MP Politics : भाजपा में ‘सेवक’ बनने, कांग्रेस में ‘सृजन’ की मुहिम, किसकी रणनीति चलेगी?

MP Politics : भाजपा में ‘सेवक’ बनने, कांग्रेस में ‘सृजन’ की मुहिम, किसकी रणनीति चलेगी?


मध्य प्रदेश में 2027 और 2028 के चुनावी बिसात की तैयारी चल रही है. मध्य प्रदेश की राजनीति में फिलहाल कोई बड़ा उलटफेर या सीधा टकराव देखने को नहीं मिल रहा है, लेकिन सतह के नीचे दोनों प्रमुख दल – भाजपा और कांग्रेस – आगामी चुनावी महासंग्राम के लिए रणनीतियां बनाने में जुट गए हैं. ये खामोशी किसी शांति का संकेत नहीं, बल्कि 2027 और 2028 के चुनावों की गहन तैयारी की है, जो राज्य की सत्ता का भविष्य तय करेंगे. भाजपा और कांग्रेस, दोनों ही जानते हैं कि 2027 के पंचायत चुनाव और 2028 के विधानसभा चुनाव ही असली कसौटी होंगे. पंचायत चुनाव जहां जमीनी स्तर पर पकड़ और संगठन की मजबूती का लिटमस टेस्ट होंगे. वहीं विधानसभा चुनाव सीधे सत्ता की कुंजी सौंपेंगे.

यही वजह है कि दोनों खेमों में रणनीतिक स्तर पर गतिविधियां तेज हैं. बैठकों का दौर चल रहा है, संगठनात्मक ढांचे को मजबूत किया जा रहा है, और संभावित उम्मीदवारों पर भी विचार-मंथन जारी है. कांग्रेस जहां अपनी पिछली गलतियों से सबक लेकर वापसी की राह तलाश रही है, वहीं भाजपा अपनी सत्ता बरकरार रखने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती. जातिगत समीकरण, क्षेत्रीय प्रभाव, और स्थानीय मुद्दों पर गहन विश्लेषण किया जा रहा है. नए चेहरों को आगे लाने और पुराने धुरंधरों को सक्रिय करने पर भी जोर दिया जा रहा है.

भाजपा की क्लास: सेवक बनो, शासक नहीं
सत्ता में बैठी भाजपा जानती है कि सत्ता पाना एक बात है और उसे संभालकर रखना दूसरी. इसलिए ‘प्रशिक्षण वर्ग’ के नाम पर पार्टी अपने सांसदों, विधायकों और मंत्रियों को याद दिला रही है – “जनसेवक बनो, शासक नहीं.” प्रेम से बोलो, सोच समझकर बोलो, और बोलने से पहले सोचो कि क्या बोलना भी है?

संगठन तब भी था जब सत्ता नहीं थी
राजनाथ सिंह, जो खुद देश के रक्षा मंत्री हैं, ने भाजपा के तीन दिवसीय प्रशिक्षण वर्ग के समापन पर जो बात कही, वो सीधे दिल पर लगती है – “संगठन तब भी था जब सत्ता नहीं थी. कार्यकर्ता ही असली ताकत हैं, और जनता का भरोसा ही सबसे बड़ा हथियार.” उनका ये संदेश नसीहत भी था और चेतावनी भी – अगर सत्ता का नशा सिर चढ़ा, और संगठन से दूरी बनी, तो नुकसान तय है.

कांग्रेस का प्लान: पुराने ढांचे को तोड़, नया संगठन खड़ा
वहीं दूसरी ओर कांग्रेस भी कमर कस चुकी है – लेकिन मैदान में उतरने से पहले अंदर की सफाई और मजबूती पर फोकस है. संगठन में युवाओं, कर्मठ और समर्पित चेहरों को जगह देने की कवायद तेज हो चुकी है. हर जिले में राष्ट्रीय पर्यवेक्षक पहुंच चुके हैं और कार्यकर्ताओं से खुलकर फीडबैक ले रहे हैं. पार्टी ने साफ कर दिया है – 2023 में भाजपा छोड़कर आए नेता तुरंत पद नहीं पाएंगे. पहले सेवा, फिर मेवा. उम्र अब कोई बाधा नहीं – बस ईमानदारी और मेहनत चाहिए. कांग्रेस चाहती है कि 55 जिलों में ऐसे अध्यक्ष बनें जो कार्यकर्ताओं को जोड़ सकें, गुटबाजी को खत्म कर सकें और 2028 की लड़ाई में पार्टी को एकजुट कर मैदान में उतार सकें.

समीकरण साफ है – सत्ता चाहिए, रास्ता अलग-अलग
भाजपा सत्ता में बनी रहना चाहती है. कांग्रेस सत्ता में वापस आना चाहती है. रास्ते अलग हैं – कोई प्रशिक्षण से सुधार रहा है, तो कोई संगठन से सृजन कर रहा है. लेकिन मंज़िल एक ही है – 2028 का फाइनल जीतना. भाजपा की नसीहतें सत्ता के नशे को उतारने के लिए हैं. कांग्रेस की नियुक्तियाँ सत्ता की सीढ़ी चढ़ने के लिए. दोनों दल मानते हैं कि पंचायत चुनाव (2027) ही सेमीफाइनल है – जो असल मुकाबले से पहले का सबसे बड़ा टेस्ट होगा.



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