मुनाफाखोरी: 1700 में मिल रहा 600 का ऑक्सीमीटर, भीषण त्रासदी को भी भुनाने से नहीं चूक रहे कुछ कारोबारी

मुनाफाखोरी: 1700 में मिल रहा 600 का ऑक्सीमीटर, भीषण त्रासदी को भी भुनाने से नहीं चूक रहे कुछ कारोबारी


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जबलपुर2 घंटे पहले

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  • कई गुना बढ़ा दिए मेडिकल उपकरणों के दाम, मुश्किल में मरीजों के परिजन, जिम्मेदार खामोश

कोरोना से जंग में मेडिकल के कुछ सर्जिकल आइट्म्स अपना बेहद सपोर्ट रोल अदा करते हैं। ये बीमार व्यक्ति की मॉनीटरिंग व हेल्थ गणना में सहायक होते हैं पर यही सर्जिकल व छोटे मेडिकल उपकरण अब शहर में मनमाने कीमत पर बेचे जा रहे हैं। जिस दुकानदार का जितना मन हुआ उस हिसाब से कीमत बता दी और मजबूर आदमी से पैसे वसूल लिए।

नियम यही कहता है कि इनकी एमआरपी जो दर्ज है उससे भी कम कीमत में इनको बेचा जाना चाहिए क्योंकि ये कोई विशेष ब्रांड से नहीं होते और सामान्य कच्चे माल से ही बनाए जाते हैं, पर इनकी कमी बताकर अभी दुकानदार 3 से 4 गुना तक ज्यादा कीमत वसूल रहे हैं। मजबूर आदमी जो घर में पड़े मरीज की ऑक्सीजन की तुरंत गणना चाहता है, मजबूरी में वह हर कीमत देकर इसको लेकर जा रहा है। हैरानी की बात यह है कि जिम्मेदार विभाग और अफसर खामोशी साधे हुए हैं।

ऑक्सीमीटर, थर्मामीटर, प्लास्टिक वेपोराइजर मशीन, ग्लूकोमीटर आदि जो अभी तक सहज रूप से मिल जाते थे, अब कई दवा दुकानों के चक्कर काटने पर ज्यादा दाम अदा करने पर ही मिलते हैं। इनकी मुनाफाखोरी न हो और वाजिब दाम पर ये आदमी को मिलें, इसका ख्याल जिम्मेदारों का रखना है पर वे अभी इस महामारी के समय भी केवल जाँच की रस्मअदायगी में व्यस्त हैं।

इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है कि जनता से किस हद तक वसूली की जा रही है। सीएमएचओ डॉ. रत्नेश कुररिया कहते हैं कि दवा दुकानों में किसी भी स्तर पर किसी भी आइटम की ज्यादा कीमत न ली जाए इसके लिए लगातार निगरानी के निर्देश दिए गए हैं। इसको लेकर लोगों को भी जागरूक रहना चाहिए। मिलकर ही कोरोना को नियंत्रित किया जा सकता है।

किस उपकरण की कितनी कीमत

  • आक्सीमीटर पहले 600 अब 1700 रुपए।
  • वेपोराइजर प्लास्टिक मशीन 90 से बढ़कर 300 रुपए।
  • थर्मा मीटर की कीमत पहले 120 अब 200 रुपए।
  • ग्लूकोमीटर 600 और अब 1000 रुपए।
  • सर्जिकल मास्क पहले 100 के 50 अब 200 के 50।

सुना रहे अपना अलग तर्क

दवा व्यापारियों का कहना है कि ऐसे कई मेडिकल उपकरण सर्जिकल आइटम्स में शामिल होते हैं। जो दिल्ली से बनकर आते हैं पर वहाँ इस समय इनकी कमी है, साथ ही जो मूल व्यापारी हैं उन्होंने भी इसकी कीमत बढ़ा दी है। लेबर की कमी है, उत्पादन हो नहीं रहा है जैसे कई कारण हैं जिससे इनके दाम बढ़े हुए हैं। ड्रग एसोसिएशन के सुधीर भटीजा कहते हैं कि कच्चे माल की कमी है, सप्लाई शॉर्ट है और साथ ही उत्पादन करने वाली यूनिट ने कीमत बढ़ाई, इसमें दवा दुकानदार का उतना रोल नहीं हैं।

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