PHOTOS: मानसून में देखने हैं सफेद बाघ? रीवा में व्हाइट टाइगर सफारी सबसे बेस्ट

PHOTOS: मानसून में देखने हैं सफेद बाघ? रीवा में व्हाइट टाइगर सफारी सबसे बेस्ट


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White Tiger Safari in Rewa: मध्य प्रदेश को यूं ही टाइगर स्टेट नहीं कहा जाता. दरअसल यह तो सभी जानते हैं कि एमपी में बाघों की संख्या देश में सबसे ज्यादा है लेकिन ये कम लोग जानते हैं कि सफेद बाघ का इतिहास क्या है. सफेद बाघों का जनक भी मध्य प्रदेश ही है. आज से 74 साल पहले एमपी में रीवा की धरती पर सफेद बाघ मिला था.

रीवा के राजा मार्तण्ड सिंह ने इस सफेद बाघ को अपना जिगरी दोस्त बनाकर महलों में रखा. उन्होंने इसका नाम मोहन रखा. इसकी खासियत यह थी कि यह बाघ हर रविवार को व्रत रखता था. इस दौरान वह केवल दूध पीता था.

हरी भरी मुकुंदपुर की वादियां.

मानसून सीजन आते ही रीवा में पर्यटकों की भारी भीड़ देखने को मिलती है. रीवा संभाग का व्हाइट टाइगर सफारी इस समय हरी-भरी वादियों से ढक जाता है, जिससे मुकुंदपुर की खूबसूरती में चार चांद लग जाते हैं. मानसून की बारिश में सफेद बाघ की एक झलक पाने के पर्यटक घंटों इंतजार करते हैं.

दूर-दूर से आते हैं लोग.

रीवा संभाग में आने वाले महाराजा मार्तंड सिंह जूदेव व्हाइट टाइगर सफारी में दूर-दूर से पर्यटक सफेद बाघ का दीदार करने के लिए आते हैं. रीवा जिला मुख्यालय से मुकुंदपुर की दूरी 15 किलोमीटर है. रीवा से तमरा गांव होकर सड़क मार्ग से मुकुंदपुर पहुंचा जा सकता है. चोरहटा और निपनिया मार्ग से भी मुकुंदपुर के लिए सड़क है.

सिर्फ बीस रुपए में मिलती है एंट्री.

मुकुंदपुर व्हाइट टाइगर सफारी में कई वन्य प्राणियों के दीदार होते हैं. साथ में जंगल घूमने में भी भरपूर मजा मिलता है. व्हाइट टाइगर सफारी में घूमने के लिए मात्र 20 रुपये की एंट्री फीस है. यदि आप पैदल नहीं बल्कि बैटरी वाली गाड़ी से जंगल सफारी का आनंद लेना चाहते हैं, तो उसके लिए 50 रुपये देने होते हैं.

ऐेसे होता है सफेद बाघ का दीदार.

सफेद बाघ दुर्लभ है. इसका दीदार करने के लिए जंगल में काफी अंदर तक जाना पड़ता है. इसके लिए जू प्रबंधन द्वारा बसें चलाई जाती हैं. जंगल के अंदर बस से घूमने के लिए 120 रुपये देने पड़ते हैं.

सफेद रंग और नीली आंखे लोगों जीत लेती हैं दिल.

1951 में रीवा के राजा मार्तण्ड सिंह ने जंगल में सफेद रंग के बाघ को देखा, जिसकी नीली आंखें थीं, तो वह इस पर मोहित हो गए. उसकी उम्र कम थी. उन्होंने सीधी के बरगड़ी के जंगल से इसे पकड़ा. उसे गोविंदगढ़ के किले में रखा गया. राजा ने उसका नाम मोहन रखा.

पहले सफेद बाघ की थी तीन रानिया.

सफेद बाघ मोहन की तीन रानियां (बाघिन) थीं. धीरे-धीरे उनका कुनबा बढ़ता गया. संख्या बढ़कर 34 हो गई. इनमें से 21 शावक सफेद थे. 1969 को मोहन का निधन हो गया. मोहन को पूरे सम्मान के साथ गोविंदगढ़ किले के बगीचे में दफनाया गया, जहां खेलकर वह बड़ा हुआ था. मोहन की याद में उसी स्थान पर समाधि बनाई गई.

राजा की तरह हुई थी मोहन की परवरिश.

इतिहासकारों के मुताबिक, किले में मोहन की खिदमत ठीक वैसे ही होती थी, जैसे किसी राजा की होती थी. सभी उसे मोहन सिंह कहकर पुकारते थे. वह रविवार को खाना नहीं खाता था, भले ही उसे राजा मार्तण्ड सिंह जूदेव ही क्यों न खिलाएं. रविवार को मोहन केवल दूध पीता था. जानकार बताते हैं कि मोहन फुटबॉल खेलने का बड़ा शौकीन था.

मुकुंदपुर में एक अलग ही अनुभव है.

इतिहासकार डॉ मुकेश येंगलके मुताबिक, पूर्व मंत्री राजेंद्र शुक्ल ने सफेद बाघ की घर वापसी के लिए जोर लगाया था. साल 2016 में गोविंदगढ़ इलाके में मुकुंदपुर स्थित व्हाइट टाइगर सफारी का निर्माण हुआ. इसका नाम महाराजा मार्तण्ड सिंह जूदेव व्हाइट टाइगर सफारी रखा गया और एक बार फिर विंध्या नाम की सफेद बाघिन की विंध्य की धरती पर वापसी हुई.

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PHOTOS: मानसून में देखने हैं सफेद बाघ? रीवा में व्हाइट टाइगर सफारी सबसे बेस्ट



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