Last Updated:
Gobar Ganesh Mandir: महेश्वर में गोबर गणेश की प्रतिमा 11वीं शताब्दी की बताई जाती है. करीब 4 फीट ऊंची और पूरी तरह गाय के गोबर व मिट्टी से ये बनी है. जानें महिमा..
हाइलाइट्स
- गोबर गणेश मंदिर 11वीं शताब्दी का है
- प्रतिमा गाय के गोबर और मिट्टी से बनी है
- मंदिर से देवी अहिल्याबाई का गहरा ताल्लुक था
Khargone News: मध्य प्रदेश के खरगोन में एक ऐसा अनोखा मंदिर है, जो भक्तों के लिए आस्था का नहीं, बल्कि आश्चर्य का भी केंद्र है. यहां भगवान गणेश की मूर्ति किसी पत्थर, धातु या लकड़ी से नहीं बल्कि गाय के गोबर से बनी है. हैरानी की बात ये कि यह प्रतिमा करीब 900 साल पुरानी है. इतने सालों में इस पर एक भी दरार या खरोंच तक नहीं आई है.
रोज आती थीं अहिल्याबाई
क्षेत्र में यह मंदिर गोबर गणेश के नाम से प्रसिद्ध है. मंदिर में स्थापित प्रतिमा 11वीं शताब्दी की बताई जाती है. करीब 4 फीट ऊंची है. पूरी तरह गाय के गोबर और मिट्टी से बनी है. यहां भगवान गणेश अपनी सवारी मूषक पर विराजमान हैं. गोबर गणेश के इस मंदिर से देवी अहिल्याबाई होल्कर काफी गहरा ताल्लुक रहा है. वे यहां नियमित दर्शन के लिए आती थीं. इस मंदिर का जीर्णोद्धार भी उन्हीं के द्वारा करवाया गया था.
मंदिर के पुजारी मंगेश जोशी बताते हैं कि रिद्धी-सिद्धि के साथ गणेश, शिव, पार्वती सहित पूरा परिवार एवं परिक्रमा होने से यह क्षेत्र का एकमात्र पूर्ण गणेश मंदिर है. यहां गर्भगृह की छत महालक्ष्मी यंत्र के आकार में बनी है जो इस मंदिर को और खास बनाती है. इसी के साथ मंदिर में गणेशजी गौमय होकर पंचभूतात्मक गणेश हैं जो पार्थिव पूजा के रूप में पूजित हैं.
पुराणों में गोबर गणेश का विशेष महत्व
मान्यता है कि गणेश पुराण के अनुसार भाद्रपद चतुर्थी से 11 दिन तक गोबर और मिट्टी से बने गणेश की पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है. यहां गणेश जी को सिंदूर चढ़ता है. इनके पूजन से धनधान्य, लक्ष्मी, सुख-सौभाग्य की शीघ्र प्राप्ति होती है. कलयुग में गोबर गणेश शीघ्र फल देने वाले देवता भी माने गए हैं. इसलिए इस मंदिर की महत्ता और ज्यादा बढ़ जाती है. यहीं वजह है कि मध्य प्रदेश सहित देश विदेश से श्रद्धालु यहां शीश नवाने आते है.