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इंदौर9 घंटे पहले
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प्रतीकात्मक फोटो
कोरोना वायरस संक्रमण ने उद्योगों की भी कमर तोड़ दी है। उद्योगों से होने वाले उत्पादन में महज 45 दिनों में ही 45 फीसदी तक की कमी आ गई है। आने वाले दिनों में इसका अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ेगा। हालांकि काफी हद तक प्रदेश सरकार ने उद्योगों के संचालन को छूट दे रखी है। कोरोना कर्फ्यू में अन्य क्षेत्रों में बंदिशों का असर उद्योगों पर दिखाई दे रहा है। इंदौर पीथमपुर सहित प्रदेश के अन्य जिलों में कच्चे माल की कमी और उद्योग चलाने के दौरान मेंटेनेंस से जुड़े उपकरणों के नहीं मिलने के साथ ही संक्रमण के चलते भी दिक्कत आ रही है। मजदूरों की कमी भी उत्पादन कम होने की मुख्य वजह बताई जा रही है। ये भी वजह अस्पतालों में मेडिकल ऑक्सीजन की भारी कमी के चलते पिछले कई दिनों से उद्योगों में ऑक्सीजन सप्लाय रोक दिया गया था। लोगों की जिंदगी बचाने के लिए बेहद यह जरूरी फैसला था। इसकी वजह से भी कुछ सेक्टर प्रभावित हुए थे।
50 फीसदी गिरावट संभव
उद्योगपतियों का कहना है यही हालत रहे तो जून के पहले सप्ताह तक उत्पादन घटकर 50 फीसदी ही रह जाएगा। उनका कहना है कि अब कोरोना के इंदौर में तेजी से फैलने से मजदूरों और कर्मचारियों में भय जरूर है। मजदूरों का कुछ औद्योगिक क्षेत्रों में आंशिक पलायन हो रहा है।
फॉर्मा उद्योग भी प्रभावित
इंदौर और पीथमपुर में दवाएं बनाने वाली कई बड़ी और छोटी कंपनियां हैं। 10 से अधिक कंपनियां इंजेक्शन का भी उत्पादन करती हैं। कच्चा माल और ऑक्सीजन सप्लाय नहीं होने से इनका उत्पादन भी प्रभावित हो रहा है। दवा बनाने का कई माल विदेशों से भी आता है, कोरोना के चलते आयात प्रभावित है।
यातायात बंद होने से नहीं आ रहा कच्चा माल
उद्योगपतियों का कहना है इंदौर और पीथमपुर के कई उद्योगों में कच्चे माल की सप्लाय महाराष्ट्र, गुजरात, छत्तीसगढ़, दिल्ली सहित अन्य राज्यों से होती है। अधिकांश प्रदेशों में कोरोना संक्रमण के चलते यातायात बंद है। इसके कारण कच्चा माल नहीं आ रहा है। जिससे उत्पादन प्रभावित है। प्लास्टिक इंडस्ट्री काफी हद तक महाराष्ट्र और गुजरात के कच्चे माल पर निर्भर है। औद्योगिक क्षेत्रों की फैक्ट्रियों को चलाने की अनुमति जरूर दी गई है, लेकिन उद्योगों की मशीनों के मेंटेनेंस से जुड़े उपकरणों और पुर्जों की दुकानें बंद हैं। यह नहीं मिलने से कई बार मशीनें बंद हो जाती हैं और उद्योगपति को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। अधिकांश फैक्ट्रियों से नियमित रूप से इन कलपुर्जों की जरूरत होती है। बाजार बंद होने से परेशानी आ रही है और उत्पादन गिरा हुआ है। सवा सौ से ज्यादा उद्योग तो बिक्री नहीं होने से घटे उत्पादन से बंद होने की कगार पर पहुंच गए है।
बंद हो जाएगी रोलिंग मिल
प्रदेश का लोहा उद्योग वेंटिलेटर पर आ गया है। कच्चे माल की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि , कोरोना में गिरी मांग और उद्योगों को ऑक्सीजन नहीं मिलने से ये हालात बने हैं। मध्यप्रदेश के विभिन्न शहरों में लोहे के उत्पाद बनाने वाली 50 रोलिंग मिल में से 40 सोमवार से अगले 15 से 20 दिनों के लिए बंद हो जाएंगी। मेटल कारोबारी योगेश मेहता बताते हैं कि कच्चे माल की कीमतों में एक महीने में 20-25 फीसदी का इजाफा हुआ है। आपूर्ति नहीं होना भी मिल बंद होने की मुख्य वजह है। एक साल में लोहा उद्योग के कच्चे माल ( शीट ) की कीमतों की बात करें तो 60 फीसदी तक का इजाफा हुआ है। पिछले साल 30 रुपए किलो मिलने वाला कच्चा माल 50 रुपए किलो है। मप्र रोलिंग मिल एसोसिएशन के अध्यक्ष सतीश मित्तल का कहना है बाजार बंद हैं। जिससे डिमांड खत्म है। माल बिक नहीं रहा है तो महंगा कच्चा माल खरीद कर कौन स्टॉक बढ़ाएगा।
बिजली के बिल तोड़ेंगे कमर
एसोसिएशन के कोषाध्यक्ष दर्शन मेहता बताते हैं रोलिंग मिल में क्षमता अनुसार 30 से 50 हजार रुपए प्रतिदिन की बिजली खर्च होती है। सोमवार से इंदौर की 30 में से 25 मिल 15 से 20 दिनों के लिए बंद रहेंगी। मिलें बंद रहने के दौरान भी बिजली का न्यूनतम बिल संचालकों को भरना होगा, जो लाखों में होगा। आर्थिक संकट में बिजली बिल और परेशानी बढाएंगे।
चीन से बंद हो गई सप्लाय
चीन से फैले कोरोना वायरस की दहशत जहां दुनियाभर में देखी जा रही है। देश के फॉर्मा उद्योग में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल का 70 फीसदी हिस्सा चीन से आता था। वायरस के असर के चलते कच्चे माल की पूर्ति नहीं हो रही थी। जिससे प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर और पीथमपुर का फॉर्मा उद्योग प्रभावित होने लगा था। मांग की तुलना में सप्लाय बेहद कम होने के कारण कच्चे माल की कीमतों में 30 से 40 फीसदी तक का इजाफा हो गया था। जिससे अब दवा की कीमतें बढ़ने के आसार बन गए थे। एक साल में चीन से कई दवाओं पर आयात निर्यात पर प्रतिबन्ध लग गया है।
महीने भर में 450 करोड़ का व्यापार ठप
2020 में इंदौर और पीथमपुर से चाइना का रोजाना औसतन 15 करोड़ रुपए से अधिक का कारोबार है। इस हिसाब से अंदाजा लगाया जाय तो महीने भर में सिर्फ इन दो शहरों का ही 450 करोड़ से अधिक व्यापार ठप हुआ था। दवाइयां बनाने के लिए दुनिया में सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला पैरासिटामॉल जो 1 सप्ताह पहले तक 250 रुपए किलो में मिल रहा था, उसकी कीमत 450 रुपए किलो तक पहुंच गई थी। सिर्फ पैरासिटामॉल की कीमतों में एक सप्ताह में दोगुने से ज्यादा की वृद्धि हो गई थी। वहीं डायक्लोफीनिक का रेट 700-800 रुपए किलो से 1500 रुपए किलो तक पहुंच गया था। इसी तरह दूसरी दवाओं में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल की कीमतों में भी 20 से लेकर 40 फीसदी तक इजाफा हो गया था।