पहले खुद जीते, अब लोगों को सीखा रहे: जीत का सबसे बड़ा मंत्र है हमारा हौसला… कोरोना को दी चुनौती, लड़े और जीतकर भी आए

पहले खुद जीते, अब लोगों को सीखा रहे: जीत का सबसे बड़ा मंत्र है हमारा हौसला… कोरोना को दी चुनौती, लड़े और जीतकर भी आए


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भोपाल8 मिनट पहले

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बढ़ता संक्रमण का आंकड़ा, तेज होता खौफ का दायरा और गहराते मुश्किल हालात। लड़ाई से पहले हार मानने वालों को दुनिया कायरों में शुमार रखती है। लड़कर जीत की संभावनाएं भी बरकरार रहती हैं और अपनी आत्मा पर इस बात का गर्व भी बना रहता है कि लड़े और जीते हैं, जो सदा सनद रहेगा। कोरोना पर अपने हौसले से जंग जीतने वालों ने कहा कि कोरोना ने जब उन पर वार किया तो उन्होंने पीठ नहीं दिखाई, खुलकर उसका स्वागत किया, दो-दो हाथ किए, इलाज और एहतियात की लड़ाई जीती और अब लोगों को इस जंग को जीतने की कला सीखा रहे हैं। चंद ऐसे योद्धाओं से हमने बात की, जिन्होंने कोरोना को मात दी और अब सेहत के सफर पर चल पड़े हैं। खास बात यह है कि यह योद्धा किसी ने किसी बीमारी से पहले से पीड़ित थे और इस वजह से इनकी कोरोना से जंग कुछ बड़ी थी। कोरोना से जंग जीतने की कहानी उन्हीं की जुबानी…
जिंदगी जीने का नया फलसफा मिला: मंजर भोपाली

अपनी शायरी से सारी दुनिया को तंदुरुस्त रखने वाले अंतरराष्ट्रीय शख्सियत मंजर भोपाली! 61 वर्ष की उम्र में हाई डाइबिटीज होने के बाद भी कोरोना ने उन्हें भी जकड़ा लेकिन वे उसको हराकर आ गए। उम्र के इस पड़ाव में हाई डाइबिटीज के इस पेशेंट ने बीमारी के इस मंजर को लेकर कहा कि हमारा हौसला, इस बीमारी से जीत का सबसे बड़ा मंत्र है। मुझे याद है कि जब कोरोना पता चला तो लोगों से मेल-मुलाकात बंद हो गई, घूमना-टहलना बंद करना पड़ा जबकि यही मेरी जिंदादिली का राज है। अफसोस होने लगा तो मैंने मायूस होकर सोशल मीडिया पर एक पोस्ट डाल दी। लेकिन हकीकत उलट निकली। 15 दिन अस्पताल में जिस तरह का माहौल था उसने बीमारी से न केवल लड़ने की हिम्मत दी, बल्कि सारे गिला-शिकवा दूर कर दिए। मंजर भोपाली कहते हैं जब कोरोना का तमगा लिए वे पहली बार अस्पताल पहुंचे तो वहां का दृश्य बहुत डरावना था। न अपने पास थे और न हालचाल लेने वालों की नजदीकी थी। बस हर तरफ खौफ और बेचैन कर देने वाले दृश्य फैले हुए थे। 16 दिन के इस सफर ने बहुत कुछ दिखाया, समझाया और जिंदा रहने का नया अंदाज सिखाया। मंजर कहते हैं कि डायबिटीज की दवाओं के साथ तालमेल मिलाते हुए इलाज शुरू हुआ। दुनियाभर के चाहने वाले डॉक्टर्स यहां के डॉक्टरों से मशविरा करते हुए इलाज को आगे बढ़ाते रहे और मैंने किताबों से अपनी दोस्ती गहरी कर ली। अदब और मजहबी किताबों का जखीरा मैंने पढ़ डाला। इस बीच कुदरत को मनाने और राजी करने का सिलसिला भी तेज हो गया। सोलह दिन की मशक्कत ने कोरोना को हरा दिया, जिंदगी जीने का नया फलसफा मुझे सिखा दिया। मंजर अब लोगों से एहतियात बरतने, बीमारी को गंभीरता से लेने और सोशल मीडिया की भ्रम दुनिया से दूर रहकर हर जंग जीत लेने का मंत्र देते हैं।

बेटे को अस्पताल के माहौल बनाए रखा सकरात्मक: पंकज शुक्ला

अस्पताल में आसपास हर तरफ संक्रमित। आधी रात में भी अस्पताल आती एम्बुलेंस की आवाजें। कोई दर्द से परेशान, किसी की दवा के लिए दौड़ भाग। इस सब में सकारात्मक बने रहने का प्रयास होता। कुछ बेहतर पढ़कर। बेहतर सुन कर। यह बात हाई बीपी/डायबिटीज से पीड़ित रहे पत्रकार पंकज शुक्ला ने कही। उन्होंने कहा कि दवा के साथ आहार समय पर, खूब पानी, पर्याप्त नींद, प्राणायाम का अभ्यास किया गया। आरंभिक इलाज के बाद सुबह प्राणायाम से ही आरम्भ होती। दिन में तीन बार श्वांस साधने के अलग अलग व्यायाम। रेमडेसिविर से डायबिटीज बढ़ती है। इसलिए कार्बोहाइड्रेट पूरी तरह बंद किया। कुछ समय के लिए डायबिटीज की गोली मेफटॉल शुरू की गई। पंकज शुक्ला बताते है परिवार में पांच साल का बेटा भी पॉजिटिव था। उसे भी साथ में रखा गया था। उसे ऑरल मेडिकेशन दिया गया था अतः उसे ज्यादा एहतियात से रखा गया। माता पिता हरदम मास्क लगा कर रहे ताकि कमजोर इम्युनिटी के कारण कोई नई समस्या खड़ी न हो। बच्चे को कहानी गीत सुना कर। माता ने न केवल सिटी स्कैन करवाया बल्कि हमेशा उसे अस्पताल के वातावरण में सकारात्मक बनाए रखा।

समय पर दवाएं और पूरी तरह आराम से जीती जंग: विजय तिवारी
ज्यादा से ज्यादा मौत होगी, मेरा दिल बेसबब घबरा रहा है…। शायर-ए-शहर कहलाने वाले विजय तिवारी को जब कोरोना ने अपनी आगोश में लिया तो उन्होंने प्रभु का नाम लिया, चिकित्सकीय टीम पर विश्वास किया और अपने आंतरिक क्षमताओं को हिम्मत बंधाते हुए खुद को इस जंग में झोंक दिया। करीब एक सप्ताह तक अस्पताल की दहलीज के अंदर रहे विजय तिवारी कहते हैं कि खौफ मौत से नहीं था, डर इस बात का था कि अपनी मौजूदगी किसी दूसरे के लिए नुकसान की वजह न बन जाए। सुबह की शुरुआत आम आदत में शुमार अल सुबह ही हो जाया करती थी। प्रभु स्मरण और योगा से दिन की शुरुआत। फिर तयशुदा नाश्ता और डॉक्टर्स की सलाह का भोजन। डायबिटीज/थायराइड से पीड़ित रहे विजय तिवारी ने कहा कि खास ख्याल ये रखा गया कि भ्रामक खबरों के मकड़जाल से बचा जाए। हर बात बबात विचलित करने वाले फोन कॉल्स और झूठ की नींव पर ठहरे सोशल मीडिया से बचा जाए। समय पर दवाएं और पूरी तरह आराम ने भी जंग जीतने में मदद की। विजय तिवारी बताते हैं कि
गर्म पानी का सतत सेवन और योगा की आदत ने कोरोना को पछाड़ने में मदद की। अब वे सभी को इस बात की सलाह देते हैं कि दवाओं से ज्यादा असर एहतियात में है। कुछ बातों का ध्यान रखकर जिंदगी को सुरक्षित रखा जा सकता है। साथ ही दूसरों के लिए भी बेहतर माहौल रखा जा सकता है।

स्वस्थ्य, तथ्यात्मक और ऊर्जावान विषयों पर चर्चा करना दिनचर्या का हिस्सा बना लिया: संजय पाठक ड्यूटी के तकाजों ने इतनी मोहलत नहीं दी कि घर में बैठकर एहतियात बरती जा सके। बीमारी ने जकड़ लिया और दस दिन से ज्यादा की अस्पताल की मेहमानी करवा दी। ड्यूटी के दौरान बीमारी के लक्षण दिखाई दिए तो डॉक्टरों ने इंदौर कोविड सेंटर पहुंचने की सलाह दी। समय पर इलाज मिला और हमने हिम्मत से सारे हालात का सामना किया, नतीजा यह है कि अब मर्ज से दूर भी हैं और डर से भी।
बुरहानपुर जिले के शाहपुर में पदस्थ थाना प्रभारी संजय पाठक कहते हैं कि लोगों ने बीमारी को डर के तौर पर सिरों पर सवार कर लिया है। लेकिन इसका उचित समाधान यह है कि अहतियात करें, उचित इलाज कराएं और स्वस्थ्य होने के बाद भी इस बात का ख्याल रखें कि बीमारी से छुट्टी मिली है, छुटकारा नहीं। हाई डायबिटीज पेशेंट संजय पाठक कहते हैं अस्पताल में मिले समय ने उन्हें दुनिया और खुद अपने बारे में सोचने का पर्याप्त समय दिया। उन्होंने हनुमान चालीसा का पाठ अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना लिया था। अच्छी पुस्तकें पढ़ना और खाली समय होने पर आसपास मौजूद लोगों से स्वस्थ्य, तथ्यात्मक और ऊर्जावान विषयों पर चर्चा करना अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना लिया था। बीमारी का जिक्र और महामारी की बात हमने अपने सर्किल में पूरी तरह प्रतिबंधित कर दी थी। दवाओं पर भरोसा और विधाता की नियति पर पूर्ण विश्वास का संबल था, जो आज स्वस्थ्य जीवन की तरफ कदम बढ़ा लिए है।
संजय पाठक कहते हैं कि संक्रमण जल्दी अपने कब्जे में ले रहा है, इसलिए गाइडलाइन का पालन करें और सुरक्षित रहें। उन्होंने बताया कि उम्र के लिहाज से शुगर, बीपी जैसी बीमारियों का साथ भी है, जिस तरह उनके लिए सतर्कता रखी जाती है, वैसे ही अब बीमारी के इस नए अवतार के लिए भी सावधानी रखने की जरूरत है। डरने से नहीं, लड़ने से विजय मिलेगी, कोरोना हमारा कुछ बिगाड़कर नहीं जाएगा, इस बात का विश्वास रखिए।

रिपोर्ट: खान आशु, भोपाल

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