खंडवा के वरिष्ठ चित्रकार ने बनाई अनोखी पेंटिंग, 30 दिन की मेहनत, फिर रंगों के बीच दिखा योग

खंडवा के वरिष्ठ चित्रकार ने बनाई अनोखी पेंटिंग, 30 दिन की मेहनत, फिर रंगों के बीच दिखा योग


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International Yoga Day: खंडवा के चित्रकार ने कड़ी साधना के बाद योग दिवस के अवसर पर एक बेहद अनोखी पेंटिंग तैयार की है. इसमें रंगों के बीच योग दर्शाया गया है.

हाइलाइट्स

  • खंडवा के चित्रकार ने योग पर अनोखी पेंटिंग बनाई
  • पेंटिंग बनाने में 30 दिन लगे, योग और ध्यान को दर्शाया
  • बैद्यनाथ वशिष्ठ 25 साल से योग साधना कर रहे है

Khandwa News: खंडवा न सिर्फ अपनी ऐतिहासिकता और संस्कृति के लिए मशहूर है, बल्कि कला के क्षेत्र में भी अपनी खास पहचान रखता है. योग दिवस पर खंडवा के प्रसिद्ध चित्रकार बैद्यनाथ वशिष्ठ सराफ ने एक अनोखी पेंटिंग बनाई है, जो योग और ध्यान की गहराई को दर्शाती है. इस पेंटिंग को बनाने में बैद्यनाथ वशिष्ठ को पूरे 30 दिन लगे. यह पेंटिंग न केवल कला प्रेमियों के लिए बल्कि योग साधकों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत है.

बैद्यनाथ वशिष्ठ लगभग चार दशकों से कला साधना कर रहे हैं. बताते हैं कि योग और ध्यान उनका अत्यंत प्रिय विषय रहा है. उन्होंने कहा, “योग दो प्रकार का होता है, एक जो शरीर को स्वस्थ रखने के लिए किया जाता है और दूसरा जो मन, आत्मा और बुद्धि को शुद्ध करने के लिए ध्यान रूप में किया जाता है. मेरी पेंटिंग इसी ध्यान योग पर केंद्रित है. इसमें मैंने उस अवस्था को चित्रित करने की कोशिश की है जब साधक कुंडलिनी जागरण के अंतिम चक्रों तक पहुंचता है.”

पेंटिंग में इस बात का जिक्र
उन्होंने बताया, योग में सात चक्र होते हैं. मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्ध, आज्ञा और सहस्त्रार. जब साधक गहन ध्यान में लीन होता है, तो मां कुंडलिनी मूलाधार से जागृत होकर सहस्त्रार तक का मार्ग तय करती है. पेंटिंग में यही भाव दिखाया गया है कि साधक की चेतना कैसे नील बिंदु और रक्त ज्योति के दर्शन करती है और वह सांसारिक बंधनों से परे होकर केवल एक परम प्रकाश में डूब जाता है. पेंटिंग का आकार 3 बाय 3 फीट का है और इसे ऑइल पेंट से कैनवास पर उकेरा गया है. इसकी हर रेखा और रंग संयोजन साधक के ध्यान की अवस्था और कुंडलिनी जागरण की अनुभूति को जीवंत करता है.

25 साल से कर रहे योग
बैद्यनाथ वशिष्ठ कहते हैं, “ध्यान की इस स्थिति में साधक को किसी लोक या परलोक का भान नहीं रहता. वह बस एक दिव्य धारा में बहता चला जाता है. मेरी इस पेंटिंग में योगिनी के माध्यम से वही अविच्छिन्न धारा दिखाने की कोशिश की गई है. जब साधक पूरी तरह से योग में लीन हो जाता है, तो उसके लिए केवल प्रकाश ही सत्य होता है.” अपने इस विशेष प्रयास के बारे में बताते हुए वशिष्ठ जी ने कहा कि उन्होंने पेंटिंग के दौरान न केवल अपनी कला को साधा बल्कि स्वयं भी ध्यान और योग की साधना करते रहे. वे गणेशपुरी के स्वामी नित्यानंद और स्वामी मुक्तानंद के अनुयायी हैं. 25 वर्षों से इस मार्ग पर हैं.

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