भोपाल से महज 60 किमी दूर है ये स्तूप, हजारों साल पुरानी नक्काशी का देते बेहतरीन उदाहरण

भोपाल से महज 60 किमी दूर है ये स्तूप, हजारों साल पुरानी नक्काशी का देते बेहतरीन उदाहरण


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Bhopal Heritage Place: भोपाल के आस पास वैसे तो घूमने के लिए ढेर सारी जगह मौजूद है. मगर हम आज आपको एक ऐसे ऐतिहासिक धरोहर के बारे में बताएंगे, जहां परिवार और दोस्तों के साथ घूमने का मजा दोगुना हो जाएगा.

<strong>सांची स्तूप:</strong> राजधानी भोपाल से करीब 60 किमी दूर स्थित रायसेन जिले में पड़ता है. पहाड़ी पर स्थित सांची स्तूप बेतवा नदी के किनारे बना हुआ है. यहां की नक्काशी हजारों साल पुरानी बताई जाती है. यह जगह बौद्ध धर्म के हिसाब से बहुत ही पवित्र और खास मानी जाती है.

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कहा जाता है कि सांची स्तूप भारत की सबसे पुरानी पत्थर की संरचनाओं में से एक है, जिसे तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में बनाया गया था. यहां पर ऐसी कई छोटी-छोटी इमारत व मंदिर भी मौजूद है.

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सांची स्तूप का निर्माण महान मौर्य सम्राट अशोक ने करवाया था. कहते हैं कि बौद्ध धर्म को ऊंचाइयों पर पहुंचाने में सम्राट अशोक का विशेष योगदान रहा है. ऐतिहासिक वास्तुकला के इस अद्भुत चमत्कार को सन् 1989 में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त हुई.

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कहां जाता है कि इस पवित्र स्थल को बुद्ध और उनके समर्पित अनुयायियों के पूजनीय अवशेषों को संजोए हुए हैं. बता दें, सदियों से एक साधारण एट की संरचना से लेकर एक उत्कृष्ट कृति तक सांची लगातार विकसित हुआ है.

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यहां सातवाहक, गुप्त और कुषाण जैसे शासकों ने अपनी छाप छोड़ी, जो प्राचीन भारत की उत्कृष्ट शिल्प कला का प्रमाण है. सांची स्तूप के चार तोरण द्वारों की भव्यता पर मुख मंडप सम्मिलित है.

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सम्राट अशोक ने वेदिस गिरी जिसे आज के दौर में सांची कहा जाता है. यहां बहुत स्मारकों का निर्माण करवाया कहते हैं इस पहाड़ी पर भिक्षु जीवन के लिए आवश्यक शांति और एकांत का वातावरण था. साथ ही यह स्थान विदिशा नामक समृद्ध एवं संपन्न नगरी के समीप था.

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यहां मंदिर और मठ जैसी संरचनाओं के बीच आराम से टहलकर इतिहास को करीब से जाना जा सकता है. स्तूप के चारों ओर तोरण द्वार बनाए गए हैं. साथ ही शांत वातावरण में परिवार के संग छुट्टियों का आनंद ले सकते हैं.

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सांची स्तूप परिसर में संग्रहालय भी मौजूद है जहां बौद्ध धर्म से जुड़ी ढेर सारी जानकारी मिल जाती है. साथ ही यहां से लगभग 13 किलोमीटर दूर उदयगिरि की गुफाएं भी मौजूद हैं, जिसमें गुप्त काल की जटिल काशी देखने को मिल जाती है.

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