रीवा. धान की फसल का सीजन चल रहा है. धान की फसल खरीफ सीजन की मुख्य फसल मानी जाती है. बरसात शुरू होने के साथ ही किसानों ने धान की रोपाई भी शुरू कर दी है. किसान धान की फसल की अधिक पैदावार के लिए तरह-तरह के जैविक एवं रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करते हैं, जिससे उनकी फसल की पैदावार में बढ़ोतरी हो सके लेकिन धान की फसल में रोग लगने का खतरा ज्यादा रहता है. इसको लेकर किसान चिंतित रहते हैं लेकिन अब उन्हें चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि आज हम उन्हें इस फसल में लगने वाले प्रमुख रोग और उनसे बचाव के तरीकों के बारे में बताने जा रहे हैं.
धान के प्रमुख रोग और उपचार
झुलसा रोग: पौधारोपण से लेकर दाने बनने तक की अवस्था में इस रोग के लगने का खतरा ज्यादा रहता है. पौधे की पत्तियों और तने की गांठ पर इसका प्रकोप ज्यादा होता है. ऐसा होने पर पौधे पर गहरे भूरे रंग के साथ ही सफेद रंग के धब्बे पड़ जाते हैं. झुलसा रोग से बचाव के लिए किसान बुवाई से पहले बीज का उपचार करें. जिस पौधे पर रोग दिखाई दे, उसे उखाड़कर फेंक दें.
जीवाणु पत्ती झुलसा रोग: यह मुख्य रूप से बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में ज्यादा प्रभावी होता है. इस मौसम में धान की फसल में जीवाणु पत्ती झुलसा रोग के आने की संभावना है. यदि धान की खड़ी फसल में पत्तियों का रंग पीला पड़ रहा हो और इन पर धब्बे बन रहे हों, तो सावधान हो जाएं. इसकी वजह से आगे जाकर पूरी पत्ती पीली पड़ने लग जाएगी. इसकी रोकथाम के लिए कापर हाइड्रोक्साइड 1.25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 150 लीटर पानी में मिलाकर 10-12 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें.
शीथ झुलसा (अंगमारी रोग): यह रोग राइजोक्टोनिया सोलेनाइन नामक फफूंदी से फैलता है. पौधे के आवरण पर अंडाकार जैसा हरापन और उजला धब्बा पड़ जाता है. जल की सतह के ऊपर पौधे में यह रोग प्रभावी होता है. शीथ झुलसा की अवस्था में नाइट्रोजन का प्रयोग कम कर देना चाहिए. इसके अलावा जिस खेत में झुलसा रोग लगा है, उस खेत का पानी दूसरे खेत में नहीं जाना चाहिए. खेत में रोग को फैलने से रोकने के लिए खेत से समुचित जल निकास की व्यवस्था की जाए, तो रोग को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है.