साधारण नहीं है ये मंदिर, धरती पर यहीं सबसे पहले हुई थी शिवलिंग की पूजा! कम लोगों को पता..ये रोचक कथा

साधारण नहीं है ये मंदिर, धरती पर यहीं सबसे पहले हुई थी शिवलिंग की पूजा! कम लोगों को पता..ये रोचक कथा


Mandleshwar Famous Shiv Mandir: मध्य प्रदेश के खरगोन में एक ऐसा मंदिर है, जिसकी मान्यता बेहद खास है. कहा जाता है कि शिव की पूजा सबसे पहले यहीं से शुरू हुई थी. यह मंदिर मां नर्मदा के किनारे मंडलेश्वर में है. मान्यता है कि शिवजी ने यहां खुद शिवलिंग की स्थापना की थी. सबसे पहले ऋषियों की पत्नियों ने यहां पूजा की. इस स्थान को दुनिया का पहला शिवलिंग स्थल भी माना जाता है.

गुप्तेश्वर महादेव मंदिर के नाम से प्रसिद्ध यह मंदिर खरगोन से लगभग 50 किलोमीटर दूर है. मां नर्मदा के तट पर स्थित यह मंदिर धार्मिक, पौराणिक और ऐतिहासिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है. साल 2010 में इसे मध्य प्रदेश शासन ने आधिकारिक रूप से पवित्र स्थल घोषित किया. मंदिर से जुड़ी एक कथा इसे और भी रोचक बनाती है, जिसे लेकर मान्यता है कि यहां शिवलिंग की पूजा की शुरुआत खुद शिवजी ने एक श्राप से मुक्ति पाने के लिए की थी.

ऋषियों ने शिवजी को दिया श्राप
कथा के अनुसार, प्राचीन समय में यह क्षेत्र दारुकावन कहलाता था, जहां कई ऋषि-मुनि तपस्या करते थे. एक बार भगवान शिव और माता पार्वती यहां भ्रमण पर आए. पार्वती जी ने तपस्या में लीन ऋषियों का ध्यान भटकाने की जिद की. तब भगवान शिव एक नंगे बालक के रूप में नाचने लगे. यह देखकर ऋषियों की पत्नियां आकर्षित हो गईं. जब ऋषियों को यह पता चला तो उन्होंने क्रोध में आकर उस बालक को श्राप दे दिया कि उसका लिंग भूमि पर गिर जाए.

शिवजी ने इसलिए की थी स्थापना
श्राप के असर से शिवजी का लिंग वहीं गिर गया. तभी ब्रह्मा और विष्णु प्रकट हुए और ऋषियों से कहा कि उन्होंने बहुत बड़ी भूल कर दी है, क्योंकि वह बालक स्वयं भगवान शिव थे. तब ऋषियों ने अपनी गलती सुधारने के लिए उपाय बताया कि नर्मदा नदी से एक पवित्र पत्थर निकालकर उस स्थान पर स्थापित करें. उसकी पूजा महिलाएं करें. ऐसा करने से दोबारा अपने लिंग को प्राप्त कर लेंगे.

यहीं से शुरू हुई शिवलिंग पूजा की परंपरा
इस उपाय को मानते हुए शिव और पार्वती ने नर्मदा से एक पवित्र पत्थर निकाला. उस स्थान पर उसकी स्थापना की. ऋषियों की पत्नियों ने उस पत्थर की पूजा की. तभी से यह पवित्र पत्थर शिवलिंग कहलाया. यहीं से शिवलिंग पूजन की परंपरा शुरू हुई, जो आज देश-विदेश में फैली हुई है. यह मंदिर आज भी भगवान शिव के उसी आदि रूप का प्रतीक माना जाता है.

शंकराचार्य से भी जुड़ा इतिहास
मंदिर के पुजारी परमानंद केवट बताते हैं कि यह स्थान न केवल धार्मिक रूप से, बल्कि ऐतिहासिक रूप से भी बहुत खास है. मान्यता है कि आदि शंकराचार्य और विद्वान मंडन मिश्र के बीच जब मंडलेश्वर में शास्त्रार्थ हुआ था, तब शंकराचार्य का स्थूल शरीर इसी मंदिर की गुफा में छह महीने तक सुरक्षित रखा गया था.

धार्मिक ग्रंथों में भी वर्णन
गुप्तेश्वर मंदिर का उल्लेख नर्मदा पुराण, रेवा खंड, भागवत गीता और अन्य पौराणिक ग्रंथों में मिलता है. यह मंदिर नर्मदा परिक्रमा मार्ग पर भी स्थित है, इसलिए यहां हर साल बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं. लोग यहां भगवान शिव के उस रूप के दर्शन करते हैं, जहां से शिवलिंग की पूजा की शुरुआत मानी जाती है.

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