इमरजेंसी के 50 साल…19 महीने जेल में रहे, कृष्णवीर सिंह ने सुनाई आपबीती

इमरजेंसी के 50 साल…19 महीने जेल में रहे, कृष्णवीर सिंह ने सुनाई आपबीती


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Emergency in India: आपातकाल के दौरान यातनाएं सहने वाले कृष्णवीर सिंह ठाकुर ने लोकल 18 से बातचीत में कहा कि 25 जून 1975 को इमरजेंसी लागू होने के बाद 26 जून से ही एमपी के सागर में गिरफ्तारियां शुरू हो गई थीं.

सागर. 25 जून 1975 को इंदिरा गांधी की सरकार ने देश में इमरजेंसी यानी कि आपातकाल लगाने की घोषणा की थी, जो मार्च 1977 तक चली थी. देश के काले अध्याय के रूप में देखे जाने वाले इस दुर्भाग्यपूर्ण काल के 50 साल पूरे हो रहे हैं. ऐसे में उस समय नागरिकों की स्वतंत्रता में जो कटौती की गई थी, लोगों को प्रताड़ना सहनी पड़ी थी, उसे याद कर आज भी लोग सहम जाते हैं. इमरजेंसी के दौरान मध्य प्रदेश के सागर में भी 200 से ज्यादा विपक्षी पार्टियों के नेताओं और कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया था. इन्हीं में से एक कृष्णवीर सिंह ठाकुर भी हैं, जो 20 साल की उम्र में गिरफ्तार कर लिए गए थे क्योंकि उन्होंने इमरजेंसी के खिलाफ पर्चे छपवाकर पूरे शहर में चिपका दिए थे.

इमरजेंसी के दौरान यातनाएं सहने वाले कृष्णवीर सिंह ठाकुर ने लोकल 18 को बताया कि 25 जून को इमरजेंसी लागू होने के बाद 26 जून से ही सागर में गिरफ्तारियां शुरू हो गई थीं. सबसे पहले हमारे बड़े भाई रघु ठाकुर को गिरफ्तार किया गया. इसके बाद लक्ष्मी नारायण यादव, शिवराज सिंह सहित कई लोग, जो विपक्ष के नेता हुआ करते थे, सभी को पकड़ लिया गया था. इमरजेंसी के समय उनकी उम्र 20 साल थी. उस समय हमने एक आंदोलन चलाया, जिसमें नवयुवकों का संगठन बनाया. अपनी टीम के साथ इमरजेंसी के खिलाफ पर्चे छपवाए और पूरे शहर में चिपका दिए. इसकी वजह से हड़कंप मच गया था कि पूरे देश में शांति है और सागर में यह पर्चा कहां से चस्पा कर दिए गए. पर्चों की वजह से जन-जागृति पैदा हो रही है.

प्रताड़ना भरे रहे थे शुरुआत के 6 महीने
उन्होंने बताया कि फिर इसके बारे में पता किया गया, तो हमें पकड़ लिया गया और सागर जेल में रखा गया. 19 महीने तक जेल में रहे. शुरुआत के 6 महीने काफी प्रताड़ना भरे रहे. ऐसा लगता था कि कब हम लोगों को जेल से ले जाएंगे और कहीं पर मार डालेंगे लेकिन 6 महीने के बाद जेल के लोग भी समझ गए और फिर ज्यादा परेशान नहीं किया. जिस समय हमारी गिरफ्तारी हुई थी, उस समय हम लोग सेकंड ईयर में थे और जेल में होने की वजह से पेपर नहीं दे पाए थे, जिसको लेकर हमने हाईकोर्ट में याचिका भी लगाई थी लेकिन कांग्रेस सरकार ने न्यायालय के अधिकार भी छीन लिए थे और उसमें कुछ नहीं हुआ.

कांग्रेस और इंदिरा गांधी के खिलाफ एक शब्द नहीं
उन्होंने आगे बताया कि प्रेस की स्वतंत्रता भी उस समय छीन ली गई थी. कलेक्टर की बिना अनुमति के कोई एक शब्द भी कांग्रेस और इंदिरा गांधी पर नहीं छाप सकता था. इधर जो भी फील्ड में कार्य करने वाले विपक्षी पार्टियों के कार्यकर्ता थे, उनके घर पर पुलिस जाती थी, दरवाजे पर डंडे मारती थी और पूछती थी कि क्या हो रहा है, बच्चे क्या कर रहे हैं, घर पर कौन है, तो लोग इससे परेशान हुआ करते थे. वहीं जिन घरों के पुरुषों को जेल में डाल दिया गया था, उनके परिवार टूट गए थे.

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