कपिल देव ने स्वागत किया पर गावस्कर ने… राजनीति का शिकार हो देश छोड़ गए थे दिलीप दा

कपिल देव ने स्वागत किया पर गावस्कर ने… राजनीति का शिकार हो देश छोड़ गए थे दिलीप दा


नई दिल्ली. दिलीप दोषी 1970 के दशक में बल्लेबाजों के लिए आतंक का पर्याय हुआ करते थे. उन्हीं दिनों  बंगाल रणजी टीम के उनके साथी गोपाल बोस ने उनसे पूछा कि क्या वे गैरी सोबर्स को आउट कर सकते हैं. हमेशा की तरह बेपरवाह दोषी ने जवाब दिया, ‘हां, कर सकता हूं.’ दोषी ने इसके कुछ साल बाद विश्व एकादश के मैच में सोबर्स को आउट किया. वे बाद में काउंटी क्रिकेट में नॉटिंघमशर की ओर से कई साल तक सोबर्स के साथ खेले.

1991 में दिलीप दोषी की आत्मकथा ‘स्पिन पंच’ प्रकाशित हुई. वेस्टइंडीज के सर गैरी सोबर्स ने इसकी प्रस्तावना लिखी थी, ‘दिलीप दोषी के पास उन लोगों को देने के लिए अपार ज्ञान है जो पेशेवर क्रिकेट में उनके रास्ते पर चलना चाहते हैं. उन्होंने दुनिया भर में सभी स्तर पर खेला है और स्पिन गेंदबाजी की कला के बारे में बात करने के लिए उनसे अधिक योग्य कोई नहीं हो सकता.’

महानतम खिलाड़ियों में शामिल गैरी सोबर्स ने दोषी की जमकर सराहना की लेकिन भारतीय क्रिकेट के कई रहस्यों की तरह कोई भी यह नहीं समझ सका कि बीसीसीआई ने कभी उनकी विशेषज्ञता का इस्तेमाल क्यों नहीं किया. असंभव शब्द दोषी के शब्दकोष में नहीं था, वरना 70 के दशक के अंत में वह पद्माकर शिवालकर और राजिंदर गोयल को पछाड़ 32 साल की उम्र में टेस्ट क्रिकेट में पदार्पण नहीं कर पाते. उन्होंने 100 से अधिक टेस्ट विकेट लिए.

दोषी को भारतीय पिचों पर काफी सफलता मिली लेकिन यह 1980-81 में ऑस्ट्रेलिया का दौरा था जहां उन्होंने स्पिन गेंदबाजी की प्रतिकूल पिचों पर 150 से अधिक ओवर में 11 विकेट (एडीलेड में छह और मेलबर्न में पांच) चटकाए. उनके शिकार में ग्रेग चैपल, डग वॉल्टर्स, रॉड मार्श, किम ह्यूजस जैसे बल्लेबाज शामिल थे.

बंगाल क्रिकेट के हलकों में उन्हें ‘दिलीप दा’ के नाम से जाना जाता था. वे निरंतरता में विश्वास करते थे- चाहे एक ही लेंथ पर अनगिनत गेंदें पिच करना हो या 50 वर्षों तक रोलिंग स्टोन्स सुनना हो और लगभग पांच दशक तक मिक जैगर के सबसे करीबी दोस्तों में से एक होना हो. दोषी हालांकि बल्लेबाजी और क्षेत्ररक्षण के मामले में काफी पीछे थे इसलिए जब फॉर्म में थोड़ी गिरावट आती तो उस समय का टीम प्रबंधन जानता था कि किसे बाहर करना है.

यह 1982-83 में पाकिस्तान का दौरा था जहां जावेद मियांदाद ने उनका मजाक उड़ाया था. सुनील गावस्कर अक्सर याद करते थे कि दोषी के खिलाफ मियांदाद कैसे छींटाकशी करते थे. मियांदाद पैर आगे निकालकर रक्षात्मक शॉट खेलने के बाद कहते थे, ‘ऐ दिलीप, तेरे कमरे का नंबर क्या है?’ जब दोषी ने पूछा, ‘‘क्यों?, तो उन्होंने कहा, ‘तेरे को वहीं छक्का मारूंगा.’

दिलीप दोषी ने अपना आखिरी टेस्ट 1983 में पाकिस्तान के खिलाफ बेंगलुरु में खेला था जो ड्रॉ रहा. उन्होंने बारिश से प्रभावित मैच में वसीम राजा का विकेट लिया था. हालांकि अपनी बेबाक आत्मकथा ‘स्पिन पंच’ में उन्होंने अपने अंतिम टेस्ट से पहले कैसे चीजें घटित हुई इसका वर्णन करते हुए कोई कसर नहीं छोड़ी.

दिलीप दोषी ने अपनी आत्मकथा में लिखा, ‘भारत के लिए उत्तर क्षेत्र के चयनकर्ता थे बिशन बेदी. वे भारतीय टीम का प्रबंधन भी कर रहे थे. मुझे माहौल शत्रुतापूर्ण लगा और मैं यह महसूस करने से खुद को नहीं रोक सका कि यह मुझे टीम में वापस बुलाए जाने के कारण था. मेरे कप्तान कपिल देव ने गर्मजोशी से मेरा स्वागत किया और मुझे शुभकामनाएं दीं. कप्तानी से हटाए गए गावस्कर होटल लॉबी में कहीं घूम रहे थे. वे टीम में एकमात्र व्यक्ति थे जिन्होंने मुझे शुभकामनाएं नहीं दीं या एक शब्द भी नहीं कहा.’

उन्होंने कहा, ‘टेस्ट से एक शाम पहले बेदी ने मुझे एक पार्टी में अलग ले जाकर बार-बार कहा कि मैं भाग्यशाली हूं कि मुझे टीम में वापस बुलाया गया और मुझे पांच विकेट लेकर इसे सही साबित करना चाहिए. मैं स्तब्ध था और मैंने कहा कि मैं केवल अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास कर सकता हूं लेकिन विकेट की गारंटी कैसे दे सकता हूं?’

बिशन सिंह बेदी पर दोषी कितने नाराज थे इसका अंदाजा अगले पैरा से लगाया जा सकता है. उन्होंने लिखा, ‘मैंने उनसे (बेदी से) पूछा कि क्या उन्होंने कभी यह गारंटी दी थी कि वे एक पारी में कितने विकेट लेंगे. क्या अपने खेलने के दिनों के दौरान उन्हें इस तरह के दबाव के बारे में पता था जो वे मुझ पर डालने की कोशिश कर रहे थे? टेस्ट क्रिकेट में यह कोई बहुत अच्छी वापसी नहीं थी.’

दिलीप दोषी ने कहा, ‘मैदान पर मैंने देखा कि कपिल देव थोड़े अशांत थे. वे मुझे कहते रहे कि लोगों के मुंह बंद करने के लिए तुम्हें पांच विकेट लेने ही होंगे. मैं अच्छी तरह से जानता था कि उनका क्या मतलब है और मुझे एहसास हुआ कि टीम में मेरा शामिल होना अधिकारियों का समीकरण बिगाड़ रहा है.’

यह भारत के लिए दोषी का आखिरी मैच था. वे हालांकि पहले बंगाल और फिर सौराष्ट्र के लिए 1985-86 तक खेले लेकिन इसके बाद वह स्थायी रूप से इंग्लैंड चले गए जहां उनका कारोबार खूब अच्छा चला. उनकी कंपनी प्रतिष्ठित मोंट ब्लांक पेन को भारत लेकर आई.



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