वेब सीरीज पर बोले अखिलेंद्र मिश्रा: जो काम हम अपने परिवार के साथ नहीं देख सकते वह क्यों करें, सुनाई हिंदी कविता – Bhopal News

वेब सीरीज पर बोले अखिलेंद्र मिश्रा:  जो काम हम अपने परिवार के साथ नहीं देख सकते वह क्यों करें, सुनाई हिंदी कविता – Bhopal News


रंगमंच और बॉलीवुड के कलाकार अखिलेंद्र मिश्रा शनिवार को भोपाल पहुंचे, इस दौरान उन्होंने जहां एक तरफ वेब सीरीज को लेकर खुलकर बात की तो दूसरी तरफ उन्होंने हिंदी को लेकर भी अपनी बात रखी, साथ ही हिंदी में कविताएं भी सुनाई, उन्होंने बताया कि वे इन दिनों सा

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मैंने अब तक वेब सीरीज नहीं की, क्योंकि परिवार के साथ नहीं देखी जा सकती” वेब सीरीज के बढ़ते प्रभाव पर उन्होंने कहा कि अब तक मैंने वेब सीरीज नहीं की थी, क्योंकि उनमें गाली-गलौच और अश्लीलता होती है। जो मैं अपने परिवार के साथ नहीं देख सकता, वो काम क्यों करूं? पैसा, शोहरत, गाड़ी, बंगला ये सब मिल सकता है, लेकिन एक कलाकार का काम सिर्फ अभिनय नहीं होता, उसका दायित्व समाज के प्रति भी होता है।

हाल ही में उन्होंने एक पारिवारिक वेब सीरीज ‘पिरामिड’ में काम करना शुरू किया है। उन्होंने कहा कि यह ऐसी सीरीज है जिसे लोग अपने परिवार के साथ देख सकते हैं। हम समाज को क्या दे रहे हैं, यह सोच जरूरी है। कहीं गलती से भी कोई गलत शब्द निकल जाए तो अफसोस होना चाहिए।

बच्चों के साथ अखिलेंद्र मिश्रा ने किया संवाद।

सुनाई हिंदी में कविता “मैं संस्कृति की स्वस्ती हूं, मैं सभ्यता की प्रशस्ति हूं, मैं संस्कृति की पुत्री हूं, मैं भारत की रीढ़ की अस्थि हूं… मैं हिंदी हूं। यह ओजपूर्ण पंक्तियां हैं अभिनेता अखिलेंद्र मिश्रा की। दैनिक भास्कर से विशेष बातचीत में उन्होंने अपने जीवन, लेखन, थिएटर और वर्तमान दौर की वेब सीरीज पर खुलकर बात की। अखिलेंद्र मिश्रा ने बातचीत के दौरान एक प्रभावशाली कविता भी सुनाई, जिसकी पंक्तियां थीं। “मैं गंग हूं, गंगाल हूं, गंगा गंगेश हूं, मैं क्रांति अशेष हूं, सिंधु का अवशेष हूं, क्रांतिकारियों का आवेश हूं, स्वतंत्रता संग्राम का वेश हूं, विश्व में कहीं भी रहूं, मैं संपूर्ण भारत देश हूं—मैं हिंदी हूं, मैं हिंदी हूं, मैं हिंदी हूं।

अभिनय, अभिनेता और अध्यात्म यह सिर्फ किताब नहीं, संवाद का माध्यम भी अखिलेंद्र मिश्रा ने बताया,“करीब डेढ़ साल पहले मेरी किताब ‘अभिनय, अभिनेता और अध्यात्म’ आई है। मैं इसे लेकर देशभर के संस्थानों में युवाओं से मिल रहा हूं। पुणे फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट, एनएसडी, बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी जैसे कई संस्थानों में इसके सत्र हो चुके हैं। अब जहां-जहां छात्र इसे पढ़ रहे हैं, वहां मैं खुद जाकर संवाद कर रहा हूं। सवालों के जवाब दे रहा हूं, स्पष्टता के साथ मूल समझा रहा हूं।

उन्होंने कहा कि हिंदी में पहली बार इस विषय पर कोई किताब आई है और इसे व्यापक सराहना मिल रही है। इससे छात्रों को समझ में आ रहा है कि अभिनय सिर्फ कला नहीं, बल्कि आत्मिक साधना भी है। अभिनेता को केवल किरदार निभाना नहीं, अपने आंतरिक स्वरूप से भी जुड़ना होता है।”



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