्से में गालियां देने लगे। इसका वीडियो सामने आने के बाद भी प्रशासन ने उन पर कोई एक्शन नहीं लिया। सदर केंट निवासी महिला की मौत और उनके परिजनों के साथ डॉक्टर द्वारा किए गए अभद्र व्यवहार पर कांग्रेस के प्रदेश महामंत्री रामदास यादव ने कार्रवाई की मांग की है।