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भिंड18 मिनट पहले
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ड्यूटी पर एएनएम जूली।
- अंतरराष्ट्रीय नर्स डे पर स्पेशल।
कोविड संक्रमण के दौरान लोगों के टीकाकरण में एएनएम अर्चना नरवरिया की ड्यूटी लगी और उसमें संक्रमण के लक्षण आए, कोविड जांच होने से पहले बीते दिनों उनकी मौत हो गई। इस घटना के बाद उसकी छोटी बहन जूली नरवरिया को बड़ा झटका लगा। जूली भी उमरी में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर एएनएम है और वो भी बड़ी बहन की तर्ज पर कोविड वैक्सीनेशन में ड्यूटी कर रही है। बहन की मौत के बाद उसके मन में कोविड वायरस का भय आया। लेकिन बड़ी बहन से मिली सीख ने उनके हौंसले को बढ़ाए रखा। इस महामारी के दौर में मां समान दीदी को खाने के बाद हिम्मत नहीं हारी और वो सेवा पथ पर डटी हुई हैं।
अंतरराष्ट्रीय नर्स डे पर भिंड निवासी एएनएम जूली नरवरिया ने अपने मन की बातों के शेयर किया और कहा कि मेरी दीदी अर्चना, मेरी मां जैसी थी। मेरे दो बहनें और दो भाई थे। बचपन में दीदी ही सब का ख्याल रखती थी। मां की तबीयत खराब रहती थी। दीदी ही मुझे पढ़ाती थी और दीदी ही घर का काम करना सिखाती थी। हालांकि मुझ में और दीदी में चार से पांच साल का अंतर था। दोनों सहेली की तरह रहते थे। दीदी की सीख से मैं भी एएनएम बनी। जूली का कहना है कि सही मायने में दीदी ही इस क्षेत्र में मुझे लेकर आई। जब दीदी, बीमारी से दुखी और पीड़ित लोगों की सेवा करती थी।
इसके बाद जब लाेग ठीक हो जाते थे तो बड़ा सम्मान करते थे। यह देखकर मैंने भी दीदी तर्ज पर लोगों की सेवा करने का विचार बनाया था। कोविड संक्रमण के समय मेरी दीदी मुझ से दूर चली गई। मुझे वह दिन अच्छे से याद है जब दीदी ने मुझे फोन करके कहा था कि जूली, कोविड में ड्यूटी संभलकर करना। यह वायरस खतरनाक है। बॉडी, कब में बैठ जाएं पता नहीं चलता। यदि समय रहते ठीक से इलाज नहीं हुआ तो जानलेवा भी साबित हो सकता है।
दीदी के यह शब्द आज भी मुझे सुनाई देते है। दीदी के शांत होने के बाद मैं टूट चुकी थी। परंतु दीदी ने बचपन में जाे सीख दी हुई थी आज भी मुझे याद है। बचपन में जब मैं काम करने से आनाकानी करती थी तो वो मेरा काम को पूरा करती थी और कहा करती थी कि बहादुर लोग काम करने से नहीं डरते। परिस्थिति कैसी भी विपरीत हो अपना काम पूरा करो। भगवान ने जो काम हमें सौंपा है वह मेरा कर्म है और उसे पूरा करने पर ही भगवान प्रसन्न होते है। बस यह सीख ने ही संबल दिया है आज विपरीत समय में मजबूती के साथ खड़ी हुई हूं।
ड्यूटी से घर जाती हूं तो परिवार से अलग कमरे में ही रहती हूं
दीदी के जाने के बाद स्वयं को और परिवार को सुरक्षित रखने के लिए घर में अकेली रहती हूं। जूली का कहना है कि मेरा सबसे छोटा बेटा 11 साल का है। बिटिया पंद्रह साल की और बड़ा बेटा 18 साल का है। मेरे पति एसएएफ में पदस्थ है। सास और ससुर बुजुर्ग है। दीदी के देहांत होने के बाद मैं ड्यूटी से जाती हूं ताे अकेले ही कमरे में रहती हूं। कोविड के डर की वजह से परिवार के साथ उठना बैठना बंद कर दिया है। बेटी या सासु मां भोजन तैयार करती है। वो ही लाेग घर को संभाल रहीं है।

जूली व उसकी बड़ी बहन अर्चना। दोनों एक साथ।