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Shikhar Dham History: जब दंपति को बालक नहीं मिला, तब उन्हें भोलेनाथ की कही हुई बात याद आई. उस दिन नाग पंचमी का दिन था. उन्होंने उस सांप को ही अपनी संतान मानकर पूजा शुरू कर दी.
खरगोन. मध्य प्रदेश का भिलट देव मंदिर, जिसे शिखर धाम के नाम से भी जाना जाता है, लोगों की गहरी आस्था का केंद्र है. यह मंदिर न सिर्फ धार्मिक मान्यताओं से जुड़ा है बल्कि इसके पीछे एक अद्भुत और चमत्कारी कहानी भी छिपी है, जो हर किसी को अचंभित कर देती है. यहां नाग देवता के अवतार माने जाने वाले भिलट देव की पूजा होती है. यह मंदिर बड़वानी और खरगोन जिले की सीमा पर सतपुड़ा पर्वत की ऊंची पहाड़ी पर स्थित है. नाग पंचमी के मौके पर यहां लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं.
जब दंपति को वह बालक नहीं मिला, तब उन्हें भगवान शिव की कही हुई बात याद आई. उस दिन नाग पंचमी थी. उन्होंने उस सांप को ही अपनी संतान मानकर उसकी पूजा शुरू कर दी. तभी से यह परंपरा बन गई और भिलट देव को नाग देवता का अवतारी पुरुष माना जाने लगा. आज भी मंदिर में भिलट देव के साथ नाग देवता की पूजा होती है. लोग मानते हैं कि यहां जो भी सच्चे मन से संतान की मन्नत मांगता है, उसकी झोली जरूर भरती है.
कर्मभूमि है नागलवाड़ी
भिलट देव की कर्मभूमि नागलवाड़ी रही और शिक्षा दीक्षा चौरागढ़ में हुई थी. पहले बाबा एक छोटे से मिट्टी के टीले में रहते थे, फिर टिन शेड में पूजा होती रही और अब जन सहयोग से यहां लाल पत्थरों से विशाल मंदिर बन चुका है. एक बार एक किन्नर बाबा की परीक्षा लेने आई और संतान की मन्नत मांगी. बाबा की कृपा से उसकी गोद भर गई लेकिन बाद में उसकी मृत्यु हो गई. तब से मान्यता है कि कोई भी किन्नर यहां रात में नहीं रुकता.
850 साल पुराना है इतिहास
पुजारी राजेंद्र बाबा के अनुसार यह मंदिर करीब 850 साल पुराना है और पूरे निमाड़ अंचल में शिखर धाम के नाम से प्रसिद्ध है. सालभर यहां भक्तों की भीड़ लगी रहती है. खासकर नाग पंचमी के दिन यहां लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं. भिलट देव को वरदानी माना जाता है, इसलिए संतान सुख के लिए यहां विशेष पूजा की जाती है. बाबा की कृपा से कई महिलाओं की सूनी गोद भर चुकी है और इसी आस्था के चलते यह मंदिर चमत्कारी माना जाता है.