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भोपाल8 मिनट पहले
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नुक्ती खारे का फाइल फोटो
हर शहर की एक संस्कृति है, हर जगह की एक पहचान और हर जगह का एक रिवाज। नवाबों के शहर भोपाल में खानपान के शौकीनों की भरमार है। आम दिनों में यहां पकाए और खाए जाने वाले लजीज पकवानों के अलावा रमजान माह में कुछ खास चीजों का उपयोग यहां किया जाता है। इनमें इफ्तार के दौरान इस्तेमाल की जाने वाली नुक्ती-खारे का खास महत्व है। बिना नुक्ती खारे के भोपाल के दस्तरख्वान आमतौर पर स्वीकार्य ही नहीं हैं।
इस स्थिति के चलते यहां हर रमजान में नुक्ती-खारे का करोड़ी कारोबार हुआ करता है। लेकिन पिछले दो साल से इस व्यवसाय पर तालाबंदी जैसे हालात बने हुए दिखाई दे रहे हैं। शाहजहांनाबाद चौराहा से काजी कैम्प के बाजार तक और इतवारा से लेकर बुधवारा चौराहा तक पुराने शहर के हर छोटे-बड़े बाजार में रमजान की आमद का ऐलान ही नुक्ती-खारे की दुकानें करती नजर आया करती थीं। लाल, हरी, पीली रंग की नुक्तियां और उनका साथ देते नमकीन पारे, सेंव और दालमोठ।
इफ्तार के दौरान चटखारे लेकर इसका इस्तेमाल करने का रिवाज पुश्तैनी कहा जा सकता है। बुधवारा की एक दुकान से कभी रमजान के पहले दिन 40 टन नुक्ती-खारे बिक्री करने का रिकॉर्ड रखने वाले जावेद खान अब पिछले दो सालों से मुट्ठीभर नुक्ती-खारे बेचने के हालात में नहीं हैं। इसी तरह शाहजहांनाबाद के नूर भाई मिठाई वालों को कभी रमजान के पूरे माह अपने स्टॉल के संचालन के लिए दसों सहायकों की मदद लेना पड़ती थी, वहीं अब उनकी दुकान पर न पहले की तरह भीड़ के नजारे हैं और न ही लोगों को थैलियां भरकर नुक्ती-खारे ले जाने के हालात।
बिक्री का अंदाज मजदूरी से लगाएं
बुधवारा चौराहा पर बरसों से नुक्ती-खारे की बिक्री कर रहे जावेद खान कहते हैं कि उन्हें रमजान के कारोबार की पूर्ति के लिए अन्य शहरों से कारीगर बुलाने पड़ते थे। इसके अलावा स्टॉल के संचालन के लिए हर दिन 10 से 20 लोगों की जरूरत उन्हें पड़ती थी। वे बताते हैं कि नुक्ती-खारे की बिक्री का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि वे हरदिन अपने कारीगरों और सहायकों को 15 से 20 हजार रुपए का पारिश्रमिक वितरण किया करते रहे हैं।
भोपाल का स्वाद विदेशों तक
नादरा कॉम्पलेक्स में रहने वाले खालिद हुसैनी बताते हैं कि नुक्ती-खारे का इस्तेमाल शहर की पहचान से जुड़ा हुआ है। माश की दाल, चने का आटा और नमकीन सामग्री के साथ तैयार किया गया यह व्यंजन भोपाल की सीमाओं को तोड़ता हुआ न सिर्फ देशभर बल्कि विदेशों तक भी मशहूर है। वे बताते हैं कि दुबई, सउदी अरब, कतर, मस्कत समेत दुनिया के कई मुल्कों में, जहां भोपाल या प्रदेश के लोगों का आनाजाना है, वे रमजान माह में नुक्ती-खारे की खास फरमाइश करते हैं और उनके अपने इसको समय पर वहां तक पहुंचाने की कोशिश भी करते हैं।
तबर्रुक (प्रसाद) में बंट जाती थी हजारों की नुक्ती
शहर में पांच, सात, दस या चौदह दिन में कुरआन पूरा करने के साथ होने वाली तरावीह के बाद तबर्रुक (प्रसाद) वितरित किए जाने का रिवाज रहा है। शहर की 500 से ज्यादा मस्जिदों में होने वाले इस सालाना आयोजन के दौरान हर बड़ी मस्जिद से, जहां नमाजियों की तादाद ज्यादा है, 30 से 40 हजार रुपए की नुक्ती प्रसाद के रूप में बंटने का रिवाज रहा है। जबकि छोटी मस्जिदों से भी 10-20 हजार रुपए की नुक्ती बांटा जाना सामान्य बात रही है।
रिपोर्ट: खान आशु