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- Pregnant Lady Said On Getting Infected Now It Is Difficult To Escape, Kept Wandering For The Beds, Provided The Woman With The Beds And Also Arranged For A Separate Doctor.
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इंदौर20 मिनट पहले
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भोपाल में ब्याही रोशनी कौर पिछले लॉकडाउन में इंदौर में फंस गई थी, उसकी हालत बहुत खराब हो गई थी।
काेराेना काल में लगातार मरीज बेड, ऑक्सीजन और इंजेक्शन के लिए परेशान हाे रहे हैं। ऐसे में सोशल मीडिया के जरिए कई मददगारों के नंबर आगे बढ़ाए जा रहे हैं। परेशान लाेगों के कॉल आने पर वे आगे बढ़कर लोगों की मदद भी कर रहे हैं। उन्हें अस्पताल में बेड दिलाने से लेकर उनकी दवाई, खाने और आवाजाही तक का खर्च उठा रहे हैं। ये लोग नि:शुल्क और नि:स्वार्थ मानव सेवा में रात-दिन लगे हुए हैं। इंदौर की एक ऐसी ही संस्था कोरोना मरीजों के लिए काम कर रही है।
संस्था इंदौरियंस नामक इस संस्था ने अब तक 250 से ज्यादा गरीब-असहाय और परेशान लोगों की मदद की है। इनमें इंदौर ही नहीं, मंदसौर, रतलाम, उज्जैन के साथ प्रदेशभर के इंदौर आए कोरोना संक्रमित मरीज शामिल हैं। इनकी मदद के बाद ठीक होकर अपने घर लौट रहे लोग वीडियो बनाकर इन्हें धन्यवाद भी दे रहे हैं। संस्था इंदौरियंस के रवि गुप्ता और उमा त्रिवेदी ने बताया कि हमारी संस्था पिछले 20 सालों से गरीबों और असहायों की सेवा में जुटी हुई है। संस्था के करीब 700 सदस्य वृद्धा आश्रम, ब्लाइंड स्कूलों में मदद पहुंचाना, गरीबों को राशन उपलब्ध करवाने का काम करते हैं। कोरोनाकाल को याद करते हुए उन्होंने कुछ केस दैनिक भास्कर से साझा किए।

संस्था इंदौरियंस के उमा त्रिवेदी और रवि गुप्ता लोगों की मदद में लगे हुए हैं।
केस -1 : त्रिवेदी ने बताया कि पिछले साल लॉकडाउन की बात है। पलसीकर कॉलाेनी के रहने वाले बुजुर्ग ज्ञान सिंह अरोरा का हमारे पास कॉल आया। उन्होंने बताया कि वे सुबह से इंदौर के अस्पतालों में चक्कर लगा रहे हैं, लेकिन उन्हें कोई भर्ती नहीं कर रहा है। करीब 5 घंटे से वे यहां-वहां भटक रहे हैं। उन्हें सांस लेने में काफी तकलीफ हो रही है। यदि ऐसा ही रहा तो मैं बच नहीं पाऊंगा। मैं सुबह 6 बजे से घूम रहा हूं। कॉल आने के बाद मैं तत्काल उनकी मदद को पहुंची और उन्हें लेकर सुयश अस्पताल गई। तब सुयश अस्पताल कोविड अस्पताल नहीं था। वहां पर जब उनकी जांच हुई तो उन्हें काफी इंफेक्शन था और रिपोर्ट कोविड पॉजिटिव थी। इस पर अस्पताल ने तत्काल उन्हें कोविड अस्पताल में भर्ती होने को कहा। इस पर हमने उनकी व्यवस्था अरबिदों में करवाई। वे करीब 15 दिन वहां रहे और फिर स्वस्थ्य होकर घर लौटे।

ज्ञान सिंह अरोरा को सांस लेने में दिक्कत हो रही थी। उन्होंने कई अस्पतालों के चक्कर लगाए पर बेड नहीं मिला।
पति के पॉजिटिव आने पर पत्नी हरवंत कौर पूरी तरह से अकेले पड़ गईं। पत्नी को सप्ताह में दो बाद डायलिसिस करवाना पड़ता है। कौर का रो-रोकर बुरा हाल था, पति भी उन्हें लेकर चिंतित थे। उनके परिवार ने भी उनका साथ छोड़ दिया था। वे कहते रहे अब क्या होगा। हमारा कोई नहीं है। कोई उन्हें कॉल तक नहीं कर रहा था। इस पर हमने उन्हें दिलासा दिया कि आप पत्नी की चिंता नहीं करें। हम उनका इलाज करवाएंगे। इसके बाद पत्नी को हमने घर से लिया और शैल्बी अस्पताल में तीन दिनों तक भर्ती रखा। यहां पर उनके सभी टेस्ट हुए। उनकी कोरोना रिपोर्ट निगेटिव आई। इसके बाद हमने मंगलवार और शुक्रवार को उनका डायलिसिस करवाना शुरू किया। इसके बाद हमने डाॅक्टर से बात कर पूरा रुटीन तय कर दिया। डायलिसिस वाले दिन हम टैक्सी बुक कर देते और वे अस्पताल आकर डायलिसिस करवा लेती थीं। पति के कोरोना से जंग जीत कर आने के बाद भी तीन से चार महीने तक हमने उनकी और उनकी पत्नी की देखरेख की।

रोशनी अपने परिवार के साथ अब खुश है।
केस -2 : भोपाल में ब्याही रोशनी कौर के बारे में उन्होंने बताया कि रोशनी का खातीवाला टैैंक क्षेत्र में मायका है। पिछले साल वह लॉकडाउन के पहले इंदौर आई थी। उसे उस समय करीब 3 महीने का गर्भ था। लॉकडाउन लगने से वह अपने ससुराल भोपाल नहीं जा पाई। इस दौरान वह संक्रमित हो गई। कई अस्पतालों में घूमे, लेकिन कोई भर्ती करने को तैयार नहीं था। पिता का कैटरिंग का काम है। किसी ने इन्हें हमारी संस्था के बारे में बताया तो उन्होंने हमसे संपर्क किया। हमने उनके बारे में पूरी जानकारी ली और फिर अरबिंदो अस्पताल में बात की। वहां पर व्यवस्था होने पर इन्हें भर्ती करवाया। गर्भवती होने से वे काफी घबरा रही थीं। इस पर हमने उनके लिए अलग से एक गायनिक डॉक्टर की व्यवस्था करवाई। कोरोना के साथ उनकी प्रेग्नेंसी का इलाज भी चलता रहा। करीब 10 दिन तक अस्पताल में रहने के बाद उन्हें डिस्चार्ज कर दिया गया। जब तक वह अस्पताल में रही, वह भगवान से यही कहती रही कि उसे बेटी ही देना, जिससे वह मेरा ध्यान रख सके। बेटी होने पर अब कहती है कि उसी के कारण वह जिंदा है। उसी ने कोरोना से उसे बचाया है।

सुमन तो अस्पताल जाने को ही तैयार नहीं थी।
केस नंबर -3 : पालदा निवासी सुमन मोहराने घरों में काम करती है। इसी दौरान उसे वह किसी के संपर्क में आईं और संक्रमित हो गईं। संक्रमण के बाद उसके दो बेटे अस्पतालों में बेड के लिए घूमते रहे। आए दिन कोरोना से मौत और अस्पतालों की हालत को देख मां अस्पताल जाने को तैयार नहीं थी। एक कमरे में जैसे-तैसे बेटे मां का इलाज कर रहे थे, लेकिन हालत दिनोदिन खराब होती जा रही थी। बेड के लिए भटकते समय किसी ने उन्हें संस्था इंदौरियंस का नंबर दिया और कहा कि बात कर लो। ये कुछ व्यवस्था करवा देंगे। टीम ने पहले तो उनके लिए बेड की व्यवस्था की, इसके बाद उनकी काउंसिलिंग की। बमुश्किल वो अस्पताल जाने को तैयार हुईं। अब उनकी हालत में काफी सुधार है। अनपढ़ और गरीब होने के कारण उनका कहना है कि अस्पताल में उनकी कोई मदद नहीं करेगा। अस्पताल गई तो फिर वापस नहीं लौट पाऊंगी।

अस्पताल में भर्ती सिंह की हालत में अब सुधार हो रहा है।
केस नंबर – 4 : 35 साल से एक बंगले में काम करने वाले राम सिंह चौहान किसी संक्रमित के संपर्क में आए और बीमार हो गए। घर में विकलांग बहन भाई की देखरेख कर रही थी, लेकिन सिंह को डर था कि कहीं संक्रमण उनके परिवार को नहीं जकड़ ले। डर के कारण वे अस्पतालों के चक्कर लगाने लगे। काफी परेशान होने के बाद भी उन्हें कहीं बेड नहीं मिला। राम का लंग्स इंफेक्शन 50 था। ऑक्सीजन लेवल 85 तक पहुंच गया था। जैसे-तैसे अस्पताल में बेड की व्यवस्था करवाई। अस्पताल में भर्ती होते समय वे इतने घबराए हुए थे कि कह दिया था कि अब मेरा कुछ नहीं होने वाला। वे काफी डिप्रेशन में आ गए थे। हालत में सुधार होने पर उनके लिए फल, दूध, खाने की सामग्री उपलब्ध करवाई। अब उनकी हालत में सुधार है।

राजवीर लाल विज की हालत भी संक्रमण के कारण बहुत खराब हो गई थी।
केस नंबर -5 : राजवीरलाल विज की कहानी भी कुछ ऐसी है। उनकी हालात बहुत खराब थी। उन्हें कहीं एडमिशन नहीं मिल रहा था। पहले वे क्लॉथ मार्केट अस्पताल में भर्ती थे। यहां हालात में सुधार नहीं हो रहा था। उनके बेटे ने कहीं से नंबर तलाशा और कॉल कर रहा कि हमारी मदद कर दो। मेरे पिता की हालत बहुत ज्यादा खराब है। सही इलाज नहीं मिला तो वे मर जाएंगे। इस पर हमने सबसे पहले उनके लिए बेड तलाशना शुरू किया। मुश्किल से उनके लिए बेड की व्यवस्था हो पाई। इसके बाद ऑक्सीजन के साथ एंबुलेंस से उन्हें दूसरे अस्पताल में शिफ्ट करवाया गया। करीब 15 दिन उनका इलाज चला। इसके बाद उनकी रिपोर्ट कोरोना निगेटिव आई। बीमारी के कारण उनके लंग्स को काफी नुकसान हुआ था। इस पर उन्हें चेस्ट स्पेशलिस्ट से मिलवाया। यहां पर काफी इलाज करवाने के बाद अब वे स्वस्थ्य है।