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गुना6 मिनट पहले
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जिला चिकित्सालय गुना
पलमोनोलॉजिस्ट , कार्डियोलोजिस्ट , एनेस्थीसियोलोजिस्ट। एमबीबीएस और एमडी डॉक्टर्स की टीम के साथ अलग अलग रोगों के इन तीन विशेषज्ञ चिकित्सकों के बिना कोरोना के गम्भीर मरीजों का इलाज बेहद कठिन है। प्रदेश के 52 जिलों में से एक साढ़े बारह लाख की आबादी के गुना के जिला अस्पताल तक में इनमें से एक की भी पदस्थापना नहीं है।
दूसरी लहर में गांवों तक भी कोविड संक्रमण फैल चुका है। 80 प्रतिशत तक केस ग्रामीण इलाकों में आ रहे हैं। मृत्यु दर बढ़ गई है। यह बात अलग है कि आंकड़ों की बाजीगरी में मृतकों की सही संख्या सामने नहीं आई, जबकि केवल गुना नगर के दो प्रमुख मरघटों में ही रोज 10 से अधिक शवों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है।
अब तीसरी लहर के आने और उसके और तीव्र होने की आशंका जताई जा रही है। केंद्र सरकार ने राज्यों को अलर्ट कर दिया है, लेकिन जिला अस्पताल में इस लिहाज से न तो व्यवस्थाएं हैं और न ही विशेषज्ञ। कोरोना से गंभीर रूप से संक्रमित व्यक्ति के फेफड़े और सांस लेने की प्रणाली डेमेज होती है। इससे जुड़ी बीमारियों का विशेषज्ञ पलमोनोलोजिस्ट कहलाता है। इसी तरह हृदय (हार्ट) संबंधी रोगों का उपचार कार्डियोलॉजिस्ट और इंटेंसिव केयर यूनिट ऑपरेट करने और सर्जरी के केस डील करने के लिए सर्जन के साथ ही एनेस्थिसियोलॉजिस्ट की जरूरत भी होती है।
कोरोना के गम्भीर मरीजों के इलाज में वही अस्पताल बेहतर रिजल्ट दे पा रहे हैं जिनमें एमबीबीएस, एमडी डॉक्टर्स के अलावा कम से कम ये तीन विशेषज्ञ चिकित्सक मौजूद हैं। दूसरी लहर में संक्रमण से ठीक होने के बाद भी अचानक लोगों की मौत हो रही है। ऐसी मौतों की वजह हार्ट अटैक होना बताया जाता है। संक्रमण से ठीक होने के बाद भी अच्छे भले युवाओं के साथ ऐसा हो रहा है। ऐसे में दिल की बीमारी को भांपने के लिए अच्छे कार्डियोलोजिस्ट की जरूरत होती है।
इसके अलावा कोरोना और उसके इलाज में इस्तेमाल दवाओं, इस्टीरॉयड आदि का एक बड़ा साइड इफेक्ट देखने में आ रहा है कि कई मरीजों में कोरोना होने के बाद डायबिटीज का लेबल हाई हो रहा है और ब्लड क्लॉट्स (खून के थक्के) जमने की समस्याएं भी देखी गई है, जो कार्डिएक अरेस्ट और ब्रेन स्ट्रोक की वजह बन रहा है। ऐसे में रक्त संबंधित रोगों के विशेषज्ञ यानि हेमेटोलॉजिस्ट की भी जरूरत होती है।
जिला चिकित्सालय के कोविड वार्ड को एमबीबीएस एमडी (कम्युनिटी) डॉ सुनील यादव , एमबीबीएस डॉ अंकित उपाध्याय, डॉ चित्रांशी सांझा, डॉ सुदर्शन कुशवाह, बीएएमएस डॉ खगेंद्र रघुवंशी, डॉ नसरीन आदि युवा प्रतिभाएं वैसे तो बड़े अच्छे ढंग से सम्हाल रहे हैं लेकिन संसाधनों की कमी और विशेषज्ञों के अभाव में वो भी गम्भीर रूप से संक्रमित मरीजों को बचाने के लिए आखिर कैसे और कहां तक किला लड़ाएं।
गुना में हर रोज फेफड़ों के संक्रमण से जूझ रहे मरीजों का ऑक्सीजन लेवल गिरने और उसमें सुधार न होने पर मौत के मामले सामने आ रहे हैं, जिसके लिए ऑक्सीजन होने के बाद भी ऑक्सीजन का न होना एक ऐसा बड़ा कारण है। गुना के अस्पताल में 15 लीटर से ज्यादा प्रेशर से ऑक्सीजन देने का कोई सिस्टम ही नहीं है। इस कारण ऑक्सीजन होते हुए भी वो मरीज नहीं बच पाते जिनका ऑक्सीजन लेवल ज्यादा गिर जाता है, और जिन्हें ज्यादा प्रेशर से ऑक्सीजन की जरूरत है। ऐसे मरीजों को मेडिकल कॉलेज या भोपाल, इंदौर, ग्वालियर जैसे शहरों में रैफर किया जा रहा है लेकिन वहां भी जगह मुश्किल से मिलती है।
गुना के अस्पताल में पीएम केयर फंड से खरीदे गए वेंटिलेटर होते हुए भी उनका उपयोग न किया जाना भी व्यवस्था में खामी का सबूत है। बताते हैं कि एक वेटिलेटर 15-20 मिनिट में ही ऑक्सीजन का एक बड़ा सिलेंडर चूस लेता है, फिलहाल इतनी ऑक्सीजन है नहीं कि वेंटिलेटर चालू किए जा सकें।
जिला अस्पताल का आईसीयू बेहतरीन है जिसकी तुलना चिरायु के आईसीयू से की जा सकती है लेकिन ये भी चालू नहीं है। कारण कि आवश्यक व्यवस्थाएं व विशेषज्ञ नहीं है। यदि ऐसे में संक्रमण की तीसरी लहर आती है तो क्या नजारा बनेगा, ये केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है।
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