- Hindi News
- Local
- Mp
- Coronavirus Recovered Patients Stories From Madhya Pradesh Rajasthan Bihar And Chhattisgarh
Ads से है परेशान? बिना Ads खबरों के लिए इनस्टॉल करें दैनिक भास्कर ऐप
सेंट्रल डेस्क। भोपाल5 मिनट पहले
- कॉपी लिंक
उदयन अस्पताल में जन्मदिन मनाते कोरोना और कैंसर से पीड़ित 88 साल के बुजुर्ग।
मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। संत कबीर की यह पंक्ति कोरोना से लड़ाई में जीत के लिए ‘अचूक मंत्र’ है। इसी ‘मंत्र’ के बूते कोरोना संक्रमित कई लोगों ने अपनी सकारात्मक सोच और जीने के जज्बे के साथ महामारी को हरा दिया है। हम आपको ऐसी ही छह कहानियों से रूबरू करा रहे हैं, जिन्होंने पूरी दुनिया में डर का पर्याय बने कोरोना को हंसते-गाते परास्त कर दिया है।
1. 88 साल की उम्र में कैंसर के साथ कोरोना को हराने वाले का जज्बा देख मरीजों का ऑक्सीजन लेवल हाई
88 साल के देवी प्रसाद रिटायर्ड प्रोफेसर हैं। वह मगध विश्वविद्यालय के HOD भी रह चुके हैं। वह काफी दिनों से गले के कैंसर से परेशान हैं। इस जानलेवा बीमारी में बुखार के साथ अन्य परेशानी तो आम बात है, लेकिन 8 दिन पहले जो बुखार आया वह सामान्य नहीं था। लक्षण कोरोना के थे। जांच में जब कोरोना डिटेक्ट हो गया तो लगा कैंसर के साथ मिलकर कोरोना जानलेवा हो जाएगा, लेकिन इसके बाद भी देवी प्रसाद ने हिम्मत नहीं हारी। वह बोले जिस तरह से कैंसर हार रहा है, वैसे कोरोना भी हारेगा। उन्हें पटना के उदयन हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया, जहां उन्हें बाईपैड पर रखा गया। यह वेंटिलेटर की तरह ही सपोर्ट होता है, जिससे मरीजों की जान बचाई जाती है। इतना ही नहीं, सोमवार को देवी प्रसाद का बर्थ डे हॉस्पिटल की तरफ से सेलिब्रेट किया गया। इस दौरान भी देवी प्रसाद के अंदर एक बच्चे जैसा उत्साह दिखा। इसे देख अन्य संक्रमित मरीजों पर बड़ा असर पड़ा। संक्रमित भी बीमारी भूलकर खूब इंज्वाय किए।
2. बालाघाट में 92 साल के बुजुर्ग ने अपने जज्बे से जीती कोरोना की जंग
बालाघाट के रहने वाले 92 साल के बुजुर्ग तुलसीराम सेठिया ने नाचते-गाते कोरोना से जंग जीत ली। वे कोरोना पॉजिटिव हुए। घर पर ही क्वारैंटाइन रहे। इस दौरान एक्सरसाइज की, म्यूजिक की धुन पर थिरकते रहे और परिवार के साथ मस्ती करते रहे। बालाघाट के 92 साल के बुजुर्ग की कोरोना रिपोर्ट करीब 14 दिन पहले पॉजिटिव आई थी। उन्हें ज्यादा समस्या नहीं होने पर घर में मौजूद बड़े कमरे में आइसोलेट कर दिया गया। बीमारी को लेकर आ रही नकारात्मक खबरों ने परिवार की भी चिंता बढ़ा दी। इस बीच जीने की ललक और अपने बिंदास अंदाज से तुलसीराम हिम्मत बांधे रखे। परिवार के लोगों ने भी उनका हौसला बढ़ाया। सोशल मीडिया पर तुलसीराम सेठ ए नाम के बुजुर्ग का वीडियो वायरल हो रहा है। तीन दिन पहले उन्होंने दोबारा सैंपल दिया। इसके बाद रिपोर्ट निगेटिव आई।
3. इंदौर की युवती ने इच्छा शक्ति से इन्फेक्शन को 85% से कर दिया 55% तक
रुचि खंडेलवाल के फेफड़ों में 85 फीसद इन्फेक्शन था, जिस अपनी इच्छा शक्ति से उन्होंने 55 प्रतिशत तक ला दिया।
इंदौर के अरबिंदो अस्पताल में भर्ती रुचि खंडेलवाल नाम की युवती ने सोशल मीडिया पर वीडियो अपलोड किया है। इसमें युवती ने लोगों को महामारी से लड़ने के कुछ टिप्स बताए हैं। इन्हीं टिप्स और इच्छा शक्ति के बल पर ही वह बीमारी पर जीत के करीब पहुंच गई है। वीडियो में युवती का कहना है, जब वह अस्पताल में भर्ती हुई थी, तब उसे 85% लंग इन्फेक्शन था, लेकिन इच्छाशक्ति और कई तरीकों से इंफेक्शन को 55% पर आ गया है। रुचि का कहना है, कभी भी आप यह ना मानें कि आपको कोई बीमारी है, क्योंकि बीमारी दिमाग में घर कर जाती है। युवती ने वीडियो में प्रोन वेंटिलेशन के बारे में भी जानकारी दी। युवती ने बताया कि फेफड़ों की बनावट सामने की तरफ पतली होती है, क्योंकि आगे हृदय होता है। वहीं, पीठ की तरह फेफड़े का आकार चौड़ा होता है। संक्रमण से फेफड़ों के सामने का भाग ज्यादा प्रभावित होता है। ऐसे में पीठ के बल सोने से फेफड़ों के निचले भाग का उपयोग नहीं होता, जबकि पेट के बल सोने से फेफड़ों के निचले भाग का उपयोग होने लगता है।
4. 26 दिन तक आईसीयू में रहा, 3 अस्पताल बदले, 52 दिन तक कोरोना से लड़ा और जीता
रिटायर अध्यापक मोतीलाल भगोती कहते हैं- हर पल कुछ न कुछ निगेटिव हो रहा था, पर खुद की सोच को पॉजिटिव बनाए रखा।
कोरोना संक्रमित हुए रिटायर अध्यापक मोतीलाल भगोती को तीन अस्पतालों में 26 दिन बाद भी आईसीयू से निकाल लिया। कोरोना को हराने की पूरी कहानी बता रहे हैं लक्ष्मीनारायणपुरी सूरजपोल के रहने वाले मोतीलाल…। अक्टूबर का महीना था। गुलाबी जाड़ा पड़ रहा था। मैं अपने गांव भांडारेज दौसा में था। हल्का बुखार हुआ तो लगा कि शायद मौसम बदलने का असर है। परेशानी बढ़ी तो डॉक्टर तो दिखाया। जांच कराई…डर सच साबित हुआ और मैं कोरोना संक्रमित हो चुका था।
फेफड़े भी 80 फीसदी के आस-पास संक्रमित हो चुके थे। ऑक्सीजन का लेवल भी 70 से नीचे था। पहले तो दिमाग में कई नकारात्मक विचार आए, फिर सोचा पूरी जिंदगी बच्चों को पॉजिटिव रहना सिखाया है, तो आज मैं कैसे निगेटिव हो सकता हूं? फिर क्या फिर तय कर लिया कि जब तक मैं खुद निगेटिव नहीं हो जाता किसी हाल में निगेटिव विचारों को पास नहीं आने दूंगा। हर पल…पह घड़ी एक ही बात दिमाग में चलती कि बस कोरोना को हराना ही होगा। पहले जेएनयू के आईसीयू में 2 दिन भर्ती रहा। सांस लेने में परेशानी होने लगी।
मुझे फिर टैगोर अस्पताल में भर्ती कराया गया। वहां भी राहत नहीं मिली तो आरयूएचएस पहुंचा। ऐसे तीन अस्पतालों में 26 दिनों तक आईसीयू में रहा और 55 दिन तक इलाज चला। तीन दिन तो बेहोश रहा। मेरे सामने से हर दिन कोई न कोई शव ले जाया जाता और मैं देखता रहता। आखिरकार डॉक्टर, नर्सिंग कर्मचारी और खुद की इच्छाशक्ति से मैंने कोरोना को हरा दिया। अब मैं पूरी तरह स्वस्थ हूं। हर दिन कोरोना गाइड लाइन की सख्ती से पालना करना और खुद को शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत करता हूं। साथ ही मेरी जान-पहचान में जो लोग कोरोना पॉजिटिव आए हैं उन्हें हर दिन फोन पर सकारात्मक होने को कहता हूं।
5. पटना में 7 महीने की बच्ची से हारा कोरोना; इसकी झप्पी से मां भी संक्रमण मुक्त हुईं
डॉ. अृमत राज, उनकी पत्नी अनामिका की गोद में बच्चे।
कोरोनावायरस को पटना की 7 महीने की बच्ची ने हरा दिया। वायरस ने पकड़ तो मजबूत बनाई थी, लेकिन मासूम ने हंसते-खेलते उसे पटखनी दे दी। बुखार में भी हंसती रही। पूरा घर पॉजिटिव रिपोर्ट को निगेटिव करने के लिए अवंतिका की पॉजिटिविटी में ऐसा रमा कि पूछिए मत। अवंतिका का सवा 2 साल का भाई शिवांश गंभीर भी हुआ, लेकिन वह भी इसे देखते-देखते ठीक हो गया। डॉ. अृमत राज बताते हैं कि 8 अप्रैल को उन्हें बुखार आया, जिसके बाद वह घर में ही क्वारैंटाइन हो गए। 9 अप्रैल को टेस्ट की रिपोर्ट निगेटिव आई, लेकिन 10 अप्रैल को लक्षण आ गए।
सर्दी के साथ खांसी आने लगी। पत्नी अनामिका को भी लक्षण दिख गए। वे भी क्वारैंटाइन हो गईं। 7 महीने की बच्ची को 24 घंटे तक मां से अलग रखा, ताकि वह संक्रमित नहीं हो। फिर जांच कराने पर पति-पत्नी पॉजिटिव निकले। घर वालों से दूरी बनाई, अलग-अलग कमरे में रहने लगे। परेशानी पीछा नहीं छोड़ रही थी। दूर रहने के बावजूद 7 माह की बेटी को खांसी-बुखार हो गया। मां से अलग रह रही बेटी भी कोरोना पॉजिटिव हो गई और फिर बेटा शिवांश भी गंभीर हो गया। बुखार के साथ अचानक 50-60 उल्टियां हो गईं। तुरंत एम्स पहुंचे, लेकिन कोई प्राइवेट रूम नहीं मिल सका।
डॉ. अमृत राज का कहना है कि तकलीफ तो तब हुई जब उन्हें AIIMS में प्राइवेट रूम नहीं दिया गया। जनरल वार्ड में आइसोलेशन के लिए रखा जा रहा था। वह मायूस होकर बच्चे का इलाज कराकर घर आ गए। पूरा परिवार पॉजिटिव था और इस पर संस्थान में रूम नहीं मिलना बड़ा तनाव था। इसके बाद ENT की HoD डॉ कांति भावन की कोशिश से उन्हें प्राइवेट रूम मिल गया तो डॉ. अमृत अपनी पत्नी और दोनों बच्चों के साथ भर्ती हो गए। वे 6 दिनों तक AIIMS में भर्ती रहे।
डॉ. अमृत राज कहते हैं कि उन्होंने वैक्सीन की दोनों डोज ली थीं, इस वजह से उन पर वायरस का ज्यादा असर नहीं हुआ। लेकिन 7 महीने की बेटी ने तो वैक्सीन वालों से भी तेजी से वायरस को फाइट दी। बच्ची को लेकर पूरा परिवार काफी डरा हुआ था, लेकिन बुखार और कोविड के पूरे लक्षण होने के बाद भी उसका हंसना एक दिन भी बंद नहीं हुआ। जब वह मां के पास सीने से लिपटी रहती थी तो मां को भी जल्द ठीक होने की हिम्मत मिलती गई। मासूम को देखकर ही पूरा परिवार तेजी से वायरस से फाइट करता रहा।
डॉ. अमृत कहते हैं कि अगर घर में जच्चा-बच्चा पॉजिटिव हों और बच्चे को मां की फीडिंग की जरूरत पड़ती हो तो दोनों को साथ रखें। दोनों में तेजी से सुधार होगा। उनके घर में सभी सदस्यों में से 7 माह की बेटी ने सबसे पहले कोविड को मात दी। इसके पीछे बड़ा संदेश यही है कि उसे कोई डर नहीं था, वह कोरोना के बारे में अनजान थी। इसी तरह किसी को भी कोरोना से डरना नहीं है, बस हिम्मत से गाइडलाइन का पालन करते हुए वायरस को मात देनी है।
6. छत्तीसगढ़ के बुुजुर्ग का 60 से नीचे था ऑक्सीजन लेवल, बिना वेंटिलेटर जीत गए कोरोना से
डॉक्टर और मरीज के पॉजिटिव एटीट्यूड ने कोरोना और अन्य बीमारियों को हराया।
डॉक्टर प्रशांत साहू बताते हैं- 68 साल के प्रफुल्ल यादव जिस स्थिति में लालपुर के केयर सेंटर में आए वो काफी क्रिटिकल थी। ऑक्सीजन सेचुरेशन 60 के नीचे था… बीपी भी अप डाउन हो रहा था …डायबिटिक पेशेंट होने की वजह से उनका शुगर लेवल 500 से 600 के बीच आ गया था। ऐसे कोरोना पेशेंट को आम तौर पर वेंटिलेटर पर इंटेस क्योर की जरूरत पड़ती है। हमारे पास सीमित संसाधन थे पेशेंट को कोई अस्पताल नहीं मिल रहा था। हमने इस स्थिति को चैलेंज की तरह लिया…और पूरी टीम ने मजबूत इरादों के साथ इलाज की शुरूआत की।
हमने ऑक्सीजन थैरेपी के जरिए सबसे पहले प्रफुल्ल यादव के सेचुरेशन लेवल को सुधारने की शुरूआत की शुरूआती दवा इंजेक्शन भी दिए। पहले दिन उनकी स्थिति स्टेबल हो गयी। लेकिन एक दिन बाद ही उनका ऑक्सीजन लेवल 45 से नीचे आ गया। वो क्रिटिकल से और ज्यादा क्रिटिकल स्थिति में पहुंच गये। हमने उनके बेटे से बात की लेकिन कहीं भी वेंटिलेटर नहीं मिल पाया…। हमें लगा कि वेंटिलेटर के लिए मरीज को शिफ्ट करवाना अब इस स्थिति में ठीक नहीं होगा।
हमने इलाज मॉनिटरिंग के जरिए उन्हें ठीक करने की कोशिशें दोगुना हौसले के साथ शुरु कर दी। इस बार हमें कामयाबी मिलने लगी…लगातार इलाज और हमारी लालपुर की पूरी टीम के प्रयासों से वो स्वस्थ होने लगे। 10 दिन बाद जब उनको हमने डिस्चार्ज किया तो उनका ऑक्सीजन लेवल 96 से 98 तक आ गया । सोमवार को उनके बेटे ने बताया कि घर पर भी बिना ऑक्सीजन दिए के उनके पिता का सेचुरेशन लेवल 97 से अधिक है। वेंटिलेटर की कमी के बीच इस केस से हमने भी ये सीखा है कि बिना वेंटिलेटर के भी मरीज को क्रिटिकल स्थिति में सुधारा जा सकता है।