जहां से महोबा जाते थे आल्हा-ऊदल, उसी सुरंग की कहानी! छतरपुर का आज भी है मौजूद

जहां से महोबा जाते थे आल्हा-ऊदल, उसी सुरंग की कहानी! छतरपुर का आज भी है मौजूद


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Alha-Udal Fort News : छतरपुर जिले की प्रकाश बम्होरी के जंगल में बसा एक ऐसा महल जो हजार साल पुराना बताया जाता है. इसमें वीर योद्धा आल्हा-ऊदल रहा करते थे. इस महल के पास में एक सुरंग है. कहते हैं कि इसी सुरंग से ह…और पढ़ें

Alha-Udal Fort News. छतरपुर के प्रकाश बम्हौरी गांव से दूर जंगल में बसा एक ऐसा महल जो हजार साल पुराना बताया जाता है. महल के आसपास रहने वाले पुराने बुजुर्ग बताते आए हैं कि इस महल में वीर योद्धा आल्हा-ऊदल रहा करते थे. इसके पास में एक सुरंग है. इसी सुरंग से होकर आल्हा-ऊदल महोबा रियासत जाया करते थे.

आल्हा-उदल से है महल का संबंध 
इलाके के पुराने बुजुर्ग बताते हैं कि इस महल में राजा-रानी रहते थे. ये महल चंदेलकालीन है. यहां आल्हा-ऊदल भी रहते थे. 25 साल पहले यह महल बिल्कुल सही सलामत था. यहां एक बड़ा सा तालाब भी है, जिसके किनारे पहाड़ पर यह महल बसा है. बगल में घुइंयारानी का स्थान है, जहां मेला लगता था.

जर्जर हालत में है महल 
महल के आसपास कुछ घर आज भी बसे हुए हैं. महल के पास में रहने वाले एक युवा बताते हैं कि एक समय पर इस महल को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते थे. महल के किनारे एक तालाब भी है. यहां मेला भी लगता था लेकिन अब महल जर्जर हालत में है.

युवा बताते हैं कि हमारे बुजुर्ग के बुजुर्ग बताते आए हैं कि इस महल में आल्हा-ऊदल रहते थे. इस महल से आल्हा-ऊदल की महोबा रियासत नजदीक थी. इस महल से लगभग 20 किमी दूर ही उत्तरप्रदेश का महोबा शहर पड़ता है.

महल में थी गुप्त सुरंग 
इस महल में एक पुरानी सुरंग है. ये सुरंग सीधे महोबा जाती है. इसी सुरंग के भीतर से रहस्यमय तरीके से दिन में भी लोगों की नजर से बचते हुए महोबा पहुंच जाते थे. हालांकि, आज इस सुरंग के भीतर जाना मना है. क्योंकि सालों पुरानी ये सुरंग है. पता नहीं अब कहां तक जाती हो, भीतर बहुत से जीव जंतु भी रहते हैं. इसीलिए यहां से आवा-जाही बंद कर दी है. कई बार बच्चों ने यहां जाने की कोशिश की है इसलिए इसे बंद कर दिया गया है.

ग्रामीण बताते हैं कि इस महल की जर्जर हालत चोरों ने की है. महल में चोर धन-दौलत के लालच में आते थे. वे यहां रात-रातभर खुदाई करते थे, जिससे इस महल के पत्थर यहां-वहां हो गए. राज्य पुरातत्व विभाग के अधिकारी 10 साल पहले आए थे लेकिन इसके बाद कभी नहीं आए. पुरातत्व विभाग के संरक्षण में आ जाता, तो यह चंदेलकालीन महल जर्जर होने से बच जाता.

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