कोरोना ने छीना हॉकी के ‘आंकड़ों का जादूगर’: रेडियो पर सुनकर हॉकी खिलाड़ियों का रिकॉर्ड अपडेट कर लेते थे BG जोशी, अखबार उन्हीं से लेते थे डेटा; धनराज पिल्ले ने जताया शोक

कोरोना ने छीना हॉकी के ‘आंकड़ों का जादूगर’: रेडियो पर सुनकर हॉकी खिलाड़ियों का रिकॉर्ड अपडेट कर लेते थे BG जोशी, अखबार उन्हीं से लेते थे डेटा; धनराज पिल्ले ने जताया शोक


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सीहोर7 मिनट पहलेलेखक: कार्तिक सागर समाधिया

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बाबूलाल गोवर्धन जोशी (बीजी जोश

हॉकी के प्रसिद्ध सांख्यिकीविद और इतिहासकार बाबूलाल गोवर्धन जोशी (बीजी जोशी) का कोरोना की वजह से मंगलवार को भोपाल में निधन हो गया। वह 67 साल के थे और मध्यप्रदेश के सीहोर के रहने वाले थे। उनके निधन पर हॉकी इंडिया ने भी शोक जताया है। उनके परिवार में पत्नी कृष्णा और दो बेटे श्रवण और नीरज हैं। हॉकी के इतिहासकार के तौर पर पहचान बनाने वाले जोशी मध्यप्रदेश के जल संसाधन विभाग में इंजीनियर थे। हॉकी के लगाव के चलते ही उन्होंने साल 1970 से ही रिकॉर्ड रखना शुरू कर दिया था और वह राष्ट्रीय अखबारों को आंकड़े मुहैया कराते थे।

भारतीय हॉकी के पूर्व कप्तान धनराज पिल्ले ने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर याद किया।

भारतीय हॉकी के पूर्व कप्तान धनराज पिल्ले ने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर याद किया।

अधूरा रह गया भारत को ओलंपिक में खेलते देखने का सपना
बीजी जोशी हॉकी की वजह से कई देशों की यात्रा कर आए। उनकी आखिरी ख्वाईश भारत को ओलंपिक खेलते देखना, अधूरा ही रह गया। हाल ही में उन्होंने सोशल मीडिया अर्जेंटीना के खिलाफ भारतीय टीम की जीत पर खुशी जाहिर करते हुए लिखा था- इसने मेरे चेहरे पर खुशी ला दी।

इस घटना से जान सकते हैं हॉकी के प्रति लगाव
बात 90 के दशक की है। केन्या की हॉकी टीम भारत आने वाली थी। किसी के लिए यह सामान्य बात हो सकती है लेकिन बीजी जोशी के लिए एक अच्छा मौका था। वे ऑफिस छोड़कर राजधानी के लिए रवाना हो गए। उनका मकसद सिर्फ हॉकी का मैच देखना नहीं था। वे केन्या की टीम के कप्तान से मिलना चाहते थे। इसकी पीछे वजह यह थी कि कुछ साल पहले केन्या की टीम सीरीज खेलने भारत आई थी। उस समय टीम में दो गोलकीपर भी थे। बीजी जोशी के आंकड़ों की लिस्ट में उन दोनों के नाम कहीं नहीं थे। बस उन्हीं को जानने के लिए उन्होंने दिल्ली की इस यात्रा को किया था।

ऐसे वक्त जब प्रोफेशनल स्पोर्ट्स आंकड़ों को जुटाने के लिए टीमों पर निर्भर थे। तब जोशी इस काम को अकेले करते रहे। वे खासकर भारतीय खिलाड़ियों के डेटा को सहेजकर रखते थे। यह ऐसा वक्त था, जब वह हॉकी का मैच टेलिकॉस्ट नहीं होता था और मैच किसी भी वक्त शुरू हो जाया करते थे। तब इस तरह की जानकारी के स्त्रोत मौजूद नहीं हुआ करते थे। उस समय आंकड़े जुटाना बहुत मुश्किल काम था। पिछले 5 दशकों तक वह फेडरेशन, खिलाड़ियों और पत्रकारों के लिए किसी आंकड़े की किताब से कम नहीं रहे।

ली वैली हॉकी स्टेडियम.लंदन में एक मैच के दौरान बीजी जोशी।

ली वैली हॉकी स्टेडियम.लंदन में एक मैच के दौरान बीजी जोशी।

1970 से शुरू हुआ आंकड़ों को सहेजने का काम
मध्यप्रदेश के जल संसाधन विभाग से रिटायर्ड इंजीनियर जोशी ने 1970 में बैंकॉक में हुए एशियन गेम से आंकड़ों को सहेजने का काम किया। वह रेडियो सुनकर आंकड़े लिखा करते थे। धीरे- धीरे खेलों के आंकड़े जमा करने का उनका लगाव बढ़ता गया। उन्होंने 10 डॉलर की कीमत पर वर्ल्ड हॉकी मैग्जीन खरीदा करते थे। इसमें इंटरनेशनल हॉकी फे़डरेशन हर महीने हॉकी से जुड़े मैच का डॉटा पब्लिश करती थी।

हालांकि, वे कहा करते थे कि जिस कीमत की मैग्जीन आती थी। उतनी उनकी सैलरी नहीं थी। लेकिन वह फिर भी मैनेज कर लेते थे। जानकारों के मुताबिक, वह भोपाल से अखबार, मैग्जीन खरीदकर लाते थे। वह नेशनल ट्रेनिंग कैम्पस में जाकर आंकड़े जुटाया करते थे। उनके पास सभी भारतीय हॉकी खिला़ड़ियों के रिकॉर्ड मौजूद थे। 1990 में वह लाहौर का वर्ल्डकप भी देखने पहुंचे। सभी टीमों से उन्होंने डाटा इकट्ठा किया था।

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