संघर्ष से शिखर की कहानी, खिलाड़ी से नेशनल टीम के रेफरी बने मनोज फिडोदा

संघर्ष से शिखर की कहानी, खिलाड़ी से नेशनल टीम के रेफरी बने मनोज फिडोदा


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मनोज फिडोदा नागौर जायल के फरड़ोद गांव के रहने वाले हैं. वह स्पोर्ट्स फैमिली से ताल्लुक रखते हैं. इनके पिताजी राजस्थान की तरफ से खेलने वाली फुटबॉल टीम के खिलाड़ी रह चुके हैं. जानिए इनके संघर्ष की कहानी…

कृष्ण कुमार

नागौर. आज हम एक ऐसे गांव की बात करने वाले हैं जहां अधिकतर लोग सिर्फ एक ही खेल को खेलना पसंद करते हैं. इस गांव के बच्चे हो या बड़े सभी आपको फुटबॉल खेलते हुए दिख जाएंगे. अब इसी गांव का साधारण सा लड़का नेशनल टीम का रेफरी बन गया. ऐसा किसी ने सोचा भी नहीं था. मनोज फिडोदा आज फुटबॉल नेशनल टीम के रेफरी है. वे अब अपने गांव के साथ-साथ जिले के लोगों को भी खेल के प्रति जागरूक कर रहे हैं.

कौन हैं मनोज फिडोदा
मनोज फिडोदा नागौर जायल के फरड़ोद गांव के रहने वाले हैं. वह स्पोर्ट्स फैमिली से ताल्लुक रखते हैं. इनके पिताजी राजस्थान की तरफ से खेलने वाली फुटबॉल टीम के खिलाड़ी रह चुके हैं. अपने पिताजी से प्रेरणा लेकर फुटबॉल खेलना शुरू किया. इनके परिवार में बड़े भाई व पिता दोनों फुटबॉल खेलते थे.

पिता से प्रेरित हुए और गुरु ने पहचाना हुनर
मनोज ने बताया कि पिता के प्रेरणा से फुटबॉल खेलना आरंभ किया लेकिन पिता सरकारी नौकरी में होने की वजह से इतना ध्यान नहीं दे पाएं. जिस तरह महेंद्र सिंह धोनी के हुनर को उनके गुरु ने पहचाना, उसी प्रकार मनोज के हुनर को गुरु ने पहचाना, उन्होंने लगातार मनोज को फुटबॉल खेल का प्रशिक्षण दिया और एक काबिल खिलाड़ी बनाया.

आज बने फुटबॉल खिलाड़ी से नेशनल रेफरी
मनोज फिडोदा ने कक्षा 3 तीन से फुटबॉल खेलना प्रांरभ कर दिया था. फुटबॉल के प्रति जुनून होने के कारण रोजना पढ़ाई करने के बाद 6-7 घंटा अभ्यास करते थे. सबसे पहले इन्होनें अपनी विद्यालय की तरफ से नागौर जिले के लिए खेला. वहां से लगातार अच्छा प्रदर्शन के कारण धीरे-धीरे यह अपने खेल में बेहतर होते गए.

नागौर की तरफ से पहले संतोष ट्रॉफी खेलने वाले खिलाड़ी बने. खेल में अच्छा प्रदर्शन करने के चलते उन्हें नेशनल टीम का रैफरी भी चुना गया.

100 से अधिक ट्रॉफी व मेडल
मनोज को खेल में लगातार अच्छा प्रदर्शन के चलते अब तक 100 से अधिक ट्रॉफी व मेडल मिल चुके हैं.

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